समाधि ले चुकी बस्तियां
प्राकृतिक आपदाएं और बांध कई कस्बों को निगल जाते हैं. लेकिन कुछ जिद्दी ढांचे ऐसे भी होते हैं जो देर सबेर बाहर आ ही जाते हैं.
टिहरी, भारत
1815 में गंगा नदी के किनारे बसाया गया शहर टिहरी, 200 साल बाद जलमग्न हो गया. भारत के सबसे ऊंचे बांध ने भागीरथी नदी को 260 मीटर ऊंची दीवार से रोक दिया. पीछे एक विशाल झील बनी और टिहरी उसमें समा गया.
आजेल ब्रिज, जर्मनी
जर्मनी के हेसे प्रांत में जब बांध बनाया जा रहा था तो तीन गांव खाली कराये गये. पूरा इलाका पानी में डूब गया. तब किसी को उम्मीद नहीं थी कि एक दिन डूबा पुल फिर से बाहर आ जायेगा. लेकिन सूखे के चलते अब यह पुल बीच बीच में बाहर निकल आता है.
चर्च टावर, इटली
इटली में बाढ़ ने 14वीं शताब्दी के एक गांव को डुबो दिया. 1950 की उस बाढ़ के चलते लोग ऊपरी इलाकों में बस गये. लेकिन आज भी सेंट काथेरीन्स पैरिस चर्च का टावर नीचे डूबे ग्राउन गांव की याद दिलाता है.
क्वेचुला टेंपल, मेक्सिको
मध्य मेक्सिको में बना मालपासो बांध देश की बड़ी आबादी की प्यास बुझाता है. इससे बिजली भी मिलती है. लेकिन 1950 के दशक में बने इस बांध के चलते हजारों लोगों को विस्थापित होना पड़ा. 2002 और 2015 में बहुत ज्यादा सूखा पड़ने पर चार सौ साल पुराने मंदिर के अवशेष फिर से नजर आये.
गेअमाना गांव, रोमानिया
1000 से ज्यादा बाशिंदो वाला गेआमाना गांव तांबे के खनन के चलते उजड़ गया. खनन उद्योग के मलबे के पानी में घुलने से पूरे गांव में गाद भर गयी. अब गांव की सिर्फ एक इमारत का सिर ही नजर आता है.
फायोन गांव, स्पेन
चर्च का टावर गवाही देता है कि पानी के नीचे बहुत कुछ दबा हुआ है. 1960 के दशक में बार्सिलोना शहर को बिजली और पानी मुहैया कराने के लिए तीन बांध बनाए गए. इन बांधों ने भी गांव डुबोये. आज गांव के ऊपर मछुआरे नाव लेकर पहुंचते हैं. वहां काफी मछलियां मिलती हैं.
साक्सोनी अनहाल्ट, जर्मनी
कभी जर्मनी की औद्योगिक क्रांति का इंजन माने जाने वाले इस इलाके में अब सन्नाटा है. ज्यादातर खदानें बंद हो चुकी हैं. खनन के चलते जमीन काफी कमजोर भी हो चुकी है. 1928 से अब तक यहां के बांशिदें अपना घर 1500 मीटर पीछे खिसका चुके हैं. इलाके में अक्सर भूस्खलन की घटनाएं होती रहती है.
काल्याजिन, रूस
मॉस्को से 150 किलोमीटर दूर वोल्गा नदीं पर 140 किलोमीटर लंबा और चार किलोमीटर चौड़ा पानी का भंडार बनाया गया है. 100 मीटर गहराई वाले बांध के चलते 1940 में काल्याजिन इलाका डूब गया. अब वहां सिर्फ 1801 में बनाये गये एक चर्च का घंटाघर दिखता है.