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साइकलिंग- डोपिंग का खेल

मृदुला सिंह२५ जुलाई २००७

टूर दे फ्रॉं बस अब खाई में लुढ़कने ही वाला है। और उसको पहाड़ी से गिराने वालों की एक लंबी कतार है पीछे जो उसको गहरी खाई में ढकेलने के अलावा और कुछ ख़ास करते दिख नहीं रही। और वैसे भी ज़्यादा कुछ करने की ज़रूरत भी नहीं। वो स्वयं ही गिरने के रास्ते पर आ चुका था। बस अब ये कुछ ही समय की बात रह गई है

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डोपिंग के काले साये में घिरा साइकलिंग का खेल
डोपिंग के काले साये में घिरा साइकलिंग का खेलतस्वीर: picture-alliance/dpa

��ि एक धड़ाम की आवाज़ के साथ सब ख़त्म हो जाएगा। टी-मोबाइल और जेरोलश्टाइनर जैसे प्रायोजक या फिर व्यावसायिक साइकिल रेस टूर दे फ्रॉं को पैसा उपलब्ध करवाने वाले मुख्य प्रायोजक अब लगातार इस खेल से पल्ला झाड़ने की सोच रहे हैं। पैसा का स्त्रोत ही सुखा देना डोपिंग की समस्या पर सबसे तेज़ धार वाला आघात साबित तो हो सकता है मगर ये इस खेल के लिए भी उतना ही घातक हो सकता है।

डोपिंग के नित नए मामले

कज़ाकिस्तान के अलेक्ज़ैंडर वीनोकुरोव डोपिंग का दोषी! ये ख़बर किसी भोले भाले इंसान क ही चकित कर सकती है, क्योंकि वीनोकुरोव और उनकी असताना टीम कई महीनों से डोपिंग के आरोप से घिरे हैं। और फिर इस टूर दे फ्रांस के दौरान अलेक्ज़ैंडर वीनोकुरोव की रॉलरकोस्टर राईड। पहाड़ी रेस के चरण के दौरान दो बार उनकी साइकिल उलट गई मगर फिर से एक बार इस चरण के विजेता के रूप में उभरे। ये वापसी ऐसी थी कि जैसे हैरी पॉट्टर ने अपनी जादुई छड़ी से छूकर उनकी कमज़ोरी से उन्हें मुक्त कर दिया हो।

इंटरनेशनल साइक्लिंग यूनियन यूसीआई के अध्यक्ष पैट मैक्क़ैद ने कहा था-

’’यूसीआई के नज़रिए से हमारी ज़ीरो टॉलरेंस नीति है। यूसीआई किसी भी व्यक्ति या संगठन को बरदाश्त नहीं करेगा जो अनैतिक कार्यों से इस खेल को धक्का पहुँचा रहे हों। हमें डोपिंग के विरुद्ध संघर्ष में अपनी चुप्पी तोड़नी होगी। ’’

डोपिंग जारी है

मगर इन सबके बीच सबसे बड़ी मूर्खता और दुःस्साहस की बात जो है वो ये कि डोपिंग के बारे इतनी चर्चा होने के बावजूद, इतना शोर-शराबा होने के बावजूद वीनोकुरोव जैसे व्यवसायिक साइकिल धावक डोपिंग करना जारी रखे हुए हैं। ब्लड डोपिंग जैसा कि वीनोकुरोव के मामले में मंगलवार को पता चला या टेस्टोस्टीरोन डोपिंग के तरीकों का जैसा कि जर्मन साइक्लिस्टों मथियास कैस्सलर और पैट्रिक ज़िन्केविट्त्स के मामले में सामने आया है, सालों से परीक्षण के माध्यम से पता लगाया जा सकता है। आखिर ये लोग परीक्षण करने वालों को आखिर कितना मूर्ख समझते होंगे कि आधुनिकतम परीक्षण तरीकों के बावजूद ये इन्हें चकमा देने का प्रयास करना नहीं छोड़ते। और फिर उसपर बिना पलक झपके झूठ बोलते हैं। इसपर जर्मनी के ऐन्टी डोपिंग कार्यकर्ता वैर्नर फ्रांके, जिन्होंने जर्मनी के एकीकरण के बाद पूर्वी जर्मनी के खेल में व्यवस्थागत डोपिंग का पर्दाफाश करने में मदद की थी और हाल ही में टी-मोबाइल के दो डॉक्टरों के विरुद्ध आरोप दाखिल किए थे, ने मई में ही कह दिया था कि डोपिंग जारी है। उनका कहना है-

’’ कंट्रोल तभी कारगर सिद्ध हो सकते हैं अगर वे सही तरीके से किए जाएँ और इसलिए ये टूर भी वैसा ही होगा जैसे पिछले सभी टूर रहे हैं यानि डोपिंग की काली स्याही में रंगा।’’

ये कैसा नियंत्रण

तीन सप्ताह चलने वाली इस प्रतियोगिता के आरंभ में परीक्षण नहीं करवाने के कारण शक के घेरे में आने वाले वाले डेनमार्क के माइकल रासमुस्सन ने हालाँकि बड़ी सफाई से इसे एक प्रशासनिक गलती मानी है। रासमुस्सन बड़े ही आराम से कहते हैं-

’’ मैंने ग़लती की है और यूसीआई ने मुझे इस प्रशासनिक ग़लती के लिए एक रिकॉर्डेड चेतावनी दी है। मैं उसे स्वीकार करता हूँ और इस ग़लती की पूरी ज़िम्मेदारी लेता हूँ। ’’

रासमुस्सन ने कई बार परीक्षण करवाने से इंकार किया इसलिए श्टुट्टगार्ट में सितंबर में होने वाले विश्व चैंपियनशिप में तो वे अपने देश की ओर से भाग नहीं ले सकते मगर टूर दे फ्रां में ज़रूर।

खेल के आरंभ होने से पहले सभी खिलाड़ियों को डोपिंग के विरुद्ध जिस समझौते पर हस्ताक्षर करने होते हैं कि वे प्रतिबंधित दवाओं का सेवन नहीं करेंगे,वो किसी बेकार कागज़ की तरह नहीं है। और इस खेल के प्रति सभी सम्मान को दिखाते हुए कहा जा सकता है कि टूर दे फ्रां 2007 फिर से एकबार टूर दे फार्स यानि भद्दे मज़ाक का टूर बनकर रह गया है। उन साफ़ सुथरे पेशेवरों के लिए हालाँकि ये बहुत दुखद है जो शायद उम्मीद है कि अभी इस खेल में हैं। अब इस खेल को ज़िंदा रहने के लिए केवल एक हैरी पॉटर से भी ज़्यादा कुछ चाहिए।