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निजता के पक्ष में हैं व्हाट्सएप का मुकदमा

२६ मई २०२१

व्हाट्सएप भारत में सोशल मीडिया कंपनियों के लिए नए नियमों को अदालत में चुनौती देनी वाली पहली बड़ी कंपनी बन गई है. जानकारों का कहना है कि कंपनी के अपनी व्यापारिक हितों के अलावा ये लड़ाई निजता की सुरक्षा के लिए जरूरी है.

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तस्वीर: Ritchie B. Tongo/EPA/dpa/picture alliance

व्हाट्सएप ने सोशल मीडिया मध्यस्थ कंपनियों के लिए केंद्र सरकार द्वारा लागू किए गए नए नियमों में से एक प्रावधान को दिल्ली हाई कोर्ट में चुनौती दी है. 'ट्रेसेबिलिटी' कहे जाने वाले इस प्रावधान के तहत व्हाट्सएप जैसी संदेश भेजने वाली सेवाओं को कई बार भेजे गए संदेशों को सबसे पहले भेजने वाले की पहचान करनी होगी और जांच एजेंसियों को उसके बारे में बताना होगा.

मीडिया में आई खबरों में बताया जा रहा है कि व्हाट्सएप ने अदालत को बताया है कि यह प्रावधान असंवैधानिक है और निजता के मूलभूत अधिकार के खिलाफ है. व्हाट्सएप दावा करती है कि वो "एन्ड-टू-एन्ड एन्क्रिप्शन" का इस्तेमाल करती है, यानी संदेश भेजने से लेकर पहुंचने की पूरी यात्रा के बीच पूरी तरह से कोड में बदला हुआ होता है. इसकी वजह से उसे सिर्फ या तो भेजने वाले उपकरण से या पाने वाले उपकरण से पढ़ा जा सकता है. बीच में कोई भी संदेश को पढ़ नहीं सकती, यहां तक की कंपनी खुद भी नहीं पढ़ सकती.

व्हाट्सएप ने अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित एक ब्लॉग लेख में कहा है कि तकनीक और निजता के विशेषज्ञ यह मानते हैं कि ट्रेसेबिलिटी इस "एन्ड-टू-एन्ड एन्क्रिप्शन" को तोड़ देगी और इससे डिजिटल रूप से एक दूसरे से संवाद करने वाले करोड़ों लोगों की निजता का हनन होगा. कंपनी ने कहा है कि चूंकि यह कोई नहीं बता सकता कि सरकार भविष्य में किस संदेश की जांच करना चाहेगी, ऐसे में "ट्रेसेबिलिटी" लागू करने का मतलब होगा कि कंपनियों को सभी उपभोक्ताओं के सभी संदेश अपने पास जमा कर के रखने होंगे.

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तस्वीर: ISSOUF SANOGO / AFP

न्यायिक प्रक्रिया का उल्लंघन

इसे एक तरह की "सामूहिक निगरानी" बताते हुए, व्हाट्सएप ने कहा है कि इसकी वजह से कंपनियों को उनके उपभोक्ताओं के बारे में और ज्यादा जानकारी इकठ्ठा करनी पड़ेगी, जबकि आज के समय में लोग यह चाहते हैं कि कंपनियां उनके बारे में कम से कम जानकारी इकठ्ठा करें. निजता विशेषज्ञों का भी मानना है कि "ट्रेसेबिलिटी" का प्रावधान निजता के लिए नुकसानदेह है.

सॉफ्टवेयर फ्रीडम लॉ सेंटर (एसएफएलसी) कहता है कि इसे लोगों की निजी बातचीत की गोपनीयता पर खतरा तो आएगा ही, साथ ही साथ समस्या यह भी है कि मेसेजिंग कंपनियों से यह जानकारी हासिल करने के लिए जांच एजेंसियों को या तो एक न्यायिक आदेश या सूचना प्रौद्योगिकी कानून के भाग 69 के तहत आदेश की जरूरत होगी. यह वही प्रावधान है जिसके तहत भारत सरकार ने देश में चीनी वेबसाइटों को प्रतिबंधित किया हुआ है.

बेहतर तकनीक की जरूरत

एसएफएलसी के मुताबिक, इस प्रावधान का इस्तेमाल करके जांच एजेंसियां न्यायिक प्रक्रिया को बाईपास भी कर सकती हैं. यह सवाल उठ सकता है कि अगर मेसेजिंग कंपनियां संदेश सबसे पहले भेजने वाले की जानकारी नहीं देंगी तो आपराधिक अफवाहें उड़ाने जैसे मामलों में एजेंसियां जांच कैसे पाएंगी? हार्वर्ड केनेडी स्कूल के कुछ शोधकर्ताओं ने यह पहले भी कहा है कि व्हाट्सऐप वैसे भी बच्चों की अश्लील तस्वीरें, ड्रग्स इत्यादि जैसी गैर कानूनी चीजों के प्रसार को रोकने के लिए प्रोफाइल तस्वीरें और मेटाडाटा को स्कैन करता है.

कंपनी पहचान हो जाने पर ऐसी सामग्री भेजने वाले खातों की अलग से पुष्टि भी करती है और उन्हें.बैन कर देती है. व्हाट्सऐप यही जानकारी जांच एजेंसियों से भी साझा कर सकती है. लेकिन अब जब यह मामला अदालत में पहुंच गया है तो सरकार का क्या रुख होगा यह कहा नहीं जा सकता. नए प्रावधानों के लागू होने की समय सीमा समाप्त हो चुकी है और 26 मई से ये लागू हो चुके हैं. देखना होगा कि दिल्ली हाई कोर्ट में मामले पर सुनवाई कब होती है और दोनों पक्ष क्या दलीलें पेश करते हैं.

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