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"सिर्फ पैसे नहीं, समाज बदलो"

२२ फ़रवरी २०१३

एशियाई विकास बैंक का कहना है कि सिर्फ आर्थिक नहीं, बल्कि सामाजिक विकास से ही अर्थव्यवस्था को फायदा हो सकता है. दुनिया की 60 फीसदी आबादी वाला एशिया विश्व के सिर्फ 30 फीसदी कारोबार में शामिल है.

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तस्वीर: Punit Paranjpe/AFP/Getty Images

एशियाई बैंक के प्रमुख रजत नाग ने डॉयचे वेले के साथ खास बातचीत में अपनी राय साझा की. उनका कहना है कि भारत और चीन भले ही विश्व विकास के इंजन बन गए हों लेकिन सिर्फ यही दोनों देश पूरी दुनिया का आर्थिक बोझ नहीं उठा सकते. एशियाई विकास बैंक 1966 से टिकाऊ विकास और गरीबी कम करने पर काम कर रहा है. पेश है रजत नाग से बातचीत के कुछ अंश.

डीडब्ल्यूः टिकाऊ विकास एशिया के कई देशों के लिए चुनौती है. चीन में तेजी से विकास तो हो रहा है, लेकिन साथ ही पर्यावरण खासा बीमार हो चुका है. डर है कि आर्थिक विकास इसकी वजह से फीकी पड़ जाएगी. इस संदर्भ में विकास और टिकाऊ विकास कैसे साथ हो सकते हैं?

रजत नागः मेरे हिसाब से यह बात समझना बहुत जरूरी है कि विकास का तभी कोई मतलब है यदि सभी लोगों को इसमें शामिल किया जाए. पूरे एशिया में असमानता बढ़ रही है. हमको इसके बारे में सोचना है कि वे लोग, जो सबसे निचले तबके के हैं, उनको कैसे विकास में शामिल ही नहीं किया जाए, बल्कि इस योग्य बनाया जाए कि उनका योगदान भी हो. इसके साथ कई शर्तें जुडी हैं.

वे लोग शिक्षित होने चाहिए, सेहतमंद होने चाहिए. बहुत जरूरी है कि महिलाओं को भी पूरी प्रक्रिया में शामिल किया जाए. कोई तुक नहीं बनता कि हम मजदूरों की आधी संभव संख्या को देश के विकास में शामिल न करें. साथ ही देश में सभी संस्थानों का ठीक से काम करना बहुत जरूरी है. सिर्फ एक ऐसे देश को विदेश से भी निवेश मिल सकते हैं जिसमें कानून का पालन हो रहा हो.

इसके अलावा एशिया को इस पर सोच विचार करना होगा कि भविष्य में ऊर्जा की बढ़ती मांग किस तरह पूरी की जाए. कैसे दोबारा इस्तेमाल होने वाली ऊर्जा को इस्तेमाल किया जाए जैसे कि पवन या सौर ऊर्जा. हमें पर्यावरण की रक्षा करनी होगी. यह कहना कि 'हम विकास आज करेंगे और साफ सफाई बाद में' संभव नहीं है.

डीडब्ल्यूः आपने बढ़ती असमानता और अमीरों गरीबों के बीच बढ़ती खाई का जिक्र किया, जो एशिया के बहुत सारे देशों के लिए बड़ा बोझ है. भारत का हमेशा नाम इस मामले में लिया जाता है. इस चुनौती का हल ढूंढने के लिए क्या किया जाना चाहिए?

रजत नागः जब सभी लोगों को विकास में शामिल करना है और खाई को कम करना है, तब उसके तीन स्तंभ हैं. पहला, तो विकास ही है और वह तभी संभव है जब निवेश करने के लिए वातावरण ठीक हो और आधारभूत ढांचा भी हो. मैं मानता हूं कि दूसरा स्तंभ उन अवसरों को आजमाने की संभावना है, जिनसे विकास हो सकता है.

