साम्यवादी अत्याचार के शिकार लोगों की स्मृतियां
बर्लिन की दीवार गिरने के पहले दुनिया की एक तिहाई आबादी साम्यवादी देशों में रह रही थी. पूर्वी हिस्से के पतन के बाद दुनिया भर में पुनर्वास का सिलसिला शुरू हुआ जिसमें जर्मनी की खास भूमिका है. .
द चेक रिपब्लिक: मेमोरियल फॉर द विक्टिम्स
सफेद सीढ़ियों पर कांसे की सात मूर्तियां प्राग के पेट्रिन हिल की तलहटी में लगाई गई हैं. 2002 में इसका उद्घाटन हुआ. यह मेमोरियल मूर्तिकार और पूर्व राजनीतिक कैदी ओबराम जुलब्क ने बनाना शुरू किया था. इस पर लिखा है कि यह सिर्फ उन लोगों को समर्पिति नहीं है, "जिन्हें कैद में रखा गया या फांसी दी गई बल्कि उन लोगों को भी जिनकी जिंदगी एकदलीय तानाशाही में तबाह हो गई."
जर्मनी: होहेनशोनहाउसेन मेमोरियल
1951 से 1989 के बीच जीडीआर की खुफिया पुलिस के रिमांड सेंटर में 11 हजार लोगों को कैद किया गया. इससे पहले बर्लिन के पड़ोस में मौजूद इस जगह को सोवियत संघ सत्ता के कथित विरोधियों के लिए खास शिविर के रूप में इस्तेमाल करता था. वहां से कैदियों को नाजियों के बनवाए साखसेनहाउसेन यातना शिविर में ले जाया जाता था.
रोमानिया: प्रतिरोध की याद
2016 से 20 मीटर ऊंचे इस मेमोरियल बुखारा में लेनिन की टूटी मूर्ती के पास यह खड़ा है. फ्री प्रेस स्क्वेयर पर यह स्टालिन के युग की एक अहम इमारत के सामने खड़ा है. इसे बनाने का विचार एसोसिएशन ऑफ फॉर्मर पॉलिटिकल प्रिजनर्स ने दिया था.
अल्बानिया: हाउस ऑफ लीव्स
स्टालिन को हटाए जाने के बाद तिराना में पहला मेमोरियल 2017 में खोला गया. नाजी जमाने में जर्मन अधिकारी इस इमारत को जेल के रूप में इस्तेमाल करते थे. 1945 में जब यहां कम्युनिस्ट सत्ता में आए तो यहां लोगों को मारा गया और प्रताड़ित किया गया. बाद में खुफिया पुलिस इसे हाउस ऑफ लीव्स का इस्तेमाल करने लगी. इसे यह नाम इमारत के बाहरी हिस्से पर चढ़ी बेलों के कारण मिला.
जॉर्जिया: म्यूजियम ऑफ सोवियत ऑक्युपेशन
स्टालिन की मौत को 65 साल हो गए और जॉर्जिया को आजाद हुए 27 साल बीत गए हैं. बावजूद इसके जोसेफ स्टालिन की जन्मभूमि गोरी के इस म्यूजियम में सोवियत तानाशाह को आज भी हीरो के रूप में दिखाया जाता है. फिलहाल यहां की नुमाइश को बदलने की कोई योजना नहीं है. स्टालिन के अपराध जॉर्जिया की नेशनल म्यूजियम के लिए जरूरी मुख्य मुद्दा है जो 2006 में त्बिलिसी में बना.
कजाखस्तान: भुखमरी के शिकार
1932-33 में जो अकाल पड़ा था उस दौरान करीब 15 लाख कजाख मारे गए, यह जबरन जमाखोरी और अव्यवस्था के कारण हुआ था. अस्ताना की यह मूर्तियां उन लोगों की याद में हैं. इसका उद्घाटन 31 मई 2012 को हुआ, जो राजनीतिक दमन के पीड़ितों की याद में बनाया गया.
लातविया: द फ्रीडम मेमोरियल
रिगा में 19 मीटर ऊंचे सिंहासनारुढ़ महिला की मूर्ति वाला यह चौकोर मेमोरियल को मिल्डा कहा जाता है. 1940 में सोवियत कब्जे से पहले 1930 में यह बनाया गया. यह उन लातवियाई लोगों की आजादी और आत्मनिर्णय की इच्छा की निशानी है. बीते दशकों में कई बार विरोध प्रदर्शनों की शुरूआत यहीं से हुई.
मंगोलिया: राजनीतिक दमन के शिकार
रूस और चीन के बीच बसे मंगोलिया ने बीसवीं सदी के ज्यादातर हिस्से में विदेशी कब्जे और शोषण का सामना किया है. लंबे समय तक यह राजनीतिक और आर्थिक रूप से सोवियत संघ पर निर्भर था. 1996 में राजधानी उलान बटोर में राजनीतिक दमन के शिकार लोगों की याद में एक म्यूजियम बनाया गया. एक साल बाद उसमें यह मेमोरियल भी जोड़ दिया गया.
कोरिया: ब्रिज ऑफ फ्रीडम
इमजिन नदी पर बना या पुल बीसवीं सदी की शुरूआत में खड़ा हुआ. उत्तर और दक्षिण कोरिया को जोड़ने वाला यह इकलौता पुल है. 1950 से 1953 के दौरान हुई कोरियाई जंग के दौरान यह सेना के लिहाज से बेहद अहम था. दक्षिण की तरफ लकड़ी के घाटों के साहारे आप सीमा तक जा सकते हैं. यहां आने वाले कई लोग इस जगह पर झंडे और निजी संदेश छोड़ जाते हैं.
कंबोडिया: खमेर रूज के पीड़ित
खमेर रूज के शासन के दौरान करीब 22 लाख कंबोडियाई लोगों को मार दिया गया. यह यहां की आबादी का करीब आधा हिस्सा था. वियतनाम की साम्यावादी सेना के आक्रमण के बाद यहां इंसानी अवशेषों और खोपड़ियों को सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित किया गया ताकि अपराधों का ब्यौरा दर्ज हो सके. आज भी यहां कई ऐसी सामूहिक कब्रें हैं जिनकी तलाश होनी है.
अमेरिका: लोकतंत्र की देवी
वाशिंगटन में 2007 में लोकतंत्र की देवी की प्रतिमूर्ति चीनी छात्रों ने खड़ी की. यह बीजिंग के थियानमेन चौराहे पर 1989 में हुई विद्रोह की निशानी है. स्थानीय राजनेताओं ने पूर्वी यूरोपीय स्वतंत्र सेनानियों जैसे कि वाक्लाव हावेल और लेख वालेसा के साथ मिल कर अमेरिकी राजधानी में इस मेमोरियल को बनाया.
अमेरिका: कात्यिन के पीड़ित
1940 में सोवियत ने लगभग पोलैंड के 4,400 युद्धबंदियों को मार दिया. इनमें ज्यादातर अधिकारी थे. यह हत्याकांड रूसी गांव कात्यिन के पास एक जंगल में हुआ. पोलैंड में यह नरसंहार कई हत्याकांडों का पर्याय बना. न्यू जर्सी में इस मेमोरियल को सोवियत साम्यावाद के पीड़ितों को समर्पित किया गया है जो अमेरिका में पोलैंड के शरणार्थियों के आने के साथ शुरू हुआ था.