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विदेश मंत्री वेस्टरवेले का मुश्किल भारत सफर

२२ अक्टूबर २०१०

जर्मन प्रेस में भारत या दक्षिण एशिया के बारे में जितनी रिपोर्टें छपती हैं वो कम हैं लेकिन भारत में जर्मनी पर उससे भी कम. जर्मन विदेश मंत्री वेस्टरवेले की यात्रा के दौरान जर्मन समाचार पत्रों में इसे महसूस किया गया.

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एसएम कृष्णा के साथ गीडो वेस्टरवेलेतस्वीर: AP

मिसाल के तौर पर बर्लिन के समाचार पत्र डेर टागेसश्पीगेल में दिल्ली से भेजी गई एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के बड़े समाचार पत्रों में गीडो वेस्टरवेले का कोई अतापता नहीं. इसके बदले चांसलर अंगेला मैर्केल के इस बयान पर रिपोर्टें देखने को मिली कि जर्मनी में बहुसांस्कृतिकता की कोशिश विफल हो चुकी है. समाचार पत्र का कहना है कि भारत को जर्मनी की जितनी जरूरत है, जर्मनी को भारत की उससे कहीं अधिक. आगे कहा गया है :

भारत को रिझाने की कोशिश में जर्मन अकेले नहीं हैं. नवंबर के आरंभ में अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा आ रहे हैं. उनके फ्रांसीसी समकक्ष निकोला सारकोजी दूसरी बार भारत आ रहे हैं. मामला अरबों के व्यापार का है. अपने घरेलू उद्योग को आगे बढ़ाने के लिए सारकोजी की तरह ओबामा भी भारत को अस्त्र, युद्धसामग्री और परमाणु तकनीक बेचना चाहते हैं. लेकिन इस मामले में जर्मनों को परेशानी हो रही है. प्रेस के सामने वेस्टरवेले अस्त्रों की बिक्री के बदले निरस्त्रीकरण की बात कर रहे हैं...लेकिन भारत के सामने निरस्त्रीकरण की बात से कोई फायदा नहीं. यह उपमहाद्वीप संघर्ष के क्षेत्रों से घिरा हुआ है. पाकिस्तान के साथ तीन युद्ध हो चुके हैं. बार-बार आतंकवादी हमले हो रहे हैं. चीन को भी दिल्ली शक की निगाह से देखता है.

इसी सवाल की चर्चा करते हुए आर्थिक समाचार पत्र हांडेल्सब्लाट में कहा गया है कि भारत अपने तेजस युद्धक विमानों के लिए म्युनिख स्थित यूरोजेट के बदले अमेरिकी जनरल इलेक्ट्रिक के इंजनों को तरजीह दे रहा है. समाचार पत्र में कहा गया है :

अपने देश के अस्त्र उद्योग के लिए, सरकार की बचत नीति के चलते जिसे विदेशी बाजार की सख्त जरूरत है, जर्मन मंत्री की वकालत का कोई फायदा नहीं हुआ. जनरल इलेक्ट्रिक के लिए अपने फैसले की वजह के तौर पर भारत सरकार ने कहा है कि सभी खर्चों को ध्यान में रखते हुए अमेरिकी कंपनी ने सस्ते इंजन का प्रस्ताव दिया है. अभी तक आखिरी फैसला नहीं हुआ है. लेकिन जर्मन सरकारी हलकों में किसी को उम्मीद नहीं है कि रुख बदल सकता है. एक सरकारी प्रतिनिधि ने कहा कि मामला खत्म हो चुका है.

बर्लिन के समाचार पत्र बर्लिनर त्साइटुंग में गांधी स्मारक पर भारत के कुछ बुद्धिजीवियों के साथ जर्मन विदेश मंत्री की मुलाकात की रिपोर्ट दी गई है. रिपोर्ट में कहा गया है कि यहां उन्हें मच्छरों का सामना नहीं करना पड़ा, पूरी यात्रा के दौरान गीडो वेस्टरवेले जिसकी वजह से परेशान रहे. लेकिन उन्हें अपनी चांसलर की वकालत करनी पड़ी. प्रोफेसर अमिताभ मट्टू ने पूछा कि जर्मनी में बहुसांस्कृतिकता के विफल होने के चांसलर के बयान का मतलब क्या है. रिपोर्ट में कहा गया :

यह विदेश मंत्री की भारत यात्रा का आखिरी दिन था. और उन्हें पता था कि अब कोई गलती नहीं होनी चाहिए. उन्होंने धीमी आवाज में लगभग ठीकठाक अंग्रेजी में चांसलर के बयान को समझाने की कोशिश की. उन्होंने कहा कि जर्मनी में इस समय चल रही बहस का मतलब यह नहीं है कि वहां रहने वाले विदेशी अपनी संस्कृति और परंपरा के अनुरूप नहीं रह सकते. लेकिन उन्हें जर्मन नियमों का पालन करना पड़ेगा और जर्मन मूल्यों को स्वीकार करना पड़ेगा. उन्होंने कहा कि वे मुल्टिकुल्टि या बहुसांस्कृतिकता को इसी रूप में समझते हैं.

इसी तरह समाचार पत्र फ्रांकफुर्टर अलगेमाइने त्साइटुंग में जेएनयु के परिसर में आईआईटी के छात्रों के साथ जर्मन विदेश मंत्री की मुलाकात की रिपोर्ट दी गई है. वेस्टरवेले को बार-बार अपनी बात रोकनी पड़ी, क्योंकि ऊपर से गरजते हुए हवाई जहाज गुजर रहे थे और छात्र ऊपर की ओर ताक रहे थे. विदेश मंत्री ने कहा कि ये हवाई जहाज उतने खतरनाक नहीं हैं, जितने कि नीचे धरती के पास उड़ रहे मच्छर. मच्छरों ने उनका नाकोंदम कर रखा था. समाचार पत्र में आगे कहा गया है :

शाम को हुई सभा में जर्मन भाषा के एक प्रोफेसर ने उनसे पूछा कि कुशल कर्मियों को ढूंढने वाला जर्मनी अपने आप्रवासियों से कौन सी अपेक्षाएं रखता है...जर्मन आप्रवास नीति के बारे में सवालों के साथ जर्मनी से आये मेहमान के सामने शीशा धर दिया गया - चीन में किसी जर्मन विदेश मंत्री से अल्पसंख्यकों की हालत के बारे में तीखे सवाल नहीं किए जाएंगे.

और म्युनिख से प्रकाशित दैनिक ज़ुएडडॉएचेत्साइटुंग में कहा गया है कि जर्मन विदेश मंत्री की भारत की पहली यात्रा नम्रता सीखने का अभ्यास भी था. अपनी यात्रा के दौरान उन्हें अक्सर यह आभास हुआ कि यूरोप का एक लगभग बड़ा देश भारत में सिर्फ लगभग महत्वपूर्ण है. समाचार पत्र में कहा गया है :

वेस्टरवेले कहते हैं कि घर वापस लौटकर वे अब भारत के बारे में बात करेंगे. उनके शब्दों में, जर्मनी के बाहर कितनी तेजी से दुनिया बदल रही है, वहां, जहां अब भी नए रेलवे स्टेशन बनाए जाते हैं. ऐसी बातें हम पहले भी सुन चुके हैं. बर्लिन हवाई अड्डे पर उतरने के बाद हमें वेस्टरवेले का वही पुराना चेहरा दिखेगा.

संकलन: उज्ज्वल भट्टाचार्य

संपादन: आभा एम