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शिशु मृत्यु दर घटाने के लक्ष्य से कोसों दूर है भारत

प्रभाकर मणि तिवारी
९ अगस्त २०१८

तमाम दावों और योजनाओं के बावजूद देश में नवजात शिशुओं की मृत्यु दर में कमी नहीं हो रही है. देश के आधे से ज्यादा जिले वर्ष 2030 के लिए तय सतत विकास लक्ष्य हासिल करने सो कोसों दूर हैं.

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Indien Lifeline Express Krankenhaus auf Schienen
तस्वीर: Getty Images/AFP/C. Khanna

नवजात शिशुओं और पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मौतों की मामले में भारत पूरी दुनिया में अब भी पहले स्थान पर है. यहां हर साल औसतन ऐसी 11 लाख मौतें होती हैं. स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने इसके लिए स्वास्थ्य सेवाओं के आधारभूत ढांचे में कमी, डॉक्टरों व नर्सों के अभाव और खासकर ग्रामीण इलाकों में जागरूकता की कमी को जिम्मेदार ठहराया है.

ताजा अध्ययन

इस मामले में जयंत बोरा और नंदिता सैकिया की ओर से हाल में किए गए एक अध्ययन की रिपोर्ट आंखें खोलने वाली है. आस्ट्रिया की एक गैर-सरकारी संस्था इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर एप्लाइड सिस्टम एनालिसिस की ओर से कराए गए उक्त अध्ययन में पहली बार देश के राज्यों व जिलों के स्तर पर नवजातों और पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर का आकलन करने का प्रयास किया गया है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की ओर से 2030 के सतत विकास लक्ष्य-3  के तहत तय बाल मृत्यु दर लक्ष्य में कहा गया है कि सभी देशों को नवजातों की सालाना मृत्यु दर घटा कर प्रति हजार 12 और पांच साल से कम उम्र के बच्चों के मामले में अधिकतम 25 प्रति हजार करने पर ध्यान देना चाहिए.

इन दोनों शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन के लिए वर्ष 2005-06 और वर्ष 2015-16 के नेशनल फेमिली हेल्थ सर्वे के आंकड़ों और उनके अंतर का इस्तेमाल किया है. अध्ययन में कहा गया है कि सरकार की ओर से किए गए विभिन्न उपायों की वजह से बीते 23 वर्षों के दौरान देश में पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर घट कर आधी हो गई है. वर्ष 1990 में यह दर जहां 109 प्रति एक हजार थी वहीं वर्ष 2013 में यह घट कर लगभग 50 रह गई है. शोधकर्ताओं ने चेताया है कि यह आंकड़ा अब भी तय लक्ष्य से लगभग दोगुना है. इसी तरह नवजातों की मृत्यु दर भी लक्ष्य से 2.4 गुनी ज्यादा है. फिलहाल देश में पैदा होने वाले प्रति एक हजार में से औसतन 29 नवजातों की मौत हो जाती है.

उक्त अध्ययन में शामिल जयंत बोरा कहते हैं, "देश के महज नौ फीसदी जिले ही बाल मृत्यु दर का तय लक्ष्य हासिल करने में सफल रहे हैं. देश के सबसे घनी आबादी वाले राज्यों उत्तर प्रदेश ,  मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में तो हर जिले इस लक्ष्य से काफी पीछे हैं.”

इससे पहले सेव द चिल्ड्रेन नामक एक गैर-सरकारी संगठन ने भी अपनी एक अध्ययन रिपोर्ट में इस समस्या की गंभीरता का खुलासा करते हुए कहा था कि दुनिया भर में होने वाली नवजात शिशुओं की मौतों में से 29 फीसदी अकेले भारत में होती हैं.

वजह

आखिर क्या वजह है कि तमाम कोशिशों के बावजूद यह दर तेजी से कम नहीं हो पा रही है? स्वास्थ्य विशेषज्ञ इसके लिए इसके लिए स्वास्थ्य सेवाओं के आधारभूत ढांचे में कमी, कुपोषण, डॉक्टरों व नर्सों के अभाव और खासकर ग्रामीण इलाकों में जागरूकता की कमी को जिम्मेदार ठहराते हैं. नेशनल नियोनेटोलॉजी फोरम (एनएनएफ) के अध्यक्ष डॉक्टर वीपी गोस्वामी कहते हैं, "देश में स्वास्थ्य सुविधाओं पर और ध्यान देना जरूरी है. खासकर नवजात शिशु मृत्यु दर घटाना भारत के लिए अभी भी बड़ी चुनौती बना हुआ है.”

जाने-माने बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. एसबी मंत्री कहते हैं,  "नवजातों की मौत पूरे समाज के लिए किसी सदमे से कम नहीं है. प्रगति के तमाम दावों के बावजूद अब भी 20 हजार नवजात जन्म के पहले सप्ताह के दौरान ही मौत के मुंह में समा जाते हैं. इस पर अंकुश लगाना जरूरी है.” विशेषज्ञों का कहना है कि देश के खासकर सुदूर ग्रामीण इलाकों में बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं की कमी के साथ ही साक्षरता दर कम होने की वजह से लोगों में जागरूकता की भी कमी है. इन वजहों से ही नवजातों की मृत्यु दर पर अंकुश लगाने में अपेक्षित कामयाबी नहीं मिल पा रही है.

शोधकर्ता इंदिरा सैकिया कहती हैं, "भारत को वर्ष 2015-16 के दौरान मृत्यु दर घटाने में काफी कामयाबी मिली थी. ऐसे में विश्व स्वाथ्य्य संगठन की ओर से तय लक्ष्यों को हासिल करने के लिए तमाम संबंधित पक्षों को साथ लेकर जिला-स्तर पर इस मामले पर ध्यान देना जरूरी है.”

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