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"सबूतों पर आधारित है गांधीजी की किताब"

४ अप्रैल २०११

महात्मा गांधी पर विवादित किताब लिखने वाले जोजेफ लेलीवेल्ड का दावा है कि उन्होंने अपने मन से कोई बात नहीं लिखी है, बल्कि जो भी लिखा है उसका सबूत है. लेखक का कहना है कि ये सबूत भारत में मौजूद हैं और प्रकाशित हो चुके हैं.

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तस्वीर: AP

लेलीवेल्ड की किताब ग्रेट सोलः महात्मा गांधी एंड हिज स्ट्रगल विद इंडिया अभी भारत में उपलब्ध नहीं है. इसका मतलब कि किताब पर जो भी विवाद हो रहा है, वह इसकी समीक्षा पर आधारित है. खास तौर पर ब्रिटेन के डेली मेल ने इसकी समीक्षा को विस्तार से छापा है. पिछले 28 मार्च को डेली मेल ने जो समीक्षा छापी, उसमें किताब के हवाले से कहा गया है कि गांधीजी समलैंगिक भी थे और उनका संबंध पुरुसिया के वास्तु शिल्पकार और बॉडी बिल्डर हरमन कालेनबाख के साथ था.

पर किताब के लेखक अखबार के दावे से अलग कह रहे हैं. लेलीवेल्ड ने कहा, "यह कोई सनसनीखेज किताब नहीं है. मैंने नहीं कहा है कि गांधीजी का कोई पुरुष प्रेमी था. मैंने कहा है कि वह एक वास्तु शिल्पकार के साथ चार साल तक रहे, जो बॉडी बिल्डर भी था. ये पत्र महात्मा गांधी के लिखे हुए हैं और गांधी के समग्र कार्यों (खंड 96) में भारत सरकार द्वारा प्रकाशित भी किए जा चुके हैं. वे भारत के राष्ट्रीय अभिलेखागार में सुरक्षित हैं. यह खंड सबसे पहले 1994 में प्रकाशित किया गया. दूसरे शब्दों में मैंने जो सबूत इस्तेमाल किए हैं, उसमें खबर जैसी कोई बात नहीं है."

किताब को लेकर सबसे ज्यादा विवाद गांधीजी के उन पत्रों को लेकर है, जिनमें उनके सेक्स जीवन का जिक्र है. भारतीय लेखागार से संपर्क किए जाने पर इस बात का प्रमाण मिला है कि गांधीजी और हरमन कालेनबाख के बीच बेहद नजदीकी रिश्ता था. लेकिन इसके आधार पर डेली मेल किताब की समीक्षा करते हुए गांधीजी को उभयलिंगी (बाइसेक्सुअल) या समलैंगिक बताया है.

गुजरात सरकार ने किताब रिलीज होने से पहले ही इस पर पाबंदी लगा दी है, जबकि महाराष्ट्र सरकार भी ऐसा करने की सोच रही है. लेलीवेल्ड ने इसे दुर्भाग्यपूर्ण बताया. उन्होंने पीटीआई को ईमेल से दिए इंटरव्यू में कहा, "जो देश (भारत) खुद को लोकतांत्रिक कहता है, वहां ऐसी किताब पर पाबंदी दुर्भाग्यपूर्ण है, जिसे किसी ने पढ़ा तक नहीं है. उन लोगों ने भी नहीं, जो इस पर प्रतिबंध लगा रहे हैं. उन्हें कम से कम उन पन्नों को देख तो लेना चाहिए, जिसके आधार पर उन्हें लग रहा है कि इससे उनके भावनाएं आहत हुई हैं. मुझे बहुत बुरा लग रहा है कि भारत में बहस की गुंजाइश नहीं है."

लेलीवेल्ड की किताब में लिखा गया है कि गांधीजी ने कालेनबाख के पत्रों को नष्ट कर दिया था क्योंकि कालेनबाख नहीं चाहते थे कि उनके रिश्तों की बात सार्वजनिक हों. उन्होंने लिखा है, "लेकिन गांधीजी के लिखे गए पत्र सुरक्षित हैं. उनके वंशजों ने इसे सुरक्षित रखा और बाद में इसकी नीलामी हुई. इसके बाद ही भारत के राष्ट्रीय लेखागार को ये पत्र मिले और बाद में इन्हें प्रकाशित किया गया."

लेखक का कहना है, "गांधीजी के जीवन पर काम करने वाले एक सम्मानित विद्वान ने इस रिश्ते को समलैंगिक की बजाय समान लिंग के प्रति आकर्षण (होमोएरोटिक) बताया है. यह भी दोनों के संबंध को परिलक्षित करता है. यह बात उस वक्त भी कोई रहस्य नहीं थी कि गांधीजी ने अपनी पत्नी को छोड़ कर एक पुरुष के साथ रहने का फैसला किया था. यह बात अभी भी कोई रहस्य नहीं है." लेलीवेल्ड का कहना है कि सिर्फ वे पत्र उपलब्ध हैं, जो गांधीजी ने कालेनबाख को लिखे. कालेनबाख ने जो पत्र लिखे, वे नष्ट हो चुके हैं.

लेलीवेल्ड का कहना है कि जो सबूत मौजूद हैं, उनकी दो तरह से भी व्याख्या हो सकती है. इस पर सिर्फ कयास लगाया जा सकता है. यह भी हो सकता है कि सेक्स भावनाओं पर लगाम लगाने के लिए दोनों करीब आए हों.

किताब में इस बात का जिक्र है कि कालेनबाख पर गांधीजी के व्यक्तित्व का क्या असर पड़ा. कालेनबाख ने 1908 में अपने भाई सिमोन को पत्र लिखा, "पिछले दो साल से मैं मांस नहीं खा रहा हूं. पिछले एक साल से मैंने मछली को छुआ तक नहीं है और पिछले 18 महीनों से मैंने सेक्स नहीं किया है. मैंने अपने नियमित जीवन को आसान बनाने के लिए इसे बदल दिया है."

रिपोर्टः प्रसून सोलवलकर (पीटीआई)/ए जमाल

संपादनः ओ सिंह

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