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वाइरसों के मेजबान चमगादड़

५ फ़रवरी २०११

लगातार नए वाइरस मिल रहे हैं, चंद दिनों के अंदर वे सारी दुनिया में फैल जाते हैं, लाखों लोग बीमार हो जाते हैं, दसियों हजार की मौत हो जाती है. पिछले सालों के दौरान बार-बार ऐसा देखा गया है. कहां से आते हैं ये नए वाइरस?

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तस्वीर: picture alliance/dpa

हाल के वर्षों में उनके स्रोत का पता लगाने के लिए काफी शोध किए गए हैं. और पता चला है कि अक्सर ये वाइरस पहले से ही चमगादड़ के शरीर में पाए जा सकते हैं. शायद उन पर शोध से पता चल सकता है कि कैसे वे इनसे निपटते हैं, और उसके आधार पर इंसानों में उनके इंफेक्शन से भी निपटा जा सकता है. मिसाल के तौर पर फरवरी 2003 में एशिया में एक नई रहस्यमय बीमारी उभरी. शुरू में इसके लक्षण फ्लू की आम बीमारी की तरह होते हैं. बुखार, नजला, गले में दर्द. लेकिन एक हफ्ते बाद न्युमोनिया हो जाता है, दस फीसदी मरीजों की मौत हो जाती है. इस बीमारी को सार्स का नाम दिया गया. जर्मनी के हैम्बर्ग नगर के बैर्नहार्ड नॉख्ट इंस्टीट्यूट फॉर ट्रॉपिकल मेडिसीन के वाइरस विशेषज्ञ क्रिस्टियान ड्रोस्टेन इस वाइरस की खोज में सफल रहे. इसका नाम है कोरोना वाइरस. वे कहते हैं कि इस सिलसिले में कहीं कोई जानकारी नहीं थी कि यह वाइरस कहां से आया. जानवरों पर किए गए शोध से पता चला कि इस वाइरस के स्रोत चमगादड़ के शरीर में पाए जाते हैं.

शोधकर्ताओं ने चमगादड़ के शरीर में पाए जाने वाले वाइरस का अध्ययन किया. पता चला कि इंसानों तक आने से पहले एक लंबे अरसे से यह वाइरस चमगादड़ों के शरीर में पाया जाता था. और यह बात सिर्फ सार्स के वाइरस के लिए ही लागू नहीं होती है. शोधकर्ताओं को इस बीच पता चल चुका है कि इंसानों में फैलने वाले कई वाइरस के संस्करण चमगादड़ों में काफी अरसे से मौजूद हैं. क्रिस्टियान ड्रोस्टेन इस समय बॉन में वाइरोलॉजी इंस्टीट्यूट के प्रधान हैं. वे इस सिलसिले में एबोला, जलातंक, फ्लू और गैस्ट्रो-एंट्राइटिस का हवाला देते हैं. उनका कहना है कि यह ठीक-ठीक पता नहीं है कि कुछ एक वाइरस क्यों चमगादड़ से इंसान तक आते हैं या वे कैसे आते हैं. लेकिन इतना निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि चमगादड़ों में वाइरस की बहुत सारी नस्लें पाई जाती हैं. और इस बीच उभर रही तस्वीर के आधार पर कहा जा सकता है कि चमगादड़ों की तरह एक स्तन्यपायी जीव होने के कारण वाइरसों की इस बहुतायत में से कुछ एक इंसानों तक आते हैं.

Gruppe von Fledermäusen in einer Höhle
जिस्म में पल रहे हैं वाइरसतस्वीर: Nancy Heaslip, New York Department of Environmental Conservation

वाइरसों के मेजबान

ऐसा लगता है कि चमगादड़ वाइरसों के लिए बड़े अच्छे मेजबान होते हैं. पहली बात यह है कि वे विशाल झुंडों में रहते हैं, यानी वाइरस को फैलने का मौका मिलता है. साथ ही वे स्तन्यपायी जीव हैं. क्रिस्टियान ड्रोस्टेन कहते हैं कि वे यह भी पूछ रहे हैं कि क्या आबादी की वजह से चमगादड़ों में ये वाइरस पाए जा रहे हैं, यानी वहां ये वाइरस अन्य स्तन्यपायी जीवों में फैलने की तैयारी कर सकते हैं. चमगादड़ इन वाइरसों के लिए ट्रांजिट स्टेशन हो सकते हैं, जहां उन्हें दूसरे स्तन्यपायी जीवों के बारे में जानकारी मिल सकती है.

क्रिस्टियन ड्रोस्टेन का कहना है कि सिर्फ इंसानों के बीच पाए जाने वाले वाइरसों के बारे में जानना काफी नहीं है, जहां से वे आते हैं, उनके शरीर में उनके बर्ताव की जांच जरूरी है. वे कहते हैं कि शायद वाइरस और उनके मेजबान शरीर के बारे में संबंधों को बेहतर ढंग से जाना जा सकेगा, अगर हम वहां उनका अध्ययन करें, जहां वे काफी अरसे से रह रहे हैं. इस तरह पता चल सकता है कि किस वजह से वे इतने खतरनाक हैं. साथ ही खतरनाक और मामुली वाइरसों के बीच अंतर का पता लगाया जा सकता है.

शोधकर्ताओं की खास दिलचस्पी इसमें है कि इंसानों के शरीर में फैलने के लिए वाइरसों को अपने आप में कौन से परिवर्तन करने पड़े. शायद कभी वे चमगादड़ों के शरीर में पाए जाने वाले सभी वाइरसों का पता लगा पाएंगे और उन्हें इसकी भी भनक मिलेगी कि इनमें से कौन से वाइरस इंसानों के लिए खतरनाक हो सकते हैं.शायद दस या बीस सालों के बाद निश्चित तौर पर कहा जा सकेगा कि किसी खास इलाके में वाइरस हैं. फिर सोचा जा सकता है कि कैसे उन्हें खत्म किया जाए.

इतना तय है कि चमगादड़ों को खत्म नहीं किया जाएगा. जैव विविधता के लिए वे महत्वपूर्ण हैं, वे बहुतेरे हानिकारक कीड़ों को नष्ट करते हैं. लेकिन शायद उनमें फैले वाइरस दूर किए जा सकते हैं, और इस तरह इंसानों को उनसे बचाया जा सकता है.

रिपोर्ट: मारीके डेगेन/उ भट्टाचार्य

संपादन: एस गौड़

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