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समाज

सर्द मौसम और बर्फबारी नहीं अफवाहों से परेशान स्वास्थ्यकर्मी

१९ जनवरी २०२२

कड़ाके की ठंड और बर्फबारी नहीं, इन स्वास्थ्यकर्मियों की सबसे बड़ी चुनौती है अफवाहों से निपटना. ज्यादातर लड़कियां गर्भधारण से जुड़ी अफवाहों के चलते टीका नहीं लगवाना चाहती हैं. लोगों का भरोसा जीतना ज्यादा मुश्किल है.

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Indien COVID-19-Impfaktion in Gagangeer, nordöstlich von Srinagar
गगनगीर में टीका लगातीं मसरत फरीदतस्वीर: Dar Yasin/AP Photo/picture alliance

जनवरी 2022 की एक ठंडी सुबह तेज हवा चल रही थी. जमीन पर फैली बर्फ तेज झोंकों के साथ हवा में उड़ रहे थे. इस भारी ठंड में भी युवा स्वास्थ्यकर्मी मसरत फरीद ने अपना थैला जमाया. उसमें टीके भरे और काम पर निकल पड़ीं. मसरत भारतीय नियंत्रण वाले कश्मीर के एक गांव में रहती हैं. वह स्वास्थ्यकर्मियों की उस टीम का हिस्सा हैं, जो घर-घर जाकर लोगों को टीके लगा रही है.

दूर-दराज के गांवों तक पहुंच रहे हैं स्वास्थ्यकर्मी

जंगलों के बीच बसा कश्मीर का एक छोटा सा गांव है, गगनगीर. यहां बर्फबारी के बाद घुटने तक बर्फ जमा थी. इसी बर्फ में अपना रास्ता बनाते हुए मसरत ने बताया, "हमें संक्रमण से लड़ना है. हमें चलते जाना है, आगे बढ़ते जाना है."

पिछले एक साल में मसरत और उनके सहकर्मियों ने हजारों लोगों को टीके लगाए हैं. उनका टीकाकरण अभियान ज्यादातर गांवों में केंद्रित है. दूर-दराज में बसे इन गांवों तक पहुंचने के लिए मसरत और साथी स्वास्थ्यकर्मियों को मुश्किल रास्ते लांघने पड़ते हैं. लंबी-लंबी पैदल यात्राएं करनी पड़ती हैं.

Indien COVID-19-Impfaktion in Gagangeer, nordöstlich von Srinagar
कठिन रास्तों पर चलना मुश्किल काम है ऊपर से बर्फबारी.तस्वीर: Dar Yasin/AP Photo/picture alliance

सबसे बड़ी चुनौती

हड्डी कंपाने वाली ठंड, बर्फबारी और मुश्किल रास्ते ही उनकी अकेली चुनौतियां नहीं हैं. एक बड़ी चुनौती यह है कि अभी भी कई लोग टीके लगवाने से आनाकानी करते हैं. हिमालय की सर्दियों का सामना करने से ज्यादा मुश्किल ऐसे लोगों की शंका खत्म करना और उनका भरोसा जीतना है.

बर्फ से ढंके एक गांव में चल रहे हालिया टीकाकरण अभियान के दौरान मसरत ने बताया, "ज्यादातर जवान लड़कियां सशंकित हैं. गलत जानकारियों और भरोसे की कमी के चलते वे टीका नहीं लगवाना चाहती हैं."

इन दूर-दराज के इलाकों में टीकों से जुड़ी कई तरह की अफवाहें हैं. एक अफवाह के मुताबिक, टीका लगवाने से महिलाओं के बच्चा पैदा करने की क्षमता पर ना केवल असर पड़ता है, बल्कि टीके के चलते मुमकिन है कि गर्भधारण हो ही ना सके. मसरत बताती हैं, "हम केवल कोरोना से सुरक्षित करने के लिए उन्हें टीके नहीं लगा रहे हैं. हमें उन्हें टीकों के बारे में सही जानकारी भी देनी होगी. उन्हें जागरूक करना होगा, ताकि हम उनका विश्वास जीत सकें."

Indien COVID-19-Impfaktion in Gagangeer, nordöstlich von Srinagar
हर रोज अपना बक्सा लेकर निकल जाती हैं मसरत फरीद.तस्वीर: Dar Yasin/AP Photo/picture alliance

सावधानी के तहत लगाए जा रहे हैं बूस्टर

इस महीने शुरू हुए टीकाकरण के नए अभियान के तहत स्वास्थकर्मी अब 15 से 18 साल तक के लड़के-लड़कियों को भी टीका लगा रहे हैं. साथ ही, स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे 60 साल से ऊपर के बुजुर्गों को बूस्टर भी लगाए जा रहे हैं.

भारतीय स्वास्थ्य अधिकारी बूस्टर को एहतियातन दी जा रही खुराक बताते हैं. स्वास्थ्य कारणों से जोखिम वाली श्रेणी में आने वाले लोगों को 2021 में शुरू हुए टीकाकरण अभियान के तहत शुरुआती दौर में वैक्सीन लगाई गई थी. वैक्सीन के चलते बनी रोग प्रतिरोधक क्षमता अब उनमें कमजोर हो सकती है. ऐसे लोगों को एहतियातन बूस्टर लगाए जा रहे हैं.

पिछले साल के मुकाबले बदली हैं स्थितियां

जफर अली स्वास्थ्य अधिकारी हैं. वह बताते हैं कि इस साल टीकाकरण अभियान के आगे सबसे बड़ी चुनौती खराब मौसम की है. यह स्थिति पिछले साल से अलग है. 2021 के टीकाकरण अभियान के दौरान जफर अली के कुछ सहकर्मियों को स्थानीय लोगों ने परेशान किया था.

उस समय कई लोग सोचते थे कि टीका लगाने से नपुंसकता होती है. यह भी अफवाह थी कि वैक्सीन के बेहद गंभीर साइड इफेक्ट हो सकते हैं. यहां तक कि जान भी जा सकती है. इन अफवाहों के चलते कई स्वास्थ्यकर्मियों को काफी परेशानी उठानी पड़ी थी. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, स्वास्थ्यकर्मी अब तक यहां की 72 प्रतिशत से अधिक आबादी को टीके की दोनों खुराक लगा चुके हैं.

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लोगों को समझाना सबसे ज्यादा मुश्किल है.तस्वीर: Dar Yasin/AP Photo/picture alliance

पैदल चढ़ाई करके ऊंचाई के गांवों तक पहुंचे स्वास्थ्यकर्मी

हाल ही में स्वास्थ अधिकारी ऊंचाई के कुछ ऐसे गांवों में भी पहुंचे, जिनका भारी बर्फबारी के चलते नजदीकी शहरों से संपर्क टूट गया था. अधिकारी पैदल चढ़ाई कर इन गांवों में आए और लोगों को टीके लगाए. इनमें से ही एक गांव है, खाग. यह जंगलों के बीच बसा है.

यहां के ज्यादातर निवासी जनजातियों से हैं. वे मिट्टी, पत्थर और लकड़ी के बने घरों में रहते हैं. टीम ने घर-घर जाकर लोगों को टीका लगाया. अरशा बेगम नेत्रहीन हैं. उन्हें भी बूस्टर लगाया गया था. वह बताती हैं, "इस कड़ाके की सर्दी में मेरे लिए अस्पताल जाना संभव नहीं है. मेडिकल टीम मुझे मेरे घर में टीका लगाकर गई. मैं उनकी बहुत आभारी हूं."

एसएम/एनआर (एपी)

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