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समाज

सीधी सादी जिंदगी तलाशते लोग

२८ अक्टूबर २०१७

बहुत से लोग परित्याग को उपभोक्ता संस्कृति के आतंक से आजादी मानते हैं. शेयर करने और किराये पर लेने का चलन बढ़ रहा है. टिकाऊ समाज, पर्यावरण सम्मत रहन सहन और संपत्ति के बंधन से आजादी, जर्मनी में न्यूनतावाद ट्रेंड में है.

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तस्वीर: Imago/Westend61

लोगों में अपने जीवन को सामान्य और साधारण बनाने की ललक बढ़ती जा रही है. उद्यम भी इस ट्रेंड का फायदा उठाना चाहते हैं और जरूरी कदम उठा रहे हैं. वे नये बिजनेस आयडिया के साथ कैमरा, सेलफोन या फ्रिज को किराये पर लेने को संभव बना रहे हैं. तेजी से बाजार में आते नये से नये उत्पादों के बीच उपभोक्ताओं विकल्प की तलाश में हैं. उनके लिए चीजें किराये पर लेना उपभोक्ता संस्कृति के आतंक से आजादी पाने का विकल्प बनता जा रहा है.

जिंदगी की उहापोह में कम और ज्यादा क्या है? क्या कम है क्या ज्यादा? अगर कमरे में सोफा न हो, अच्छा सा बिस्तर न हो, टीवी सेट न हो, रैक न हों, किताबें न हों तो कमरा खाली खाली सा, नीरस सा लगेगा. लेकिन बहुत से लोगों को यही अच्छा लगता है. वे सीधा सादा जीवन अपना रहे हैं. पूरी तरह गांधीवादी जीवन तो नहीं पर एक सिद्धांत के तहत.

दो साल से अपनी जिंदगी बदलने की ठानकर न्यूनतावादी सिद्धांतों के अनुरूप रहने वाली लड़की मिमी बताती है, "शुरू में मुझे कुछ भी साफ नहीं था, इस लाइफस्टाइल का कोई नाम भी है या ये लाइफस्टाइल है भी या नहीं. मेरे मन में सिर्फ ये विचार आया कि मैं अपनी जिंदगी बदलना चाहती हूं, मैं चीजों में कमी लाना चाहती हूं."

Deutschland Scooter-Sharing in Berlin
तस्वीर: picture alliance/dpa/L. Mirgelerpicture alliance / Lino Mirgeler

दुनिया में एक ओर बढ़ता उपभोक्तावाद है तो दूसरी ओर भूख, त्रासदी, अभाव और विस्थापन की खबरें देखते पढ़ते बहुत से युवा लोग अस्तित्व के संकट से गुजर रहे हैं. उनके लिए ये सवाल है कि चीजें कम हों या हों ही नहीं. किराये पर लेना जर्मनी में लंबे समय से लोकप्रिय विकल्प रहा है. जर्मनी में सबसे ज्यादा लोगों के पास किराये के मकान हैं, किराये की कारें अब आम हैं. फिर दूसरे उत्पादों में क्यों नहीं? ये सवाल मिशाएल कासो ने भी पूछा और दो साल पहले बर्लिन में एक स्टार्टअप शुरू किया. उनकी दुकान में इलेक्ट्रिक गैजेट किराये पर मिलते हैं. वे बताते हैं, "ये ज्यादा अच्छा है कि उपभोक्ता सामान का वैसे इस्तेमाल करे जैसे चाहता है, महीने के हिसाब से किराया दे, जो सस्ता है. इसे पहले जर्मनी में फिर दुनिया भर में स्थापित करना और उपभोक्ताओं के करीब लाना, यही हमारा लक्ष्य है."

किराये वाले ग्राहक हमेशा कुछ नया चाहते हैं. मिनी नया नहीं चाहती. वह पुराने साइकिल से चलती है. खाने के सामान खरीदने में भी वह परंपरावादी है. वह बिना पैकेजिंग वाले सामान खरीदती है. ये बर्लिन में रहने वाली मिनी के लिए महत्वपूर्ण है. इसके लिए वह समय खर्च करने और सामान खरीदने के लिए लंबी दूरी तय करने को भी तैयार है

रिपोर्ट: मार्ता ग्रुजिंस्का