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विविधता से भरे देश में सर्वव्यापी प्रदूषण

ओंकार सिंह जनौटी
५ अक्टूबर २०१८

क्या आप दिल्ली की दूषित हवा से बचने के लिए 350 किलोमीटर दूर शिमला जाएंगे? हां, कहने से पहले सोच लीजिए, दूषित हवा वहां भी आपका पीछा नहीं छोड़ेगी. भारत की हालत बहुत खस्ता हो चुकी है.

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Luftqualität in Indien Shimla
तस्वीर: Onkar Singh Janoti

समुद्र तल से करीब 1800 मीटर की ऊंचाई पर मौजूद लोहाघाट. इस छोटे से पहाड़ी शहर को तीन तरफ से देवदार और एक ओर से बलूत के जंगलों का घेरा है. बीते 20 साल में यहां हरियाली घटती गई और कंक्रीट का जंगल बढ़ता गया. आज हालात ये हैं कि इस छोटे से पर्वतीय शहर की आबोहवा भी हर वक्त दूषित रहती है. यही हाल पहाड़ों की रानी शिमला का भी है. दोनों जगहों पर एयर क्वालिटी इंडेक्स 151 से 200 के बीच है, यानी हवा में हानिकारक गैस और अतिसूक्ष्म कण बहुत ज्यादा है. हवा बुजुर्गों, बच्चों या संवेदनशील लोगों के लिए ही नहीं, बल्कि सब के लिए नुकसानदेह हो चुकी है.

	Luftqualität in Indien Lohaghat
दिल्ली से दूर भी हवा का बुरा हालतस्वीर: Onkar Singh Janoti

बात चाहे दिल्ली की हो, पहाड़ों की हो या फिर जयपुर या कोलकाता की, हर जगह प्राणवायु की क्वालिटी सेहत के लिए खराब है. दूसरे शब्दों में कहें तो पूरब से पश्चिम तक और उत्तर से दक्षिण तक भारत एक गैस चैम्बर बनता जा रहा है. इस मुगालते में न रहिए कि पहाड़ों में चले जाएंगे तो प्रदूषण से बच जाएंगे. भारी उद्योग न होने के बावजूद बेहताशा गाड़ियों ने ऐसे हालात पैदा कर दिए हैं.

एक अंतरराष्ट्रीय शोध के मुताबिक 2017 में दूषित हवा के चलते भारत में कम से कम 25 लाख लोगों की मौत हुई. दुनिया के किसी और देश में प्रदूषण के चलते इतने बड़े पैमाने पर लोग नहीं मारे गए.

Luftqualität in Indien Kolkata
तस्वीर: Onkar Singh Janoti

दुर्भाग्य की बात है कि संकट इतना गहराने के बाद भी उससे निपटने के लिए कोई प्रभावी नीति नहीं दिखती. 2014 में बेंगलुरू में पहली इलेक्ट्रिक बस पेश की गई, लेकिन 2018 तक यह बस देश के दूसरे हिस्सों में नहीं पहुंच सकी. 2016 और 2017 में अशोक लेलैंड और टाटा मोटर्स ने भी बिजली से चलने वाली बसें उतारी, लेकिन देश के ज्यादातर राज्यों में आज भी आपको काला धुआं छोड़ती डीजल की बसें ही दिखेंगी. पहाड़ी इलाकों में डीजल से चलने वाली जीपें मक्खियों की तरह भिनभिना रही हैं. समाधान ही जब समस्या बन जाए तो उससे निपटना काफी मुश्किल होता है.

भारत में अब हर स्तर पर प्रशासन को प्रदूषण के प्रति संवेदनशील होना ही होगा. इस काम में जितनी देरी होगी, हालात उतने बदतर होते जाएंगे.