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सड़कों पर घूमतीं गायें किस पार्टी के घोषणापत्र में हैं?

५ अप्रैल २०१९

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के दौरान गोरक्षा शब्द बार बार सुनने को मिला. गायों की रक्षा पर बड़ा जोर दिया गया. लेकिन आवारा घूमने वाली गायें रघुवीर मीणा जैसे किसानों के लिए मुसीबत बन गई हैं.

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Indien Chitrakoot - Streunendes Vieh
तस्वीर: DW/S. Mishra

2014 के चुनाव में जब नरेंद्र मोदी की भारतीय जनता पार्टी ने प्रचंड बहुमत हासिल किया था तो उसमें किसानों का भी बहुत योगदान था. लेकिन गायों को बचाने के लिए जिस पैमाने पर अभियान चलाया गया, वह अब कई जगहों पर किसानों के लिए सिरदर्द साबित हो रहा है. जैसे हालात बने हैं, उनमें कोई भी गायों को हाथ लगाने से बचता है.

ऐसे में, राजस्थान के पिलानी जिले में रहने वाले रघुवीर मीणा जैसे किसानों को समझ नहीं आ रहा है कि वे गायों से कैसे अपनी फसल को बचाएं. आवारा घूमने वाले गायों से चने की अपनी फसल को बचाना उनके लिए चुनौती बन गया है. वह कहते हैं, "हमने सब कुछ करके देख लिया. खेत में पुतला भी खड़ा किया और कांटेदार बाड़ भी लगाई, लेकिन आवारा मवेशियों को फसल खाने से नहीं रोक पा रहे हैं."

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वह चुनावों में किसानों की समस्याओं की तरफ ध्यान नहीं दिए जाने पर नाराजगी जताते हैं. वह कहते हैं, "वे लोग बस अपनी राजनीति खेल रहे हैं. उन्हें गरीब किसानों की कोई परवाह नहीं है." मोदी के सत्ता में आने से पहले भी राजस्थान और दूसरे कई राज्यों में गोकशी और बीफ खाने पर बैन था. लेकिन अब इस बारे में बने कानूनों को सख्ती से लागू किया जा रहा है.

आलोचकों का कहना है कि मोदी की भारतीय जनता पार्टी भारत में उग्र हिंदुत्व की राजनीति के जरिए हिंदुओं का दबदबा कायम करना चाहती है जबकि 1.3 अरब की आबादी वाले देश में मुसलमान, ईसाई और सिख जैसे दूसरे अल्पसंख्यक समुदायों की भी अच्छी खासी आबादी है. उनका कहना है कि बीजेपी ने छुटभैये हिंदू गुटों को इतना मजबूत बना दिया है कि वे बीफ खाने, गोकशी करने और गायों का कारोबार करने के लिए मुसलमानों और दलितों पर हमले कर रहे हैं और उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हो रही है.

मानवाधिकार संस्था ह्यूमन राइट्स वॉच का कहना है कि मई 2015 से दिसंबर 2018 के बीच भारत के अलग अलग इलाकों में लिंचिंग की घटनाओं में 44 लोग मारे गए. ऐसी एक घटना राजस्थान में भी हुई. बीजेपी का कहना है कि वह हर तरह की हिंसा के खिलाफ है, लेकिन हमले और कड़े कानूनों के डर से मवेशियों का कारोबार प्रभावित हो रहा है.

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गोरक्षा के लिए चले अभियान के कारण अब किसान अपने बूढ़े मवेशियों को बूचड़खानों को बेचने से डरते हैं. इसके बजाय वे उन्हें यूं ही छोड़ देते हैं, जिससे आवारा जानवरों की संख्या बढ़ रही है. इससे सड़कों पर मवेशियों की वजह से होने वाले हादसे बढ़े हैं और देहाती इलाकों में वे फसलों को भी नुकसान पहुंचा रहे हैं.

2012 में हुई पशुगणना के मुताबिक आवारा मवेशियों की संख्या 52 लाख थी. लेकिन उसके बाद से इनकी संख्या में अच्छा खासा इजाफा देखा गया है. राजस्थान के चुरु जिले में एक किसान सुमेर सिंह पुनिया कहते हैं, "इन गोरक्षकों की वजह से कोई भी गायों को छूने की हिम्मत नहीं करता है. लेकिन इनके रहने के लिए पर्याप्त गोशाला नहीं हैं. जो गोशाला हैं वहां इतनी भीड़ है कि हर रोज एक गाय मर रही है."

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वह कहते हैं, "हम हिंदू हैं. हम गायों को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहते, लेकिन इतनी सारी आवारा गायों को रखना और खिलाना हमारे बस में नहीं हैं. हम अपनी जरूरतें ही मुश्किल से पूरी कर पा रहे हैं." राजस्थान भारत में अकेला ऐसा राज्य था जहां सरकार में अलग से एक गाय मंत्री को नियुक्त किया गया था. लेकिन बीजेपी की नीतियों से लोगों की नाराजगी का ही नतीजा है कि हालिया विधानसभा चुनाव में वहां कांग्रेस को सत्ता मिली.

बीजेपी ने पिछले आम चुनावों में 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने का वादा किया था, जिससे देश के 26.2 करोड़ किसानों को एक आस मिली थी और उन्होंने बड़ी संख्या में बीजेपी का साथ दिया. लेकिन अब बीजेपी पर अपने वादों को पूरा ना करने के आरोप लग रहे हैं.

पिलानी में ग्राम्य भारत जन चेतना यात्रा नाम के एक सामाजिक संगठन के प्रमुख संदीप कलजा कहते हैं कि आवारा गायों की वजह से होने वाली समस्याओं को राजनीतिक दलों को अपने घोषणापत्र में जगह देनी चाहिए. वह कहते हैं, "एक किसान सिर्फ एक गाय की देखभाल कर सकता है. लेकिन यहां पर सैकड़ों की संख्या में गायें घूम रही हैं."

एके/एमजे (एएफपी)

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