श्रीलंका के पूर्व सेनाध्यक्ष को तीन साल की कैद
१८ नवम्बर २०११फोनसेका ने तमिल विद्रोहियों के खिलाफ श्रीलंकाई सेना की कार्रवाई के दौरान सरकार पर नरसंहार का आरोप लगाया था. फोनसेका ने दिसंबर 2009 में 'संडे लीडर' नाम के एक अखबार को दिए इंटरव्यू में कहा कि राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे के भाई और रक्षा सचिव गोतभाया राजपक्षे ने समर्पण कर रहे तमिल विद्रोहियों पर कार्रवाई करने के आदेश दिए थे. यह घटना मई 2009 की है जब सेना ने हाथ में सफेद झंडे लिए तमिल विद्रोहियों को मौत के घाट उतार दिया.
अदालत ने फोनसेका को सरकार के खिलाफ अफवाह और अशांति फैलाने का दोषी पाया. गोतभाया राजपक्षे ने इन आरोपों से इनकार करते हुए अदालत के सामने अपने पक्ष में सबूत पेश किए. 16 महीने तक चले इस मुकदमे में फोनसेका बार बार दोहराते रहे कि अखबार ने उनके बयान को गलत रूप से प्रस्तुत किया. फैसले के बाद उन्होंने अदालत से कहा, "मैं इस फैसले को नहीं मानता. यह फैसला तानाशाही में किया जा रहा है. लोग इस फैसले के खिलाफ खड़े होंगे और तभी न्यायप्रणाली में लोकतंत्र की स्थापना हो सकेगी." फैसला आने से पहले उन्होंने एक बयान में कहा, "मुझे इसलिए सजा दी जा रही है क्योंकि मेरे राजनीतिक विरोधी चाहते हैं कि मुझे जेल में रखा जाए, ताकि वह अपनी राजनीति करते रहें."
फोनसेका को इन इल्जामों के तहत अधिकतम बीस साल की सजा सुनाई जा सकती थी. तीन में से दो जजों ने उन्हें दोषी माना और तीन साल की सजा सुनाई. मुकदमे की सुनवाई के दौरान अदालत के बाहर सैंकड़ों सुरक्षाबलों को तैनात किया गया. इस से पहले सुनवाइयों के दौरान कई बार फोनसेका समर्थकों ने अदालत के बाहर प्रदर्शन किए हैं. शुक्रवार को भी अदालत के बाहर भारी भीड़ देखी गई. जैसे ही फोनसेका अदालत पहुंचे भीड़ उनके नाम के नारे लगाने लगी.
फोनसेका के वकील नलिन लाडूवाहेटी का कहना है कि वह इस फैसले के खिलाफ अपील करेंगे. फोनसेका को 2009 में श्रीलंकाई फौज को तमिल विद्रोहियों के खिलाफ जीत दिलाने के लिए याद किया जाता है. इस जीत के फौरन बाद ही फोनसेका और राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे के बीच मतभेद शुरु हो गए. 2010 में फोनसेका राष्ट्रपति राजपक्षे के खिलाफ चुनाव में भी खड़े हुए, लेकिन हार गए. दो हफ्ते बाद ही उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. वह पहले ही ढाई साल की कैद की सजा काट रहे हैं. भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते उनका कोर्ट मार्शल किया जा चुका है. उनका कहना है कि उनके खिलाफ चल रहे मामले राजनीति से प्रेरित हैं.
रिपोर्ट: डीपीए, एएफपी/ईशा भाटिया
संपादन: ओ सिंह