सऊदी अरब में महिला कार्यकर्ता को मौत की सजा का विरोध
२४ अगस्त २०१८29 साल की इसरा अल घोमघम शिया मुसलमान हैं, जिन्हें उनके पति मूसा अल हाशीम के साथ 2015 में गिरफ्तार किया गया था. आरोप था कि इन दोनों ने शिया बहुल कातिफ प्रांत में अरब क्रांति के बाद सरकार विरोधी प्रदर्शन आयोजित किया था. इस दौरान शिया अल्पसंख्यकों ने बराबरी की मांग करते हुए सऊदी अरब की सुन्नी बहुल सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किए थे. कोर्ट में पेश दस्तावेज बताते हैं कि विरोध प्रदर्शन को दिखाने के लिए दोनों ने फेसबुक और यू-ट्यूब का सहारा लिया. रियाद की विशेष अदालत ने आतंक-विरोधी कानून के तहत इसरा और पांच अन्य के सिर कलम करने की मांग की थी. यह पहला मौका है जब सऊदी अरब ने किसी महिला को मौत की सजा सुनाई हो. माना यह जा रहा है कि इसरा के जरिए सरकार ने अल्पसंख्यक शिया समुदाय में बढ़ रहे विरोधी आवाजों को दबाने की कोशिश की है.
पिछले साल 146 को मौत की सजा
सऊदी अरब में इन दिनों महिला कार्यकर्ताओं के प्रति सरकार का रुख कड़ा हो गया है. आंकड़ें बताते हैं कि सुरक्षा का हवाला देकर इस साल कम से कम 13 महिला कार्यकर्ताओं को सरकार ने गिरफ्तार किया है. इनमें से कुछ रिहा हो गईं और कुछ अब भी सलाखों के पीछे हैं. फिलहाल कार्यकर्ताओं ने अब इस फैसले के खिलाफ अपील की है, जिस पर अक्टूबर में फैसला लिया जाएगा.
अगर फैसला बरकरार रहता है तो इसे आखिरी पुष्टि के लिए किंग सलमान को भेजा जाएगा, जिन्होंने तकरीबन हर मौत की सजा पर अपनी हामी की मुहर लगाई है. एमनेस्टी इंटरनेशनल के मुताबिक, पिछले साल 146 लोगों को यह सजा दी गई. रियाद की अदालत के फैसले से मानवाधिकार कार्यकर्ताओं में रोष है और उनका कहना है कि सऊदी सरकार शांतिपूर्वक प्रदर्शन करने वाले एक्टिविस्टों को आतंकवादियों जैसा मान रही है. समर बादावी की गिरफ्तारी के बाद तनावपूर्ण चल रहे संबंधों के बीच कनाडा ने भी घोमघम की सजा पर चिंता जताई है.
मानवाधिकार संगठनों ने की निंदा
जर्मनी स्थित यूरोपीयन सऊदी ऑर्गनाइजेशन फॉर ह्यूमन राइट्स ने फैसले का विरोध करते हुए घोमघम की तुरंत रिगाई की मांग की है. संगठन ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि घोमघम को बीते साल से कैद में रखा गया है और इस दौरान उन्हें वकील तक नहीं दिया गया. पिछले दिनों संगठन के निदेशक अली अदुबिसी ने ट्वीट किया, ''फिलहाल इसरा सुरक्षित है.'' उन्होंने डॉयचे वेले को बताया कि जेल की खराब हालत की वजह से इसरा का स्वास्थ्य बिगड़ रहा है. संगठन की रिपोर्ट मुताबिक, "कुछ सऊदी वकीलों ने इसरा का केस लड़ने की इच्छा जाहिर की है."
मानवाधिकार संगठन ह्यूमन राइट्स वॉच की रिपोर्ट में भी सऊदी सरकार के फैसले के निंदा की गई है. एनजीओ की मध्य एशिया की डायरेक्टर सारा लियु विटसन ने कहा है, "इसरा ने कोई हिंसा नहीं की, ऐसे में मौत की सजा का ऐलान बेबुनियाद है." ह्यूमन राइट्स वॉच जैसे अन्य मानवाधिकार संगठन किसी भी सूरत में मौत की सजा का विरोध करते हैं. सऊदी अरब के कानून में भी सजा-ए-मौत का प्राविधान अपवाद मामलों के लिए है, लेकिन इसरा के केस के बाद देश के अंदर और बाहर विरोध के सुर तेज हो गए हैं.
राजकुमार से पूछे जा रहे सवाल
महिला कार्यकर्ताओं के प्रति सऊदी सरकार के कड़े रुख का विरोध इसलिए भी हो रहा है कि सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान समाज में सुधार लाने की कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने महिलाओं के कार ड्राइविंग, संगीत सुनने या सिनेमा देखने का पक्ष लिया था, जिससे उनकी छवि उदारवादी नेता की बन गई थी.
इसरा और बदावी प्रकरण के बाद लोगों ने सोशल मीडिया पर सवाल पूछना शुरू किया है कि क्या प्रिंस वाकई अपने वादे के मुताबिक नया सऊदी अरब विकसित कर पाएंगे? इस पर विटसन का कहना है कि अगर प्रिंस वाकई सुधार करना चाहते हैं तो उन्हें फौरन कदम उठाने होंगे, जिससे उनके देश में किसी भी एक्टिविस्ट के साथ अन्याय न हो सके.
सऊदी अरब को बदलने चला एक नौजवान शहजादा