संन्यास नहीं लेंगे सचिन: आशा
२ फ़रवरी २०१३गायिका आशा भोंसले का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है. महज दस साल की उम्र से गायन शुरू करने वाली आशा संगीत की दुनिया में अपने लगभग सात दशक लंबे सफर में एक जीती-जागती किंवदंती बन चुकी हैं. लेकिन इस उम्र में भी गीतों के प्रति उनकी निष्ठा उभरते गायकों-गायिकाओं के लिए एक मिसाल है. आशा कहती हैं कि अपने लंबे सफर में उन्होंने बहुत कुछ खोया-पाया और अब भी बहुत कुछ हासिल करना बाकी है.
डॉयचे वेले: आपने बहुत कम उम्र में गाना शुरू किया था. क्या तब सोचा था कि जीवन में इतनी ऊंचाई हासिल कर लेंगी ?
आशा भोंसले: मैंने 1943 में दस साल की उम्र में पहला गाना गाया था. मेरे पिता चार साल की उम्र में ही मुझे गाने का प्रशिक्षण देने लगे थे. पहले गाने के लिए मुझे सौ रुपए मिले थे. लेकिन उन दिनों सौ रुपए बहुत बड़ी चीज थी. तब तो मैं यही सोचती थी कि ऐसे ही गाते रहूं और हर गाने के लिए सौ-सौ के नोट मिलते रहें. तब गाने के ज्यादा पैसे नहीं मिलते थे. लेकिन बाद में पैसे बढ़ते गए.
संगीत को पेशा बनाने का फैसला कब किया ?
गाना शुरू करने के बहुत बाद. पहले तो यह मेरे लिए एक काम जैसा था. लेकिन पचास के दशक में यह मेरा जीवन बन गया. अब तो मेरी सुबह संगीत से शुरू होती है और शाम संगीत से ही खत्म होती है. मैं अपने काम से कभी नहीं थकती.
इस उम्र में भी आप ऐसे मधुर गीत कैसे गाती हैं ?
इसकी वजह है रियाज और गीतों पर ध्यान देना. मैं कुछ अच्छे नए अलबम तैयार करना चाहती हूं. मुझे पता है कि अब एलपी रिकार्डों का दौर नहीं रहा. लेकिन लोग बाद में महसूस करेंगे कि बेहतर संगीत क्या होता है. संगीत का मतलब शोरगुल नहीं होता. गीत ऐसे होने चाहिए जिनको सुन कर आत्मा तृप्त हो जाए. लोग बिस्तर पर भी उसे गुनगुनाएं. आप 'शीला की जवानी' गाते हुए सो सकते हैं क्या? लेकिन 'नाम गुम जाएगा' जरूर गुनगुना सकते हैं.
आप सचिन तेंदुलकर की भी बहुत बड़ी फैन हैं. अब जब उनके संन्यास लेने की बातें हो रही हैं तो आपको कैसा लगता है ?
नहीं, सचिन बिल्कुल संन्यास नहीं लेंगे. मैंने उसे कहा कि जब अस्सी साल की होकर मैं अब तक गा रही हूं तो आप आधे से भी कम उम्र के होने के बावजूद खेल क्यों नहीं सकते. उन्होंने मेरी बात मानी. टी-20 उनके लायक नहीं है. लेकिन पांच दिनों के मैच में वह किसी टाइगर की तरह खेलेंगे.
क्या मौजूदा पीढ़ी की गायिकाओं में अपने काम के प्रति पुरानी पीढ़ी की तरह निष्ठा है ?
सच कहूं तो ऐसा नहीं है. अब की गायिकाओं में मेहनत करने की ना तो इच्छा है और ना ही उनको इसकी जरूरत. अब तो गाने टुकड़ों में रिकार्ड होते हैं. पूरा गाना एक साथ गाया ही नहीं जाता, तो मेहनत करने की जरूरत ही क्या है?
अब तो आप फिल्म में भी काम रही हैं. इस उम्र में अचानक फिल्म करने की कैसे सूझी ?
मेरा मानना था कि जिसे जो काम सुहाए, वही करना चाहिए. इसके अलावा लगता था कि मैं इतनी सुंदर नहीं हूं कि फिल्मों में काम करूं. अभिनय के क्षेत्र में करियर बहुत छोटा होता है और गायन में बहुत लंबा. लेकिन फिल्म के निर्माता और मेरे बेटे आनंद ने जब फिल्म की कहानी सुनाई तो मुझे बेहद जंच गई. इसके बावजूद मैं काफी दिनों तक ना-नुकुर करती रही. बाद में बेटे और बेटी के दबाव देने पर मैंने इसके लिए हामी भर दी.
अभिनय और गाने में आपको क्या फर्क महसूस हुआ?
अभिनय करना गाना गाने के मुकाबले बेहद आसान है. गाने के लिए बहुत ध्यान और संयम रखना होता है. लेकिन अगर आपका किरदार आपसे मेल खाता है तो अभिनय करना कोई मुश्किल काम नहीं है.
इस फिल्म की कहानी क्या है और आपका किरदार कैसा है ?
मैंने इसमें दादी का किरदार निभाया है. इसमें बेटियों की अहमियत के बारे में बताया गया है. आजकल लोग बेटे के लिए मरे जा रहे हैं. लेकिन बेटा कुछ नहीं करता. मां से प्रेम बेटी ही करती है. शादी के बाद दूसरे घर में चले जाने के बावजूद उसका पूरा ध्यान मां पर ही रहता है. जीवन में लड़कियों की भूमिका बहुत बड़ी है.
अपने लंबे करियर में आपको कई तरह के उतार-चढ़ाव और आलोचनाओं का सामना करना पड़ा होगा. उनसे कैसे निपटती हैं ?
मैं एक कान से सुन कर दूसरे से बाहर निकाल देती हूं. अखबारों या पत्रिकाओं में आलोचनाएं छपने पर मैं उनको पढ़ती ही नहीं हूं.
खाली समय में क्या करती हैं ?
सुबह जल्दी उठ कर अपना कामकाज निपटाती हूं. उसके बाद किचन में जाकर पोते-पोतियों के लिए उनकी पसंदीदा डिश बनाती हूं. जब दूसरा कोई काम नहीं होता तो मैं रियाज करने में समय बिताती हूं. इसके अलावा अपने रेस्तरां चेन आशाज का भी ध्यान रखना होता है. अब उचित जगह मिले तो भारत के कुछ शहरों में भी इसे खोलने की योजना है.
आखिर में कोई ऐसा गीत जो आपके जीवन से मेल खाता हो ?
किशोर कुमार का मशहूर गीत मुझे अपने जीवन के बेहद करीब लगता है...जिंदगी के सफर में गुजर जाते हैं जो मुकाम वो फिर नहीं आते...
इंटरव्यू: प्रभाकर, कोलकाता
संपादन: ईशा भाटिया