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शुरू होने के इंतजार में कुंडाकुलम परमाणु संयंत्र

२३ फ़रवरी २०१२

जापान के फुकुशिमा परमाणु संयंत्र हादसे की याद लोगों के जेहन में बिल्कुल ताजा है और उसी से सबक लेकर दक्षिण भारत के लोगों ने कुंडाकुलम परमाणु बिजली परियोजना पर काम रोकने के लिए मजबूर कर दिया है.

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तस्वीर: AP

तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई से करीब 650 किलोमीटर दूर कुंडाकुलम गांव के लोगों ने यहां दो परमाणु रिएक्टर बनाने के खिलाफ अपना रुख कड़ा कर लिया है. सरकार लगातार उन्हें नए रिएक्टरों की सुरक्षा के बारे में भरोसा दिला रही है लेकिन लोगों को उन पर यकीन नहीं है.

जारी है संघर्ष

पिछले साल 11 मार्च को जापान के तट के पास आई सूनामी के कारण फुकुशिमा दाइची परमाणु संयंत्र से हुए रिसाव ने पूरी दुनिया के लोगों में परमाणु बिजलीघरों से होने वाले नुकसान का डर पैदा कर दिया है. इस हादसे में हजारों लोगों को मौत की मौत हुई, 350,000 लोगों को अपना घर छोड़ कर शिविरों में शरण लेनी पड़ी और पारिस्थितिकी तंत्र को भारी नुकसान हुआ. इसी हफ्ते अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा आयोग की एक टीम ने चुपचाप रिएक्टर की इमारत और ईंधन का भंडार रखने वाली जगह का निरीक्षण किया. उधर कुंडाकुलम के किसान और गांववाले इसके खिलाफ धरने पर बैठ गए और 72 घंटे तक भूख हड़ताल किया. गांव के लोग आईएईए के इस निरीक्षण का भी विरोध कर रहे हैं.

भूख हड़ताल में हिस्सा लने वाले अरुमुगम यहां खेती करते हैं. डॉयचे वेले से बातचीत में अरुमुगम ने कहा, " सरकार की पैनल के इस फैसले को कि यह संयंत्र सुरक्षित है, हम नहीं मानते. हमसे बातचीत नहीं की गई है औऱ इसलिए हम सितंबर से ही विरोध कर रहे हैं. हमें डर है कि हादसे की सूरत में हमारी सुरक्षा खतरे में पड़ जाएगी."

छह महीने से चले आ रहे आंदोलन के कारण संयंत्र को शुरू करने में पहले ही छह महीने की देरी हो चुकी है. आंदोलन का नेतृत्व कर रहे पीपुल्स मूवमेंट अगेंस्ट न्यूक्लियर एनर्जी(पीएमएनई) और स्थानीय लोग भारत और रूस के सहयोग से बने इस संयंत्र को पूरी तरह से हटाने की मांग कर रहे हैं. पीएमएनई के संयोजक एस पी उदयकुमार ने डॉयचे वेले से कहा, "लोगों का जीवन विदेशी कंपनियों के फायदे से ज्यादा जरूरी है. लोगों की चिंता और डर को दूर करने के लिए कुछ नहीं किया गया है. सच तो यह है कि प्रशासन परियोजना के बारे में जानकारियां छुपा कर लोगों का डर और बढ़ा रहा है."

विरोध कर रहे लोगों के आगे झुक कर तमिलनाडु की सरकार ने पिछले साल एक प्रस्ताव भी पास कर दिया जिसमें केंद्र सरकार से संयंत्र का काम तब तक रोकने के लिए कहा गया जब तक कि लोगों का डर दूर नहीं हो जाता. केंद्र और राज्य दोनों सरकारों दो पैनल भी बनाई हैं जो गांववालों और सामाजिक कार्यकर्ताओं से मुलाकात कर रही है. हालांकि जो लोग इस परियोजना को पूरी तरह से बंद कराना चाहते हैं उन्हें इतने भर से संतुष्ट कर पाना मुश्किल है.

Fukushima Daiichi Atomkraftwerk
तस्वीर: picture alliance / abaca

सुरक्षा या राजनीति

परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष श्रीकुमार बनर्जी ने परमाणु बिजली घरों की सुरक्षा के बारे में लोगों की आशंकाओं को खारिज किया है. भारत ने हाल ही में फुकुशिमा हादसे के बाद अपने सारे परमाणु संयंत्रों के सुरक्षा इंतजामों की जांच की है. श्रीकुमार ने डॉयचे वेले से कहा, "देश के सारे परमाणु ऊर्जा संयंत्र पूरी तरह से सुरक्षित और अंतरराष्ट्रीय मानकों के हिसाब से सूनामी और भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं से निबटने में सक्षम हैं."

इस बारे में परमाणु जानकार डॉ. एस रामचंद्रन का मानना है कि विरोध प्रदर्शनों के पीछे राजनीति है. उनके मुताबिक, "संयंत्र सुरक्षित है और मुझे इस अनुचित विरोध को जारी रखने की कोई वजह नहीं दिखती. यह जल्दी ही खत्म हो जाएगा."

परमाणु संयंत्र की सुरक्षा पर विरोध करने वाले लोग संतुष्ट होंगे या नहीं यह तो फिलहाल साफ नहीं है. इससे अलग हो कर देखें तो एक चीज जो साफ नजर आती है वो यह कि तमिलनाडु में बिजली की कटौती रोजमर्रा के एजेंडे में है क्योंकि यह दक्षिण भारतीय राज्य बिजली की कमी से जूझ रहा है.

रिपोर्टः मुरली कृष्णन/एन रंजन

संपादनः आभा एम

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