वैक्सीन काम करती है, इसका सबूत है इन बीमारियों पर विजय
दुनिया में कोविड-19 के खिलाफ टीकाकरण अभियान के बीच याद रखना जरूरी है कि मानव जाति ने वैक्सीन की बदौलत ही कई बीमारियों पर विजय हासिल की है. हो सकता है जल्द कोरोना वायरस भी उतना सिमट जाए जितने ये बीमारियां सिमट चुकी हैं.
पोलियो
1988 में दुनिया में पोलियो के तीन लाख से भी ज्यादा मामले थे, और आज 200 से भी कम मामले हैं. दो बूंद जिंदगी की - इस अभियान ने भारत से पोलियो को पूरी तरह हटाने में बड़ी भूमिका निभाई. पाकिस्तान, अफगानिस्तान और अफ्रीका के कुछ हिस्सों को छोड़ कर आज बाकी पूरी दुनिया पोलियो मुक्त हो चुकी है, टीके की बदौलत.
मीजल्स
1980 में दुनिया भर में मीजल्स वायरस 25 लाख से भी ज्यादा लोगों की मौत का कारण बना था, लेकिन 2014 आते आते यह संख्या 75,000 से भी नीचे आ गई. मीजल्स के टीके को कई देशों में दूसरे टीकों के साथ मिला कर भी दिया जाता है और इसे काफी सफल टीका माना जाता है.
चेचक
इसे आधुनिक दुनिया की सबसे खतरनाक बीमारी कहा जाता रहा है. चेचक पीड़ित 30 फीसदी लोगों की जान चली जाती थी. टीका बन जाने के बाद भी इस बीमारी को पूरी तरह खत्म करने में करीब दो सौ साल का वक्त लग गया. 1970 के दशक में दुनिया को चेचक से मुक्ति मिली.
स्पेनिश फ्लू
1918 में शुरू हुए इंफ्लुएंजा या स्पेनिश फ्लू का टीका 1945 में जा कर बना. दुनिया की एक तिहाई आबादी इससे संक्रमित हुई और पांच करोड़ लोगों की जान गई. अगर टीका ना बना होता, तो आज दुनिया काफी अलग दिखती.
टेटनस
जब भी कभी चोट लगती है, तो लोग टेटनस का इंजेक्शन लेने भागते हैं. डॉक्टर कहते हैं कि हर दस साल में एक बार टेटनस का टीका लगवाना चाहिए. टेटनस एक जानलेवा बीमारी है और हालांकि अब टेटनस के मामले ना के बराबर हैं, लेकिन रोकथाम के लिए टीका अब भी दिया जाता है.
डिप्थेरिया
नवजात शिशुओं को डीपीटी का टीका दिया जाता है. डी से डिप्थेरिया, टी से टेटनस और पी से पर्टुसिस. ये तीनों बीमारियां बैक्टीरिया के कारण होती हैं. 1948 में डीपीटी का टीका विकसित हुआ लेकिन इसके काफी साइड इफेक्ट हुआ करते थे. 1990 के दशक में इसके फॉर्मूला में बदलाव किए गए.
इबोला
2014 में फैले इबोला संक्रमण को टीके की मदद से ही रोका जा सका. दो साल तक इस बीमारी ने पश्चिमी अफ्रीका में कहर मचाया. इस दौरान वहां ग्यारह हजार से ज्यादा लोगों की जान गई.