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वेटिकन ने पोप का बचाव किया

१४ मार्च २०१०

वेटिकन ने इन आरोपों को ख़ारिज किया है कि पोप बेनेडिक्ट 16वें ने जर्मनी में बाल यौन शोषण पर पर्दा डालने की कोशिश की. जर्मन कैथोलिक चर्च के प्रमुख बाल शोषण के पीड़ितों से माफ़ी मांग चुके हैं पर मामला ठंडा नहीं पड़ रहा है.

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पोप बेनेडिक्ट 16वेंतस्वीर: AP

वेटिकन के प्रवक्ता फ़ेडेरिको लोमबार्दी ने वेटिकन रेडियो को बताया, "साफ़ तौर पर पिछले कुछ दिनों से रेगेंसबुर्ग और म्यूनिख के मामलों के बहाने हॉली फ़ादर को बाल शोषण से जुड़े सवालों में घसीटने की कोशिश हो रही हैं. स्पष्ट तौर पर ऐसी कोशिशें नाकाम रही हैं."

शुक्रवार को ही इस बात की पुष्टि हुई है कि 1980 में म्यूनिख के आर्कबिशप के तौर पर पोप ने एक ऐसे पादरी को घर दिलाने में मदद की थी जिस पर 11 साल के एक बच्चे से यौन दुर्व्यवहार करने का आरोप है. बाद में इस पादरी को छह साल की निलंबित सज़ा दी गई. वह अब भी जर्मन राज्य बवेरिया में रहता है. हालांकि सज़ा मिलने के बाद उस पर फिर ऐसे आरोप नहीं लगे.

जर्मनी में बच्चों के शोषण कांड के फैलते दायरे ने पोप की मुश्किलों को बढ़ा दिया है. ख़ुद उनके भाई जॉर्ज रैत्सिंगर भी इन आरोपों के दायरे में हैं. रेगेंसबुर्ग कैथेड्रिल के लगभग एक हज़ार साल पुराने क्वायर को तीस साल तक रैत्सिंगर ने चलाया. 86 वर्षीय रैत्सिंगर ने मंगलवार को कहा कि उनसे पहले 1950 और 1960 के दशक में यौन शोषण के आरोपों पर "कभी चर्चा ही नहीं हुई."

बचपन में इस क्वायर का हिस्सा रहे थॉमस मेयर ने जर्मन पत्रिका स्पीगल के साथ इंटरव्यू में बताया कि रैत्सिंगर के प्रमुख रहते क्वायर के कई बड़े लड़कों ने उनका बलात्कार किया. उन्होंने रैत्सिंगर पर भी रिहर्सल के दौरान आपा खोने का आरोप लगाया. मेयर के मुताबिक़, "रैत्सिंगर को मैंने रिहर्सल के दौरान बहुत ग़ुस्से में देखा. कई बार तो वह लड़कों पर कुर्सी उठाकर फेंक देते थे जिनमें मैं भी शामिल होता था." रैत्सिंगर ने माना है कि शुरू शुरू में वह बच्चों को "थप्पड़ मार देते" थे और उन्हें इस पर "बुरा भी महसूस" होता था, लेकिन 1980 के दशक के शुरुआत में जब बच्चों को सज़ा देने पर रोक का क़ानून बना तो उन्होंने "राहत की सांस" ली.

वेटिकन के प्रवक्ता ने कहा है कि पोप ने बाल यौन शोषण के मामलों की "सच्चाई को स्वीकार करने और पीड़ितों को मदद देने के लिए प्रोत्साहित" किया है और चर्च की नीति इस तरह के मामलों पर "पर्दा डालने की नहीं, बल्कि इंसाफ़ और पर्याप्त दंड देने की है."

इस तरह के मामलों में लिप्त पादरियों पर आपराधिक आरोप तय होने की उम्मीद तो नहीं है क्योंकि ये कथित अपराध बहुत पहले हुए. लेकिन क़ानून में बदलाव और पीड़ितों को चर्च की तरफ़ से मुआवज़ा देने की मांग ज़ोरदार तरीक़े से उठ रही है.

रिपोर्टः एजेंसियां/ए कुमार

संपादनः ओ सिंह