लाखों बच्चों की जान लेते न्यूमोनिया, डायरिया
८ जून २०१२इनमें भी सबसे ज्यादा मौत एशिया और अफ्रीका के गरीब देशों में होती है. रिपोर्ट में जिन देशो का नाम लिया गया है उनमें भारत, पाकिस्तान, नाइजीरिया, कांगो और इथोपिया जैसे देशों का नाम शामिल है. रिपोर्ट में कहा गया है कि कुपोषण, साफ-सफाई की कमी, टीकाकरण की सुविधा का न होना और जागरुकता की कमी मुख्य वजहे हैं जिससे निमोनिया और डायरिया पर रोक नहीं लग रही. युनिसेफ के कार्यकारी निदेशक एंथोनी लेक का कहना है, 'सामान्य प्रयास करने पर ही इन बीमारियों से छुटकारा पाया जा सकता है.'
अगर बच्चों के जन्म के 6 महीने तक उन्हे मां का दूध पिलाया जाए तो भी इसमें कमी आ सकती है.जिन बच्चों को मां का दूध नहीं पिलाया जाता उनके निमोनिया से ग्रस्त होने का खतरा 15 गुना ज्यादा होता है. हर साल पांच से कम उम्र में जितने भी बच्चों की मौत होती है उनमें से 29 फीसदी की मौत निमोनिया या डायरिया की वजह से ही होती है. अफ्रीका और एशिया में तो 90 प्रतिशत बच्चों की मौत की जिम्मेदार यही दोनों बीमारियां है. निमोनिया से मरने वालों में 30 फीसदी और डायरिया से मरने वालों में 60 फीसदी की कमी की जा सकती है अगर इन देशों के गरीब बच्चों के बीच जागरुकता का स्तर वही हो जाए जो अमीर बच्चों का है.
2015 तक इन 75 देशों में बच्चों की मौत में 13 फीसदी की कमी की जा सकती है. युनिसेफ का कहना है ये रिपोर्ट तो देशों को आगाह करने के लिए है.इन बीमारियों से निपटने के लिए क्या योजनाएं बनाई जाएंगी इस बारे में भी युनिसेफ रिपोर्ट तैयार कर रहा है जिसे अगले साल जारी करेगा. रिपोर्ट में एशिया के थाईलैंड, मंगोलिया और मलेशिया का जिक्र करते हुए कहा गया है कि इन देशो ने ग्रामीण इलाकों तक एंटीबायोटिक दवाएं पहुंचाने में कामयाब रहे इस कारण वहां निमोनिया और डायरिया का खतरा भी कम हुआ है.
रिपोर्टः वीडी/एएम (डीपीए, रॉयटर्स)