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मेड इन जर्मनी काफी नहीं

२५ जनवरी २०१४

जर्मन दवाईयां, जर्मन कारें, जर्मन इलेक्ट्रॉनिक्स. एक समय था जब बस इतना ही जानना लोगों के लिए काफी था कि जो चीज वे खरीद रहे हैं वह जर्मनी में तैयार हुई है. लेकिन अब हालात बदल चुके हैं.

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जर्मनी में तैयार हुए उत्पाद की मार्केट में साख अभी भी है लेकिन उस पर केवल 'मेड इन जर्मनी' का टैग काफी नहीं. सिर्फ लेबल पढ़ कर लोग अब सामान नहीं खरादते. रिसर्च के अनुसार जर्मनी को जरूरत है अपनी ब्रांडों को बेहतर बनाने की.

मेड इन जर्मनी लेबल पर जर्मनी के 70 फीसदी लोगों के अलावा दुनिया भर के लोग विस्वास करते हैं. जर्मन राजनीतिज्ञ और व्यापारी इस बात पर अड़े हुए हैं कि उत्पादों पर मेड इन जर्मनी का लेबल ही उनकी कामयाबी का राज है. जर्मन सरकार की आर्थिक विकास एजेंसी जर्मन ट्रेड एंड इंवेस्ट (जीटीएआई) ने यह पता लगाने की कोशिश की कि आखिर मेड इन जर्मनी के लेबल का बाजार में कितना महत्व है.

शाही घरानों की पसंद

जर्मन उत्पादों की रूस में भारी मांग है, वहां के शाही परिवारों के बीच भी जर्मन कारीगर खासे लोकप्रिय रहे. जीटीएआइ के मॉस्को संवाददाता बेर्न्ड होनेस के अनुसार, "एक जर्मन मशीन रूसी कंपनियों के लिए काफी है ताकि वे अपने ग्राहकों को जर्मन क्वालिटी का आश्वासन दिला सकें." इंटरनेट पर भी ग्राहक जर्मन क्वालिटी की खूब तारीफ करते हैं. रूसी ग्राहकों के लिए मेड इन जर्मनी का मतलब है गुणवत्ता और टिकाऊपन.

मेड इन जर्मनी के लेबल की शुरुआत वास्तव में ब्रिटेन ने 1887 में कमतर गुणवत्ता के उत्पादों के तौर पर की थी लेकिन 19वीं सदी के अंत तक आते आते जर्मन उत्पादों की पहचान बेहतर हुई. लंदन के स्टीफेन एनिंगर कहते हैं कि ब्रिटेन में जर्मन उत्पादों की अच्छी साख बनी हुई है. उनके अनुसार पिछले 110 सालों में कई ब्रिटिश नागरिकों ने जर्मन उत्पादों के साथ गुणनत्ता और विश्वास का संबंध बनाया है. पिछले कुछ सालों में यह ट्रेंड और बढ़ा है.

सिर्फ लेबल काफी नहीं

हालांकि सिर्फ रूस और ब्रिटेन से मिले आंकड़े काफी नहीं. मेड इन जर्मनी के लेबल को लेकर ब्राजील में भी लोगों में विश्वास है लेकिन इसके लिए कीमत चुकाने की इच्छा लोगों में घटती जा रही है. ओलिवर डोने मानते हैं कि जर्मन कंपनियों को ग्राहकों से संवाद स्थापित करने की जरूरत है. यहां उच्च वर्ग के लोग तो जर्मन उत्पादों को जानते और खरीदते हैं जबकि मध्य वर्ग जर्मन ब्रांडों के नामों से भी परिचित नहीं.

बीजिंग से श्टेफनी श्मिट बताती हैं कि चीन में मेड इन जर्मनी सिर्फ बेचने की दलील है लेकिन यह टैग कामयाबी के लिए आश्वस्त नहीं करता. लगभग सभी क्षेत्रों में मुकाबला बढ़ा है. चीन की निर्माण कंपनियों को अक्सर यह बात स्पष्ट करनी होती है कि उनका उत्पाद केवल डिजाइन जर्मनी में हुआ है लेकिन उसका निर्माण चीन में ही हुआ है. श्मिट को इससे यह समझने को मिला कि कंपनी का भविष्य सिर्फ लेबल पर निर्भर नहीं करता बल्कि उसे कामयाबी के लिए चीनी कंपनियों को बढ़ावा देना होगा.

सिर्फ तकनीक काफी नहीं

दिल्ली से काट्रिन पासवांतिस ने बताया कि भारत में कुछ जर्मन उत्पाद तो मेड इन जर्मनी के नाम पर बिक जाते हैं लेकिन सब नहीं. भारतीयों के बीच जर्मन तकनीक का खासा महत्व है लेकिन उनके ऊंचे दामों की वजह से कई बार ग्राहक बस देख कर ही चले जाते हैं. उनके अनुसार रोजमर्रा की चीजों और डिजाइन के क्षेत्र में जर्मन उत्पाद उतने आकर्षक नहीं हैं. उन्होंने बताया जर्मन कारें, मशीनें और किचेन सामग्री भारत में लोकप्रिय हैं.

वॉशिंग्टन से मार्टिन वीकर्ट ने भी कहा कि जर्मन उत्पादों को लोग उसकी गुणवत्ता के लिए तो जानते हैं, लेकिन साथ ही मेड इन जर्मनी उनके लिए महंगे दाम का भी प्रतीक है.

जापान में मेड इन जर्मनी का लेबल ग्राहकों के लिए अहम बात है खासकर जब बात कार या मशीनों की हो. टोक्यो से डेटलेफ रेन ने बताया कि जर्मनी के उत्पाद लोग पर्यावरण के लिए भी अच्छे मानते हैं लेकिन जर्मनी को बार बार अपनी पहचान और साख के बारे में ग्राहकों को याद दिलाते रहने की जरूरत है.

रिपोर्ट: रोल्फ वेंकेल/एसएफ

संपादनः मानसी गोपालकृष्णन

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