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विदेशियों को राशन देने से फूड बैंक का इनकार

एलिजाबेथ शूमाखर
२८ फ़रवरी २०१८

जर्मनी में लगभग छह हजार लोगों को राशन मुहैया कराने वाले एक फूड बैंक ने विदेशियों को सदस्यता कार्ड ना देने का फैसला किया है. इसके बाद देश में नस्लवाद को लेकर नई बहस शुरू हो गई. चांसलर मैर्केल ने इस फैसले की आलोचना की है.

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Essener Tafel
तस्वीर: picture alliance/dpa/R. Weihrauch

जर्मनी के पश्चिमी शहर एसेन में एक छोटा सा एनजीओ देश में विदेशियों को नापंसद करने, प्रवासन और गरीबी को लेकर जारी राष्ट्रीय बहस का केंद्र बन गया है. विवाद की वजह टाफेल नाम का एक फूड बैंक है. चांसलर मैर्केल ने विदेशियों को सदस्यता कार्ड देना बंद करने के टाफेल के फैसले की आलोचना की है. लेकिन कई लोगों का कहना है कि यह उनकी ही सरकार की नीतियों का नतीजा है.

टाफेल जर्मनी में काम कर रहे लगभग 950 गैर सरकारी फूड बैंकों में से एक है. टाफेल के वॉलंटियर जरूरतमंद लोगों और परिवारों को खाने पीने के ऐसे सामान देती है जिन्हें फेंक दिया जाता है. यह संस्था अपने पार्टनर और स्पॉन्सर संगठनों के साथ काम करती है और उनसे ऐसे सामान लेती है जो बेचने लायक नहीं रहा है. लेकिन वह खाने लायक होता है और बहुत से बेघर लोगों का पेट भर सकता है.

टाफेल के 75 फीसदी सदस्य विदेशी लोग हैं. लेकिन एसेन में टाफेल ने पिछले हफ्ते घोषणा की कि वह अब सिर्फ जर्मन लोगों को ही राशन देगी. संस्था का कहना है कि जिन लोगों की वह मदद कर रही थी, उनमें से तीन चौथाई विदेशी थे, जिससे उसके संसाधनों पर बोझ पड़ रहा है. इसके चेयरमैन योर्ग सारतोर ने पिछले गुरुवार को एक प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि टाफेल को विदेशियों से कोई दिक्कत नहीं है और सदस्यता कार्ड देने पर लगाई गई रोक अस्थायी है.

इस फैसले को लेकर जहां टाफेल की आलोचना हो रही है, वहीं जर्मन सरकार की नीतियों पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं. वामपंथी पार्टी डि लिंके की नेता सारा वागेनक्नेष्ट ने कहा है कि सरकार शरणार्थी संकट के दौरान अपनी लचर नीतियों का बोझ छोटे गैर सरकारी संगठनों को उठाने के लिए मजबूर कर रही है. उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा कि "जर्मनी जैसे अमीर देश में हम क्यों इस बात पर चर्चा कर रहे हैं कि बचा खुला राशन किसे मिलेगा."

इस बारे में जब चांसलर अंगेला मैर्केल से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि "यह सही नहीं है" कि टाफेल नागरिकता के आधार पर अपने सदस्यता कार्ड जारी करे, लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि यह स्थिति इस तरफ ध्यान दिलाती है कि "गैर सरकारी संगठनों पर कितना बोझ है". लेकिन गरीबी विशेषज्ञ क्रिस्टोफ बुटरवेगे कहते हैं कि सरकार की नीतियां ही इस स्थिति के लिए जिम्मेदार हैं. उनका मानना है, "मुख्य वजह है सामाजिक कल्याण प्रणाली के लिए मिलने वाली राशि में लगातार कटौती. हम यहां उसी का नतीजा देख रहे हैं."

जब उनसे पूछा गया कि क्या टाफेल के फैसले को नस्लवाद से हटकर देखा जा सकता है तो उन्होंने कहा, "देखिए, इस मामले में कहीं ना कहीं नस्लवाद के संकेत तो मिलते हैं. खाद्य सामग्री देने के लिए राष्ट्रीयता को कसौटी नहीं बनाया जा सकता." वह कहते हैं कि यह सुनिश्चित करना जर्मन सरकार की जिम्मेदारी है कि कोई भी भूखा न रहे.