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दिखा जमीन में छिपा रोमन साम्राज्य

२६ जुलाई २०१६

अतीत के राजों का पता करने के लिए रिसर्चर हवाई यात्रा पर जा रहे हैं. उनके साथ आधुनिक लेजर तकनीक भी है. यह तकनीक अज्ञात भवनों के अवशेषों की जानकारी देती है.

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तस्वीर: Q. Zhang

लेजर किरणों की खासियत है कि वे पेड़ों, झाड़ियों और घास को चीरती हुईं जमीन के अंदर देखती हैं. इस तकनीक की मदद से यूरोप के सबसे ताकतवर ढांचे यानी रोमन साम्राज्य की सीमा पर बनाई गई दीवार लाइम्स का फिर से पता लगाया जा रहा है. समय के साथ यह दीवार कहीं छुप गई है. कुछ सेकंड के अंदर ही बड़े इलाकों की मैपिंग की जा सकती है. स्कैनर जमीन तक की दूरी को रोशनी की गति से नापता है. इस डाटा से पता चलता है कि नीचे पेड़ है या सख्त जमीन.

इस काम में लगे पुरातत्वविद मार्टिन शेख बताते हैं कि रोमन काल की सीमाई दीवार के बारे में सौ साल से ज्यादा से शोध हो रहा है, "इस बात की उम्मीद नहीं थी कि बहुत कुछ नया मिलेगा. इसके बावजूद नए पिलर, नए वॉच टावर और लकड़ी के ढांचे मिले हैं. इनके अलावा छोटे किले भी मिले हैं."

लेजर से सुराग

2000 साल पहले रोमन साम्राज्य की सीमा 550 किलोमीटर लंबी थी. वहां 900 वॉच टावर और 120 बड़े और छोटे किले मौजूद थे. इस दीवार का मकसद बाहरी आक्रमण से सुरक्षा था. अब इसे प्रकृति ने पूरी तरह अपने आगोश में ले लिया है. यदि लेजर स्कैनर से डाटा न मिला होता, तो ये सब कुछ खो ही गया होता. अब पता चली जानकारी की मदद से अज्ञात टावर फिर से पुराने आकार में बनाए जा सकते हैं. इस तरह रोमन साम्राज्य की रक्षा पंक्ति को नए सिरे से समझा जा सकता है. लेजर समर्थित विश्लेषण ने रोमन दीवारों का लंबे समय से छुपा राज खोल दिया है.

रोशनी से सफाई

लेजर पुरातत्ववेत्ताओं का एक और प्रोजेक्ट है वालहाल्ला यानी प्रसिद्ध लोगों को सम्मान देने के लिए बना जर्मन स्मारक. इसे ग्रीस के पैंथियन के अनुरूप बनाया गया है. हालांकि यह स्मारक सिर्फ 200 साल पुराना है लेकिन वैज्ञानिकों के लिए कम दिलचस्प नहीं है. उन्होंने इस बिल्डिंग को अंदर और बाहर से नाप लिया है. अब तल की बारी है. नम जमीन में वे और सटीक स्टेशनरी लेजर स्कैनर लगाते हैं. पूरे ढ़ाचे का सटीक माप कुछ सेकंड में ही मिल जाता है. ऐसी दरारों के बारे में भी पता चलता है, जिन्हें आंखें नहीं देख पाती और दूसरे नुकसान का भी पता चलता है, जो इमारत को खतरे में डाल रहे हैं.

लेजर किरणों की मदद से अतीत की खोज अभी शुरू ही हुई है. पुरातत्वविदों की टीम नई एरोनॉटिक्स तकनीक का विकास कर रही है ताकि सटीक तरीके से इतिहास के बारे में पता लगाया जा सके.