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संसद और सरकार में मतभेद लोकतांत्रिक ताकत

२४ अप्रैल २०१५

अर्मेनियाई लोगों के हत्याकांड की 100वीं वर्षगांठ पर राष्ट्रपति योआखिम गाउक के भाषण ने पहले ग्रीन और वामपंथी पार्टियों ने हत्याकांड को जनसंहार की संज्ञा देने की वकालत की है. जर्मन संसद शुक्रवार को इस घटना पर बयान देगी.

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तस्वीर: Reuters/D. Mdzinarishvili

तुर्की इसे जनसंहार मानने से इंकार करता रहा है. जर्मनी में बहुत सारे लोग इसे जनसंहार मानने की मांग कर रहे हैं, लेकिन जर्मन राजनीतिज्ञों में भी काफी मतभेद हैं. ग्रीन पार्टी के चेम ओएज्देमिर ने चांसलर अंगेला मैर्केल और विदेश मंत्री फ्रांक वाल्टर श्टाइनमायर की आपत्तियों का विरोध किया है जबकि एसपीडी सांसद डीटमार नीतान का कहना है कि सरकार जनसंहार शब्द का औपचारिक इस्तेमाल नहीं कर तुर्क सरकार पर शांत करने वाला असर डालना चाहती है. डॉयचे वेले की क्रिस्टियाने केस ने डीटमार नीतान से बात की.

क्रिस्टियाने केस: 20 से ज्यादा देश औपचारिक रूप से अर्मेनियाई लोगों के जनसंहार की बात करते हैं, यूरोपीय संसद ने इसका आह्वान किया है. जर्मनी इसमें पीछे क्यों है?

डीटमार नीतान: मुझे लगता है कि जर्मन सरकार अभी भी विदेशनैतिक अवधारणा की पुरानी तस्वीर लेकर चल रही है जिसमें वह समझती है कि तुर्की को न उकसाना जर्मनी और यूरोप के हित में है और इसलिए वह जनसंहार शब्द नहीं कहती. मैं इसे गलत आकलन मानता हूं क्योंकि मुझे विश्वास है कि तुर्की के नागरिक समाज का बड़ा हिस्सा इस मुद्दे पर खुलकर बहस कर रहा है और जर्मनी जैसे महत्वपूर्ण सहयोगी की ओर से स्पष्ट शब्दों की उम्मीद कर रहा है.

फिर मुश्किलें कहां हैं?

मुश्किल इस बात में है कि यूनियन पार्टियों के संसदीय दल का एक हिस्सा और एसपीडी संसदीय दल, खासकर उसका नेतृत्व सोचता है कि उसे अपनी सरकार की मदद करनी चाहिए. मैं इसे एकदम अलग तरीके से देखता हूं. जर्मनी जैसे देश में संसद को सरकार से कुछ स्वतंत्र भी होना चाहिए. सरकारी दलों के सांसद भी सरकार से आदेश लेने वाले लोग नहीं हैं. और मै समझता हूं कि हर जर्मन सरकार तुर्क साथी से कह सकती है, हो सकता है कि यह तुर्की में अलग हो, लेकिन जर्मनी में संभव है कि संसद सरकार से अलग राय रखे और यह अच्छा ही है.

Dietmar Nietan SPD
डीटमार नीतानतस्वीर: privat

फिर यहां सांसद स्वतंत्र क्यों नहीं हैं?

वह नहीं होगा जब हम आखिर में ऐसा कुछ करें जो हमारा असली विचार न हो. यदि आप सभी संसदीय दलों के सांसदों से बात करें, सरकार के प्रतिनिधियों से बात करें तो वे सब आपको अनौपचारिक रूप से कहेंगे कि यह जनसंहार था. इस मुद्दे पर कोई बहस नहीं है, बहस इस बात पर है कि क्या रणनैातिक कारणों से ऐसा खुलकर कहा जाना चाहिए. मेरा मानना है कि संसद ऐसी जगह है जहां वह बोला जाना चाहिए जो असलियत है.

सांसदों पर जर्मन सरकार और संसदीय दलों के नेतृत्व का कितना दबाव है? यह दबाव किस तरह से डाला जा रहा है?

