सनसनीखेज मैच, लचर ड्रॉ
८ नवम्बर २०१०बेशक पहली पारी में सहवाग की धुंआधार सेंचुरी और 173 रनों की पारी थी, द्रविड़ ने भी सेंचुरी बनाने की आदत वापस लौटाई, न्यूजीलैंड का जवाब भी मार्के का था, राइडर और नए खिलाड़ी विलियमसन ने सेंचुरी ठोंकीं. लेकिन चौथा दिन आते-आते यह सब भुला दिया गया था. भारत के बल्लेबाजों ने मैच को रोमांचक बना दिया. 15 रनों में उनके पांच दिग्गज ढह गए और सारी दुनिया से आवाज उठी : टेस्ट क्रिकेट जिंदाबाद! उसका कोई जवाब नहीं, भले ही ट्वेंटी20 या टेन10 आ जाए.
लेकिन एक था लक्ष्मण, रामायण में जिसने इंद्र को जीतने वाले को पछाड़ा था. वह राम के साए में होता था, दिखाई नहीं देता था. इस बार भी जब वह मैदान में उतरा, सबने कहा, कई बार उसने बचाया है, क्या हर बार बचाएगा. हां, उसने बचाया. कप्तान धोनी के साथ पचास रनों की साझेदारी हुई. लेकिन जब धोनी आउट हो गए, भारत के क्रिकेट प्रेमियों ने कहा कि अब मामला खत्म है, बस चार पुछल्ले रह गए हैं.
और एक पुछल्ला पुच्छल तारा बन गया. भज्जी को पहली पारी में एक विकेट के लिए 112 रन देने पड़े थे. वह इस इरादे के साथ मैदान में उतरे, कि कम से कम इतने रन तो बनाने ही हैं. इतने ही रन नहीं, बल्कि भज्जी के बल्ले-बल्ले बल्ले से 115 रन निकले. खेल सहवागी अंदाज का, आउट भी हुए सहवाग के बिंदास अंदाज में.
और कुछ था इस मैच में? हां, कप्तान धोनी ने टॉस जीता था. मैच में 22 नहीं, 23 खिलाड़ी थे. अंपायर डेविस ने जिस अंदाज से 17वीं सेंचुरी की ओर जा रहे लक्ष्मण को आउट किया, क्या कोई गेंदबाज करेगा. अगली ही गेंद पर इसी अंदाज में जहीर भी आउट. लेकिन वेटोरी को अगली गेंद पर विकेट न देना - मजा थोड़ा किरकिरा हो गया.
भज्जी की सेंचुरी हो गई, लेकिन भारत बल्लेबाजी करता रहा. न्यूजीलैंड ने गेंदबाजी के लिए टेलर और मैककुलम को उतारा. लेकिन भारत के बल्लेबाज ठुकुर-ठुकुर रन बनाते रहे. टेलर ने न सिर्फ खतरनाक हो चुके भज्जी को वापस भेजा, बल्कि 4.4 ओवरों में 4 रन देकर दो विकेट लिए. भारत के बल्लेबाज खेलते रहे, और न्यूजीलैंड ने वह कर दिखाया, जो ऑस्ट्रेलिया के बूते की बात नहीं थी - वे भारत के 20 विकेट चटका सके, अपनी दूसरी पारी में धोनी को गेंदबाजी के लिए मजबूर कर सके. रैना ने दिखा दिया कि वह बल्लेबाजी में कभी कभी पीछे रह सकते हैं, लेकिन हरफनमौला हैं. विकेट कीपिंग भी कर लेते हैं.
और मैच ड्रॉ हो गया. अब नारा है - हैदराबाद चलो !
रिपोर्ट: उज्ज्वल भट्टाचार्य
संपादन: ए कुमार