भारत में कुशल आईटी विशेषज्ञों की कोई समस्या नहीं. लेकिन उन लोगों का क्या किया जाए जिनके पास डिग्री तक नहीं है. शिक्षा इसलिए सबसे बड़ी प्राथमिकता होनी चाहिए. लेकिन सिर्फ स्कूली शिक्षा नहीं, कारखानों और फैक्ट्रियों में भी प्रशिक्षण की बेहतर व्यवस्था की जरूरत है. तीसरा स्तंभ मेरे विचार से समाजिक सुरक्षा है. क्योंकि सभी प्रयासों के बावजूद कुछ लोग हमेशा तंत्र के बाहर रहेंगे. इन लोगों को सरकारी मदद मिलनी चाहिए, पेंशन या दूसरी तरह सहायता.

भारत सरकार ने इस मामले में बहुत काम किया है. ग्रामीण इलाकों में लोगों को साल में कुछ महीने नौकरी दिलाने के कार्यक्रम काफी सफल रहे हैं. साथ ही सभी लोगों को पासपोर्ट दिलाने का काम भी अच्छा है क्योंकि उसके जरिए सहायता और पैसा उन लोगों तक सीधा पहुंच सकता है, जिनको इसकी जरूरत है. इस सबसे व्यवस्था में कमियों को कम किया जा सकता है. भ्रष्टाचार एशिया के बहुत सारे देशों में आर्थिक और समाजिक, दोनों तरह की समस्या है. सिर्फ कानून बनाने से नहीं, बल्कि उन्हें लागू करना भी जरूरी है.

Rajat Nag im Gespräch mit Priya Esselborn
प्रिया एसेलबॉर्न की रजत नाग के साथ बातचीततस्वीर: Sarah O' Keeffe

डीडब्ल्यूः शिक्षा जरूर भविष्य को बेहतर बनाने के लिए अहम है. लेकिन यदि हम एशिया को देखें, तो दो अलग दृश्य हैं. एक कि कुछ समाज ऐसे हैं जिसमें आबादी बुजुर्ग है या हो रही है, उदाहरण के तौर पर चीन और जापान. दूसरी तरफ ऐसे देश, जिनकी आबादी कम उम्र की है, जैसे भारत. इसके साथ किस तरह की चुनौतियां जुड़ी हैं?

रजत नागः अगर आप एशिया को अपनी संपूर्णता में देखें तब समझ में आता है कि एशिया एक बहुत ही युवा महाद्वीप है, यानी आबादी युवा है. उदाहरण के तौर पर भारत की आबादी की औसतन आयु 25 साल के आस पास है. जापान और दक्षिण कोरीया बुजुर्ग समाज हैं. चीन में आबादी अब बूढ़ी होनी लगी है. लेकिन इसका असर कुछ ही सालों में पूरी तरह से देखने को मिलेगा.

इसका मतलब कि हमको भारत जैसे देश में सुनिश्चित करना होगा कि युवा आबादी के साथ जुड़ा फायदा अभिशाप न बन जाए. अगर युवाओं को अच्छी शिक्षा न मिले, तो ऐसा हो सकता है. संख्या बड़ी नहीं, बल्कि गुणवत्ता ज्यादा होनी चाहिए. मेरे कहने का मतलब है कि अगर लाखों इंजीनियर तैयार किए जा रहे हैं और वे बाजार की जरूरतों को पूरा नहीं कर पा रहे हैं, तो इसका कोई फायदा नहीं. जिन देशों में आबादी बूढ़ी हो रही है, उन्हें इस बात पर विचार करना चाहिए कि कुशल कामगारों को कैसे लाया जाए.

डीडब्ल्यूः एशिया के ज्यादातर देशों के समाजों को रूढ़ीवादी माना जाता है. भारत में दिल्ली गैंग रेप के बाद पुरुषों और महिलाओं के बीच समानता की बहस को नया आयाम मिला है. कैसे महिलाओं को समाजिक प्रक्रियाओं में शामिल किया जा सकता है?

रजत नागः जेंडर बहस मेरे विचार से सही मानसिकता, सही संस्कृति की बहस है. आजकल के जमाने में ऐसा नहीं होना चाहिए कि हम पुरुषों और महिलाओं की समानता की मांग ही करते रहें, यह तो अब तक अमल में आ जाना चाहिए था. शिक्षा बहुत जरूरी है, लेकिन सब कुछ नहीं है. परिवारों में ही पुरुषों और महिलाओं की समानता और इस तरह के विषयों पर बात होनी चाहिए.

