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सऊदी अरब के 'भारत समर्थक रवैये' पर पाकिस्तान में निराशा

अब्दुल सत्तार, इस्लामाबाद
७ फ़रवरी २०२०

कश्मीर मुद्दे को लेकर सऊदी अरब के रुख पर पाकिस्तान में गहरी नाराजगी है. पाकिस्तान चाहता था कि मुस्लिम देशों के संगठन ओआईसी के विदेश मंत्रियों की कश्मीर मुद्दे पर बैठक बुलाई जाए लेकिन सऊदी अरब ऐसा नहीं चाहता.

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Saudi-Arabien Mekka Gipfel islamischer Staaten
तस्वीर: AFP/Saudi Royal Palace/B. Al-Jaloud

सऊदी अरब के शहर जेद्दाह में नौ फरवरी को होने वाले ओआईसी मंत्रिपरिषद के सम्मेलन की तैयारियां जारी हैं. लेकिन पाकिस्तानी अखबार डॉन की एक रिपोर्ट के मुताबिक सऊदी अरब नहीं चाहता कि कश्मीर के मुद्दे पर ओआईसी के विदेश मंत्रियों की बैठक बुलाई जाए, बल्कि वह पाकिस्तान की इच्छा के विपरीत इस मुद्दे पर दूसरे प्रस्ताव दे रहा है. ऐसे में, इस बात की कोई संभावना नहीं है कि सम्मेलन का कोई सत्र भारत प्रशासित कश्मीर पर हो, जिसकी मांग पाकिस्तान कर रहा है.

पाकिस्तान में विदेश मामलों के कई जानकारों ने सऊदी अरब के रवैये पर अफसोस जताया है और सरकार से मांग की है कि वह सऊदी अरब के साथ अपने रिश्तों की समीक्षा करे. कराची यूनिवर्सिटी में अंतरराष्ट्रीय संबंध विभाग के पूर्व प्रमुख डॉ. तलत ए वजारत ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा, "समय आ गया है कि हम सऊदी अरब के साथ अपने संबंधों की समीक्षा करें क्योंकि सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात का रवैया बहुत भारत समर्थक है और वे पाकिस्तान का समर्थन नहीं करना चाहते. पाकिस्तान को उन देशों की कद्र करनी चाहिए जो हमारे लिए नुकसान उठाते हैं."

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उनका इशारा मलेशिया की तरफ है जिसने अंतरराष्ट्रीय मंच पर कश्मीर को उठाने की वजह से आर्थिक नुकसान उठाया है. डॉ. वजारत ने कहा, "मलेशिया कश्मीर पर अपने रुख से पीछे नहीं हटा. भारत ने उससे तेल लेना बंद कर दिया लेकिन उसने पाकिस्तान की मदद की. इसी तरह तुर्की ने भी हमारे रुख का समर्थन किया है. और हम हैं कि हम सऊदी अरब के कहने पर क्वालालंपुर कांफ्रेस में शामिल नहीं हुए. और हमें उसका यह सिला मिला. अब हमें तुर्की और मलेशिया के साथ मिल कर एक नया इस्लामी संगठन बनाना चाहिए."

ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन (ओआईसी) में दुनिया के 57 मुस्लिम देश शामिल हैं और सऊदी अरब के जेद्दाह में इसका मुख्यालय है. इसका मकसद अंतरराष्ट्रीय मंच पर मुस्लिम देशों की एक सामूहिक आवाज बनना है लेकिन कई मुद्दों पर इस संगठन में मतभेद साफ नजर आते हैं. हाल में तुर्की, मलेशिया और पाकिस्तान मिलकर एक नई धुरी बनने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन सऊदी अरब ओआईसी के समांतर किसी अन्य संगठन के विचार को पसंद नहीं कर सकता. इसीलिए सऊदी अरब के दबाव में पाकिस्तान ने मलेशिया में होने वाले सम्मेलन से हाथ खींच लिया. सऊदी अरब पाकिस्तान को बहुत मदद देता रहा है लेकिन कश्मीर के मुद्दे पर पाकिस्तान के बहुत से लोग सऊदी अरब के रुख से मायूस हैं.

Trump Mideast Plan Muslim Nations
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo

कुछ आलोचकों का कहना है कि शीत युद्ध की राजनीति के विपरीत अब धर्म सऊदी नीति में बहुत अहम है और अब उसे मुस्लिम जगत की ज्यादा परवाह नहीं है. इस्लामाबाद यूनिवर्सिटी की साइंस एंड टेक्नॉलोजी के वर्ल्ड स्टेबिलिटी इंस्टीट्यूट के डॉ. बकर नजमुद्दीन कहते हैं कि सऊदी अरब का बदलता हुआ रुख उसकी प्राथमिकताओं की तरफ इशारा करता हैं. वह कहते हैं, "सऊदी अरब अब इस्राएल से संबंध बेहतर कर रहा है और विशुद्ध रूप से आर्थिक हितों को ध्यान में रखते हुए अन्य देशों से भी रिश्ते बढ़ा रहा है. भारत के साथ भी आर्थिक हितों को देखते हुए उसके रिश्ते मजबूत हो रहे हैं."

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वह कहते हैं, "सऊदी अरब के इस रुख से पाकिस्तान को बहुत मायूसी हो रही है. ऐसे में, पाकिस्तान को मलेशिया और तुर्की की तरफ से नए इस्लामिक संगठन के लिए की जा रही कोशिशों का साथ देना चाहिए. हालांकि सैद्धांतिक रूप से ऐसा करना बहुत मुश्किल है क्योंकि पाकिस्तान अपनी अर्थव्यवस्था की वजह से सऊदी अरब पर बहुत ज्यादा निर्भर है. वह पाकिस्तान को तेल उधार देता है और लाखों पाकिस्तानी सऊदी अरब में जाकर काम करते हैं."

कई पाकिस्तानी राजनेता भी कश्मीर पर सऊदी अरब के रुख से निराश हैं और सरकार से अपनी नीति पर दोबारा विचार करने की मांग कर रहे हैं. नेशनल पार्टी के नेता और सीनेटर मोहम्मद अकरम बलोच कहते हैं, "हमें भी वास्तविकताओं के मुताबिक चलना चाहिए. सऊदी अरब अपने रिश्ते इस्राएल के साथ कायम कर रहा है और यहां हम उम्मा उम्मा की रट लगाए हुए हैं. मुझे लगता है कि हमें भी अपने राष्ट्रीय हितों को देखते हुए अपनी विदेश नीति को बदलना चाहिए और सऊदी अरब के प्रभाव से निकलना चाहिए."

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