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पैसे के बदले रोटी

क्रिस्टॉफ हाजेलबाख/एमजे१७ अगस्त २०१५

जर्मनी में शरणार्थियों की बढ़ती संख्या को रोकने के उपायों पर बहस हो रही है. जर्मन गृहमंत्री थोमस दे मेजियेर ने शरणार्थियों को धन के बदले सामान देने की वकालत की है. डॉयचे वेले के क्रिस्टॉफ हाजेलबाख इसे सही समझते हैं.

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शरणार्थियों के साथ दे मेजियेरतस्वीर: picture-alliance/dpa/P. Pleul

शरणार्थियों को जर्मनी में रजिस्ट्रेशन के बाद तीन महीने तक 143 यूरो मिलते हैं. जेबखर्च की यह रकम निजी जरूरतों को पूरा करने के लिए है, रहने और खाने पीने का खर्च शरणार्थी शिविर के अंतर्गत आता है. तीन महीने बाद शरणार्थियों को दी जाने वाली मदद चीज के बदले पैसे में बदलती जाती है और अकेले व्यक्ति को हर महीने 359 यूरो मिलता है. इस रकम के साथ जर्मनी में कोई धनी नहीं बन सकता. इस मदद का मकसद शरण मिलने की प्रक्रिया के दौरान न्यूनतम मर्यादित जीवन को संभव बनाना है. न इससे ज्यादा और न ही इससे कम.

जेबखर्च या महीने की तनख्वाह

जर्मनी में आ रहे बहुत से शरणार्थी पश्चिमी बालकान के हैं. बालकान के देशों के कई लोगों के लिए जर्मनी में शरणार्थियों को मिलने वाला जेबखर्च सामान्य काम से मिलने वाली मासिक तनख्वाह के बराबर है. इतना ही नहीं बहुत से लोग अपने मुल्कों में कोई भविष्य नहीं देखते. इसलिए समझा जा सकता है कि वे अपना घरबार छोड़कर जर्मनी का रुख करते हैं. इसके बावजूद बहुत कम लोग ऐसे हैं जिन्हें शरण मिलने की संभावना है क्योंकि जर्मन कानून में सिर्फ उत्पीड़न की स्थिति में शरणार्थी के रूप में मान्यता की व्यवस्था है.

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क्रिस्टॉफ हाजेलबाख

जो गरीबी को शरण की मान्यता की वजह बनवाना चाहता है उसे इस बात के लिए तैयार रहना होगा कि तब दुनिया की आबादी के बड़े हिस्से को जर्मनी में शरण पाने का अधिकार होगा. इस समय जर्मनी आने वाले करीब 40 प्रतिशत शरणार्थी पश्चिमी बालकान के देशों से आ रहे हैं. शरण पाने की अत्यंत कम संभावना होने के बावजूद उन्हें पूरी प्रक्रिया से गुजारा जाता है, जिसका मतलब उन्हें ठहराने और खाने-पीने का खर्च है. इसकी वजह से युद्धक्षेत्र से आने वाले शरणार्थियों के लिए क्षमता में कमी हो रही है.

बस टिकट या पैसा

जर्मन गृह मंत्री का कहना है कि पैसे के बदले कुछ मामलों में चीजें दी जाएं. उन्हें इस बात से शिकायत है कि जर्मनी के कुछ राज्य शरणार्थियों को कुछ महीनों की मदद की रकम एक साथ दे देते हैं. गृह मंत्री का कहना है कि शरणार्थी यह धन उन्हें जर्मनी लाने वाले मानव तस्करों को दे देते हैं. गृह मंत्री का विचार एकदम सही और मानव मर्यादा को किसी तरह प्रभावित नहीं करता. लोगों का सम्मान इस बात पर निर्भर नहीं करता कि उसे बस का टिकट मिलता है या पैसा जिससे वह खुद बस का टिकट खरीदता है. दूसरी ओर पैसा नहीं मिलने से जर्मनी में कामयाबी के कम अवसर के बावजूद शरण की कोशिश करने का प्रलोभन कम हो जाएगा.

अकेले यह संदेश ही महत्वपूर्ण है. इस समय शरणार्थियों के लिए उदारता की एक मिथ्या धारणा है. जो रहना चाहता है वह रह सकता है. बहुत से लोग यह समझते हैं कि शरणार्थियों के मामले में राज्य का कोई नियंत्रण नहीं रह गया है. यह शरणार्थियों को स्वीकार करने की तैयारी को नुकसान पहुंचा रहा है. दे मेजियेर का प्रस्ताव हालांकि एक छोटा कदम है, लेकिन यह दिखाने के लिए सांकेतिक रूप से महत्वपूर्ण कदम है कि राज्य फैसला लेने का अपना अधिकार वापस पाएगा.