सरकारों को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए यदि उनके देशों में महिलाओं के साथ भेदभाव किया जा रहा है. एशिया के बहुत से देशों में सुधारवादी कानून हैं. भारत में बहुत से स्कीम हैं जिनके जरिए लोगों को अपनी बेटियों को शिक्षा देने को प्रोत्साहित किया जा रहा है. महिलाएं अब ज्यादा आसानी से पैसों को जमा कर सकती हैं. यह सब ठीक है. लेकिन जरूरी है कि समाजिक बहस हो, एक जनांदोलन की जरूरत है.

डीडब्ल्यूः चीन और भारत को आने वाली महाशक्तियों की तरह देखा जाता है. इन दोनों की अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही है. इसके उलट, यूरोप जबरदस्त आर्थिक मंदी से जूझ रहा है. कई विशेषज्ञों का कहना है कि चीन और भारत यूरोप को आर्थिक संकट से निकाल सकते हैं. आपका क्या कहना है?

रजत नागः चीन और भारत उभरती शाक्तियां हैं और उनकी वजह से एशिया में विकास हो रहा है. और जब एशिया में विकास होता है तब इसका सकरात्मक असर पूरी दुनिया पर पड़ता है. मुझे नहीं लगता कि चीन अकेला यूरोप को आर्थिक मंदी से निकाल सकता है. लेकिन यदि चीन और एशिया उभर रहे हैं तब यूरोप को काफी फायदा होगा. हम सब आज के वैश्विक दौर में एक दूसरे पर निर्भर हैं. यूरो संकट का असर एशिया पर भी पड़ा.

हमारा अनुमान है कि अगर यूरोप में एक फीसदी कम विकास हुआ, तो इसका असर आसियान देशों पर 0.4 फीसदी कम विकास के तौर पर होगा. व्यापार के तार बहुत मजबूत हैं और वे एक दूसरे से जुड़े हैं. इसलिए अकेले चीन और भारत यूरोप को नहीं बचा सकते, बल्कि सिर्फ मददगार साबित हो सकते हैं.

डीडब्ल्यूः एशिया विवादों का भी इलाका है. दक्षिणी चीनी समुद्र का विवाद चिंताजनक बनता जा रहा है. आपके इस पूरे मामले को लेकर क्या विचार हैं?

रजत नागः एशियाई विकास बैंक के सिद्धातों की वजह से मैं इस मामले पर सीधी टिप्पणी नहीं कर सकता. लेकिन फिर भी कहना चाहूंगा कि शांति और स्थिरता ही आर्थिक विकास की शर्तें हैं. आखिरकार आर्थिक विकास का लाभ पूरे समाज को मिलता है.

डीडब्ल्यूः एशियाई विकास बैंक के अलावा बहुत सारे दूसरे संस्थान भी इलाके में सक्रिय हैं. उदाहरण के लिए विश्व बैंक या संयुक्त राष्ट्र. अकसर सभी एक जैसे क्षेत्रों में भी काम करते हैं. अपनी पहचान बनाए रखना कितना मुश्किल है?

रजत नागः यह सच है कि पूरे इलाके में बहुत सारे संगठन हैं. लेकिन सरकारों की जिम्मेदारी बनती है कि वह तय करे कि किस काम की जिम्मेदारी वह किसे देना चाहती है. हम यह जिम्मेदारी सरकार से छीन नहीं सकते. हम सिर्फ विकास के लिए साझेदार हैं और लोगों के लिए काम करते हैं. सभी संगठनों की अपनी खासियत है. हम एशिया में रहते हुए एशिया के लिए काम करने वाले संगठन हैं इसलिए हम इलाके को अच्छी तरह जानते हैं. इसलिए क्षेत्रीय सहयोग और मेल मिलाप के लिए हम अच्छा काम कर सकते हैं.

(भारत के रजत नाग 2006 से एशियाई विकास बैंक के प्रबंध निदेशक हैं. एशियाई विकास बैंक का मुख्यालय फिलीपींस की राजधानी मनीला में है.)

इंटरव्यूः प्रिया एसेलबॉर्न

संपादनः अनवर जे अशरफ

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