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संबंधों को संभालने के प्रयास में चीन और भारत

महेश झा
२३ अप्रैल २०१८

भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग इस हफ्ते के अंत में वुहान में शिखर भेंट में आपसी संबंधों को पटरी पर लाने की कोशिश करेंगे. पिछले महीनों में संबंधों में लगातार तल्खी दिख रही थी.

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China Xiamen BRICS-Treffen Narendra Modi und Xi Jinping
तस्वीर: Reuters/Wu Hong

शिखर भेंट का फैसला विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के चीन दौरे पर हुआ जहां वे शंघाई सुरक्षा संगठन की बैठक में भाग लेने पहुंचीं. दोनों ही पक्ष पिछले समय में अलग अलग मुद्दों पर एक दूसरे को उकसाने की कोशिश कर रहे थे लेकिन साथ ही महसूस कर रहे थे कि संबंध लगातार बिगड़ते ही जा रहे हैं. आपसी संबंधों में तल्खी की शुरुआत तब हुई जब भारत द्वारा आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान पर दबाव बढ़ाने की कोशिशों के बीच पिछले साल चीन ने ना सिर्फ परमाणु सप्लायर ग्रुप में भारत की सदस्यता को रोक दिया बल्कि संयुक्त राष्ट्र की आतंकवाद सूची में जैश ए मोहम्मद के नेता मसूद अजहर का नाम शामिल कराने में बाधा डाली.

लगातार दो बार रोड़े अटकाए जाने के बाद भारत ने 'ईंट का जवाब पत्थर से' की नीति अपनाई और राष्ट्रपति शी जिनपिंग के प्रिय प्रोजेक्ट वन बेल्ट वन रोड पहलकदमी में हिस्सा लेने से मना कर दिया. दलाई लामा के अरुणाचल दौरे ने भी चीन को खासा नाराज किया. इसके अलावा भारत ने विवादास्पद दक्षिण चीन सागर में चीन के दावों का विरोध कर देशों के साथ निकटता की भी नीति अपनाई.

दोनों देशों के रिश्तों में गिरावट की पराकाष्ठा तब सामने आई जब चीन भारत भूटान की सीमा पर डोकलाम में दोनों देशों की सेनाएं आमने सामने आ गईं. हालांकि इस मामले को भारत के चीन में राजदूत रहे विदेश सचिव के हस्तक्षेप से सुलझा लिया गया लेकिन भारत और चीन, दोनों की समझ में आ गया कि संबंधों में तेजी से हो रहे ह्रास को रोकने के लिए उच्चतम राजनीतिक स्तर पर प्रयास जरूरी हैं. हालांकि जून में शंघाई सहयोग संगठन के शिखर सम्मेलन में मोदी और शी की मुलाकात होती, लेकिन उनके पास आपसी रिश्तों पर बात करने का पर्याप्त समय नहीं होता.

भारत में संसदीय चुनावों से एक साल पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए पड़ोसी मोर्चे पर शांति जरूरी है. हालांकि मोदी ने पहले शपथ ग्रहण के समय पाकिस्तान सहित पड़ोस के देशों के नेताओं को बुलाकर संबंधों का नया माहौल बनाने की कोशिश की और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ भी निकट संबंध बनाने की कोशिश की लेकिन विदेशनैतिक दांव पेंच के खेल में ये प्रयास नाकाम साबित हुए हैं. दूसरी ओर चीन के साथ व्यापारिक लेन देन में अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के हमलों के बाद चीन भी खुद को घिरा पा रहा है.

ऐसे में, चीन और भारत ने अपने नेताओं को साथ लाकर संबंधों की धुंध को साफ करने की कोशिश की है. भारत सालों से इस बात पर जोर देता आ रहा है कि चीन और भारत, दोनों ही के लिए विकास के व्यापक अवसर हैं और चीन को भारत की आकांक्षाओं और हितों को समझने की जरूरत है. शिखर भेंट की घोषणा करते हुए चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने उसे नई शुरुआत बताया है तो सुषमा स्वराज ने सीमा पर शांति बनाए रखने को आपसी रिश्तों के विकास की आवश्यक पूर्वशर्त बताया है.

मध्य चीनी शहर वुहान में मोदी और शी की मुलाकात संबंधों को फिर से पटरी पर लाने की दोनों देशों के नेताओं की ईमानदार कोशिश होगी, ताकि मतभेदों के बावजूद भावी आपसी संबंधों का खांका खींचा जा सके और सामरिक भरोसे का माहौल बन सके. पश्चिम के साथ व्यापारिक मुश्किलों की रोशनी में चीन समझता है कि भारत के साथ शांतिपूर्ण संबंध जरूरी हैं तो भारत में भी ये समझ गहरा रही है कि 'मेक इन इंडिया' की कामयाबी के लिए चीन के साथ शांतिपूर्ण रिश्ते जरूरी हैं. राजीव गांधी ने दशकों पहले चीनी नेता डेंग शियाओपिंग के साथ शिखर भेंट में मतभेदों को परे रख संबंधों के विकास की शुरुआत की थी और अब प्रधानमंत्री मोदी उसी मंत्र को आगे बढ़ा रहे हैं.