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सऊदी अरब में महिलाओं के लिए खुलेंगे दरवाजे

१० मई २०१७

जब सऊदी अरब को महिला अधिकारों के आयोग में चुना गया तो सदस्य चुनने वाली संस्था संयुक्त राष्ट्र की बड़ी आलोचना हुई. अब मजबूर सऊदी अरब अपने यहां महिलाओं को ज्यादा अधिकार देने पर विचार रहा है.

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Saudi Arabien Unterhaltung Frauen
तस्वीर: Getty Images/A.Hilabi

सऊदी अरब के किंग सलमान ने विवादास्पद पुरुष गार्जियन सिस्टम की समीक्षा करने का फैसला लिया है. इस सिस्टम में बदलाव से महिलाओं को अपनी जिंदगी पर ज्यादा अधिकार मिल जायेगा. सऊदी अरब वह देश है, जहां ऐसी महिलाओं और पुरुषों को, जो एक दूसरे के रिश्तेदार नहीं हैं, अलग रखना सरकारी नीति है.  वहां महिलाओं को पुरुषों की निगरानी में रहना पड़ता है, उन्हें गाड़ी चलाने की भी अनुमति नहीं है. यात्रा करने, पढ़ाई करने और यहां तक कि इलाज कराने के लिए भी उन्हें पुरुष अभिभावक की मंजूरी चाहिए, जो पिता, पति या बेटा होता है. बुरके के बिना वे घर से बाहर भी नहीं निकल सकतीं.

अब सऊदी अरब के राजा के आदेश के बाद महिलाएं गार्जियन की मंजूरी लिये बिना शिक्षा और इलाज जैसी सरकारी सुविधाओं का लाभ उठा सकेंगी. ये बदलाव राजा के उस आदेश के बाद आया जिसमें उन्होंने अधिकारियों ने उन सेवाओं की सूची बनाने के लिए कहा था, जिसके लिए गार्जियन की मंजूरी चाहिए. इसके बाद अधिकारी कुछ सरकारी सुविधाएं देने के लिए बाध्य हो गये. जेद्दाह स्थित इस्लामिक सहयोग संगठन ओआईसी की निदेशिका महा अकील कहती हैं कि महिलाएं अब पढ़ पाएंगी, सरकारी और गैरसरकारी कंपनी में नौकरी कर पाएंगी और अदालत में अपना प्रतिनिधित्व कर पाएंगी.

अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संस्था ह्यूमन राइट्स वॉच की सैरा लेया व्हिटसन ने गार्जियन व्यवस्था को खत्म करने की मांग करते हुए कहा है कि किंग सलमान के फैसले का सीमित असर होगा यदि अधिकारी साहसिक कदम न उठाएं और गार्जियन सिस्टम को हमेशा के लिए खत्म कर दिया जाए.

सऊदी राजा का फैसला महिलाओं को तोहफे में नहीं मिला है. सारी दुनिया में कट्टर वहाबी इस्लाम के प्रचार के लिए बदनाम सऊदी अरब तेल की कीमत गिरने के बाद से गंभीर आर्थिक चुनौतियां झेल रहा है. तेल पर निर्भरता खत्म करने के लिए उसे अर्थव्यवस्था को व्यापक बनाने की जरूरत है और महिलाओं को शामिल किए बिना यह आसान नहीं है. इसलिए महिलाओं के लिए बंद दरवाजे खोलने की शुरुआत 2011 में ही हुई, जब सरकार को सलाह देने वाली शूरा में महिलाओं को शामिल किया गया. 2012 में उन्हें ओलंपिक खेलने की मंजूरी भी दी गयी. लेकिन ग्लोबल जेंडर गैप में 144 देशों में वे अब भी 141वें नंबर पर हैं.

रिपोर्ट: महेश झा (रॉयटर्स)