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विवाद

सऊदी अरब और उसके एटमी इरादे

कैर्स्टन क्निप
२६ फ़रवरी २०१९

क्या अमेरिका जल्द ही सऊदी अरब को सिविल न्यूक्लियर टेक्नोलॉजी देगा? अगर सऊदी राजशाही को एटमी तकनीक मिल गई तो क्या पूरा मध्य पूर्व अस्थिर हो जाएगा?

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Donald Trump Mohammed bin Salman Saudi Arabien
तस्वीर: picture alliance/dpa/M.Wilson

अमेरिकी नेता जानना चाहते हैं कि क्या राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप सऊदी अरब को संवेदनशील नाभिकीय तकनीकी बेचना चाह रहे हैं? राज खोलने वाले कई लोग हितों के टकराव की चेतावनी दे रहे हैं. यह बातें खुद इस मामले की जांच कर रही अमेरिकी संसद की हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव कमेटी ने कही हैं. कमेटी के सदस्यों को डर है कि सऊदी राजशाही अमेरिकी तकनीक के जरिए परमाणु बम बना सकती है और इसकी वजह से रियाद और उसके धुर प्रतिद्वंद्वी तेहरान के बीच तनाव बढ़ जाएगा.

सिविल न्यूक्लियर टेक्नोलॉजी, सैन्य तकनीक से कितनी अलग है? बॉन इंटरनेशनल सेंटर फॉर कंवर्जन (बीआईसीसी) के मुताबिक, "दोनों एक दूसरे से इतनी गहराई से जुड़े हैं कि उन्हें बमुश्किल ही अलग किया जा सकता है. न्यूक्लियर तकनीक के सिविल इस्तेमाल से ज्ञान, मैटीरियल और तकनीक हासिल की जा सकती है, जिसे सैन्य नाभिकीय कार्यक्रम के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है."

जर्मन काउंसिल ऑन फॉरन रिलेशंस के सऊदी अरब एक्सपर्ट सेबास्टियान सोन्ज मानते हैं कि सऊदी अरब प्राथमिक रूप से नाभिकीय ऊर्जा का सैन्य इस्तेमाल नहीं करना चाहता है. सोन्ज के मुताबिक रियाद बहुत ही ज्यादा आर्थिक दबाव में है. सऊदी अरब तेल पर अपनी आर्थिक निर्भरता को कम करना चाहता है. देश का 80 फीसदी राजस्व पेट्रोलियम से ही आता है. डॉयचे वेले से बातचीत में एक्सपर्ट सोन्ज ने कहा कि रियाद बीते कुछ समय से ऊर्जा के साधनों को विविध बनाने पर काम कर रहा है, "ये बड़ी कोशिशें हैं, जिनमें नाभिकीय ऊर्जा क्षेत्र बड़ी भूमिका निभाएगा." इसके लिए सऊदी अरब को अपने साझेदारों और खास तौर पर अमेरिका के सहयोग की जरूरत है.

फिलहाल सऊदी अरब अंतरराष्ट्रीय साझेदारों के बिना एटमी ऊर्जा नहीं बना सकता है. लेकिन वह चाहता है कि वह इस उन्नत तकनीक के मामले में भी जल्द ही आत्मनिर्भर हो जाए. मार्च 2018 में सऊदी ने नेशनल एटॉमिक एनर्जी प्रोग्राम लॉन्च किया. इसके तहत अगले 20 साल में 16 न्यूक्लियर पावर प्लांट लगाए जाने हैं. सोन्ज कहते हैं, "बड़ी सरकारी कंपनियां, जैसे सऊदी अरामको इसमें बहुत निर्णायक भूमिका निभा रही है. अरामको निश्चित रूप से उन्नत न्यूक्लियर एनर्जी के मामले में एक अहम खिलाड़ी साबित होगी."

Kersten Knipp, Journalist und Buchautor
कैर्स्टन क्निपतस्वीर: privat

एक अस्थिर इलाका

नाभिकीय ऊर्जा का मुद्दा, खाड़ी और मध्य पूर्व के इलाके को बरसों से बेचैन करता रहा है. इसकी शुरुआत ईरान के परमाणु कार्यक्रम से हुई. ईरान, इलाके में सऊदी अरब का सबसे कट्टर प्रतिद्वंद्वी है. जब से ईरान सरकार पर नाभिकीय ऊर्जा हासिल करने का जुनून सवार है, तभी से सऊदी अरब भी इस विकल्प के बारे में सोचने लगा है.

अमेरिका जब से ईरान सरकार के साथ हुए परमाणु समझौते से बाहर निकला है तब से ही तेहरान, रियाद को शक की नजर से देख रहा है. ईरान के विदेश मंत्री जावेद जारीफ ट्विटर पर सख्त लहजे में ईरान के प्रति अमेरिकी दिखावे की कड़ी आलोचना भी कर चुके हैं.

इस्राएल का एंगल

सऊदी अरब की नाभिकीय योजना से इस्राएल भी असहज है. हालांकि हाल के समय में दोनों देश करीब आए हैं. इस करीबी की वजह दोनों का एक साझा विरोधी ईरान भी है. लेकिन इसके बावजूद इस्राएल, सऊदी अरब के एटमी इरादे से खुश नहीं है. इस्राएल के राजनीतिक समीक्षक योनी बेन मेनाहेम ने डॉयचे वेले से कहा कि इस्राएल सैद्धांतिक रूप से किसी भी अरब देश के पास नाभिकीय तकनीक का विरोध करता है.

यही बात सऊदी अरब पर भी लागू होती है. मेनाहेम कहते हैं, "आप नहीं जानते कि वहां कब न जाने कौन सत्ता में आ जाए. अगर कट्टरपंथी सत्ता में आ गए तो वे नागरिक नाभिकीय कार्यक्रम का इस्तेमाल सैन्य इरादों के लिए भी करेंगे." बेन मेनाहेम को लगता है कि सऊदी अरब के नाभिकीय कार्यक्रम की देखादेखी अन्य देश भी करेंगे, "और इसका मतलब होगा कि इलाके में नाभिकीय हथियारों की होड़ शुरू हो सकती है."

सेबास्टियान सोन्ज भी इस आशंका से सहमत हैं. वह सऊदी अरब के राजकुमार मोहम्मद बिन सलमान का एक बयान याद दिलाते हैं जिसके मुताबिक अगर ईरान ने फिर से न्यूक्लियर प्रोग्राम शुरू किया तो सऊदी अरब भी इससे परहेज नहीं करेगा. सोन्ज के मुताबिक, "सऊदी अरब में इस विकल्प पर चर्चा हो रही है. उन्हें लगता है कि वे हथियार उठाने को मजबूर हो रहे हैं." अगर सऊदी अरब और ईरान के बीच तनाव और बढ़ा तो पूरे इलाके की स्थिरता डगमगाने लगेगी.

(सऊदी अरब से शीत युद्ध जीतता ईरान)