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विज्ञानसंयुक्त राज्य अमेरिका

वैज्ञानिकों ने चांद की मिट्टी में उगा दिए पौधे

१३ मई २०२२

कृषि वैज्ञानिकों ने एक ऐसा कारनामा कर दिखाया है जो मानवजाति के भविष्य की दिशा बदलने वाला कदम हो सकता है. उन्होंने चांद से लाई मिट्टी में पौधे उगा दिए हैं.

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चांद से लाई गई मिट्टी में उगे पौधे
चांद से लाई गई मिट्टी में उगे पौधेतस्वीर: Tyler Jones/UF/IFAS

वैज्ञानिकों ने पहली बार चांद से लाई मिट्टी में पौधे उगाने में कामयाबी हासिल की है. कम्युनिकेशंस बायोलॉजी नामक पत्रिका में छपे एक शोध में बताया गया है कि अपोलो अभियान के दौरान अंतरिक्ष यात्री जो मिट्टी लाए थे, उसमें पौधे उगाने में सफलता मिली है. इस सफलता ने वैज्ञानिकों की उम्मीद बढ़ा दी है कि एक दिन चांद पर खेती संभव होगी. इससे चांद पर लंबे समय तक रहना आसान हो जाएगा और बार-बार वहां जाने का खर्चा भी बचेगा.

अभी तो शुरुआत है

हालांकि फ्लोरिडा यूनिवर्सिटी के जिन वैज्ञानिकों ने यह कमाल किया है, वे कहते हैं कि शोध बहुत शुरुआती दौर में है और अभी इस बारे में काफी अध्ययन किया जाना बाकी है. लेकिन अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा इस खोज से बेहद उत्साहित है.

चांद से लाई गई मिट्टी में उगे पौधे
चांद से लाई गई मिट्टी में उगे पौधेतस्वीर: Tyler Jones/UF/IFAS

नासा के प्रमुख बिल नेल्सन ने कहा, "नासा के लंबी अवधि के अभियानों के लिए यह खोज बहुत महत्वपूर्ण है. हमें चांद और मंगल पर मिले संसाधनों का भविष्य के अंतरिक्षयात्रियों के लिए भोजन पैदा करने, वहां रहने और अंतरिक्ष की गहराइयों को खंगालने के लिए प्रयोग करना है.”

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इस प्रयोग के लिए फ्लोरिडा यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने चांद से लाई गई सिर्फ 12 ग्राम यानी कुछ चम्मच मिट्टी का प्रयोग किया था. यह मिट्टी अपोलो 11, 12 और 13 अभियानों के दौरान लाई गई थी. बहुत छोटे आकार के गमलों में उन्होंने इस मिट्टी की सिर्फ एक ग्राम मात्रा डाली और उसमें पानी व बीज डाले. उन्होंने पौधों को रोज पोषक तत्व दिए.

कैसे हुआ प्रयोग?

इस प्रयोग के लिए वैज्ञानिकों ने हरी सरसों के एक करीबी रिश्तेदार को चुना था क्योंकि यह बहुत आसानी से उग जाता है और इस पर विस्तृत अध्ययन भी हुआ है. इसका जेनेटिक कोड और प्रतिकूल परिस्थितियों में प्रतिक्रिया के बारे में वैज्ञानिक काफी कुछ जानते हैं. अंतरिक्ष में भी इस पौधे पर प्रयोग हो चुके हैं.

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प्रयोग के एक हिस्से के तौर पर धरती और मंगल की मिट्टी में भी वही प्रक्रिया दोहराई गई. और नतीजा यह हुआ कि दो दिन बाद चांद की मिट्टी में अंकुर फूट गए. मुख्य शोधकर्ता आना-लीजा पॉल ने एक बयान में बताया, "पहले छह दिन तक हर पौधा, चाहे वह चांद की मिट्टी में जन्मा हो या दूसरी जगह, एक जैसा दिखाई दिया. उसके बाद फर्क नजर आने शुरू हो गए. चांद की मिट्टी में उगे पौधे धीमे बढ़ रहे थे और उनकी जड़ें छोटी थीं.”

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20 दिन बाद वैज्ञानिकों ने सभी पौधों को काटा और उनके डीएनए का अध्ययन किया. विशलेषण में पता चला कि चांद की मिट्टी में पौधों ने वैसा ही व्यवहार किया था जैसा कि वे खराब किस्म के हालात में, जैसे कि बहुत अधिक नमक वाली मिट्टी में उगाए जाने पर करते हैं. अब वैज्ञानिक इस बात पर अध्ययन करेंगे कि कैसे चांद की मिट्टी को पौधों के अनुकूल बनाया जाए.

वीके/एए (एएफपी)

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