दबाव इस तरह से नहीं है कि लोगों को बुलाया जा रहा है और धमकी दी जा रही है. उनसे अपील की जा रही है, कुछ इस तरह कि अपनी ही सरकार को मुश्किल में नहीं डालते, जिसकी अब यही लाइन है और कैसा लगेगा कि यूनियन और एसपीडी सांसदों की चांसलर कार्यालय और विदेश मंत्रालय से अलग राय हो. लेकिन मैं फिर कहूंगा, यह हमारी लोकतांत्रिक संसदीय व्यवस्था की ताकत है और होनी भी चाहिए कि सरकार और संसद की कुछ मुद्दों पर अलग अलग प्राथमिकताएं हैं. कुछ चीजें ऐसी होती हैं जिसमें सरकार के सदस्य उस तरह से नहीं कर सकते जैसा सांसद कर सकते हैं. ऐसी भी चीजें हैं जिसमें आप कूटनीतिक तौर पर जुड़े हैं. मैं इसे स्वीकार भी करता हूं. लेकिन यह सांसदों के लिए लागू नहीं होता और संसद और सरकार के बीच अंतर की इस ताकत का इस्तेमाल भी होना चाहिए.

ग्रीन पार्टी के प्रमुख चेम ओएज्देमिर ने सरकार पर तुर्क राष्ट्रपति एरदोआन के सामने झुकने का आरोप लगाया है. यह बहुत गंभीर आरोप है. इसे सांसदों को भी स्वीकार करना होगा?

देखिए मैं संसद के विदेशनैतिक आयोग का सदस्य हूं. मैं समझता हूं कि सरकार के सदस्यों के साथ सही रास्ते की बहस कर ज्यादा हासिल करूंगा, बनिस्पत कि मैं उनकी आलोचना करूं या उनपर झुकने का आरोप लगाऊं. मैं समझता हूं कि सभी के पास इस या उस विचार के लिए सही कारण है. इसे मैं एक लोकतांत्रिक समाज में स्वीकार भी करता हूं. लेकिन मैं एसपीडी के संसदीय दल में बहुमत को समाझाना चाहता हूं कि नैतिक रूप से और राजनीतिक रूप से अच्छा होगा कि 100 साल बाद वह कहा जाए जो था.

सचमुच दूसरी तरह से भी दलील दी जा सकती है और कहा जा सकता है कि अंकारा और बर्लिन के रिश्ते आसान नहीं हैं. इसे और जटिल क्यों बनाया जाए? हमने रणनैतिक विचार की बात सुनी है, बहुत सारे विवादों वाले इलाके में तुर्की नाटो का सदस्य और सहयोगी है. यह भी कहा जा सकता है कि यह रियालपोलिटिक है जिसपर ध्यान देना होगा.

स्वाभाविक रूप से एक सरकार को यथार्थवादी राजनीति करनी होगी क्योंकि अंत में मामला विचारों की नैतिकता का नहीं है बल्कि जिम्मेदारी की नैतिकता का है. लेकिन मैं इसे गलत आकलन मानता हूं. मैं कहूंगा कि यदि सभी नाटो सहयोगी तुर्की को यह बताएंगे कि हम पश्चिमी सहबंध से यह उम्मीद करते हैं कि वह पश्चिमी लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति जिम्मेदारी महसूस करे, कि हमारे सभी देश भी अपने अतीत को स्वीकार करते हैं. तब तुर्की में बहस का अलग रूप होगा. माफी चाहूंगा, लेकिन यदि आप देखें कि राष्ट्रपति एरदोआन घरेलू कारणों से किस तरह पश्चिम विरोधी स्टीरियोटाइपों का इस्तेमाल कर रहे हैं, तो शायद समय आ गया है कि सहबंध का कोई, शायद अमेरिकी राष्ट्रपति अकेले में ताकि उनकी छवि खराब न हो, कोई उनसे पूछे, प्यारे रेचेप एरदोआन तुम्हें फैसला करना होगा कि तुम सत्ता के लिए पश्चिम को कठपुतली बनाना चाहते हो या इस सहबंध के भरोसेमंद पार्टनर होना चाहते हो. मैं समझता हूं कि गलत लिहाज कर हम एरोदआन को यह खेल खेलने के लिए उकसा रहे हैं. मैं समझता हूं कि यह तुर्की की जनता और पश्चिमी मूल्यों के दूरगामी हित में होगा कि हम यहां सचमुच एरदोआन का साफ विरोध करें.

इंटरव्यू: क्रिस्टियाने केस