लड़कियों में नहीं, सोच में दाग
१४ अगस्त २०१२मासिक धर्म के दौरान लड़कियों को अपवित्र मानने की परंपरा उत्तर से लेकर दक्षिण तक एक है. कर्नाटक की राजधानी बैंगलौर की एक झुग्गी बस्ती का हाल सुनिए. सुबह ज्यादातर लोग काम पर या स्कूल जा चुके हैं. लेकिन 14 साल की कौसल्या वेलायुथम अकेले घर में बैठकर कपड़े धो रही है. वह स्कूल नहीं जा रही है क्योंकि उसका मासिक धर्म चल रहा है.
घर से निष्कासित
कौसल्या घर के बाहर अस्थायी रूप से बनाए गए छप्पर के नीचे रह रही है. इसे केले के पत्ते से बनाया गया है. उसे पिछले कई दिनों से यहां रहना पड़ रहा है. वह कहती है, "मुझे घर के अंदर जाने की मनाही है. सिर्फ सोने के लिए मैं अंदर जा सकती हूं लेकिन वो भी ज्यादा अंदर नहीं. हमारे घर के सारे देवताओं को कपड़े से ढंक दिया गया है. मुझसे कहा गया है कि मैं उन देवताओं को नौ दिन तक न देखूं नहीं तो वो नाराज हो जाएंगे."
कौसल्या का परिवार मूल रूप से तमिलनाडु का रहने वाला है और इन दिनों वो कर्नाटक में मजदूरी करके जीवन चला रहा है. कौसल्या के कमरे में उसके अलावा एक विधवा चाची और उनके तीन बच्चे भी रहते हैं. कौसल्या के पिता ने उसके परिवार को छोड़ दिया है और मां अपने गांव आ गई है. घर का काम करने के अलावा चाची ललिता की देखभाल करना भी कौसल्या की जिम्मेदारी है.
जैसा कि चलन है कौसल्या को पांच दिन के बाद ही घर में घुसने की इजाजत मिली. लेकिन इसके अलावा और कई दूसरी बातें हैं जिन्हें नौ दिन तक कौसल्या को ध्यान में रखना है. वो 'शैतानी ताकत' से सुरक्षा के लिए बनाए गए छज्जे से बाहर नहीं निकल सकती. यहां तक कि घर के अंदर शौच जाने की भी मनाही है. इस स्थिति में उसे बस स्टैंड के नजदीक बनाए गए सार्वजनिक शौचालय का इस्तेमाल करना होता है. वहां भी उसे सिर ढंककर जाना होता है.
युवावस्था की निशानी
मासिक धर्म को भारत में लड़कियों के बड़े होने की भी निशानी माना जाता है. मासिक धर्म के दौरान क्या नहीं करना है इसके अलावा कौसल्या शायद ही इसके बारे में कुछ और जानती होगी. मासिक धर्म से शरीर में और क्या बदलाव होते हैं इस बारे में उसे कुछ भी नहीं पता.
बस उससे इतना जरूर कहा गया है कि लड़कों और अपरिचित लोगों से उसे दूर रहना है. लेकिन क्यों, ये पता नहीं, "चूंकि मुझे पहली बार मासिक धर्म हो रहा है इसलिए किसी मर्द को मेरा चेहरा नहीं दिखना चाहिए. अगर किसी ने मेरा चेहरा देख लिया तो मेरे चेहरे पर फुंसियां हो जाएंगी." हालांकि कौसल्या को इस बात की खुशी भी है कि उसे बाद में पहनने के लिए नए कपड़े और गहने मिले हैं.
कौसल्या की ही तरह उसकी दोस्त शालिनी के साथ भी यही हुआ. करीब सात महीने पहले जब उसका मासिक धर्म शुरू हुआ तब वो स्कूल में थी. इसके बाद शिक्षक ने उसे घर भेज दिया. उसे भी कौसल्या की तरह पांच दिन घर के बाहर बनाए गए छप्पर के नीचे रहना पड़ा.
कहा जाता है कि इस प्राचीन परंपरा का असली मकसद मासिक धर्म के दौरान महिलाओं को आराम देना था लेकिन बाद में इसका गलत अर्थ निकाला गया और अब मासिक धर्म के दौरान उन्हें अपवित्र माना जाने लगा है. माना जाता है कि मासिक धर्म के दौरान लड़कियां जिसको भी छू देंगी वो 'गंदा' हो जाएगा.
पढ़ाई लिखाई पर ब्रेक
मासिक धर्म की वजह से लड़कियों की पढ़ाई लिखाई में भी रुकावट आती है. हालांकि शालिनी इसका अपवाद है. उसके मां बाप उसकी पढ़ाई लिखाई का ध्यान रखते हैं. मासिक धर्म के दौरान उसके पेट में दर्द भी होता है लेकिन वो डॉक्टर के पास नहीं जा सकी. शालिनी कहती है, "मेरी चाची ने मुझसे कहा कि डॉक्टर के पास जाने की जरूरत नहीं है. मुझे खाने के लिए मेवे और मिठाइयां दी गईं. और कहा गया कि इसे खाने के बाद मेरी तबीयत ठीक हो जाएगी."
मासिक धर्म के बाद सबसे ज्यादा लड़कियों के मां बाप शादी की तैयारी करने लगते हैं. हालांकि ये प्रचलन ग्रामीण इलाकों में ज्यादा है. उनका मानना है कि इसके बाद लड़की गर्भवती हो सकती है. उधर टीए हायर प्राइमरी स्कूल के शिक्षक बताते हैं कि उनके स्कूल में अब तक ऐसा नहीं हुआ है कि मासिक धर्म की वजह से किसी लड़की ने स्कूल छोड़ा हो. हां, ये बात अलग है कि कई बार लड़की के मां बाप को घर जाकर समझाना पड़ता है. भारत की लड़कियों का करीब एक चौथाई हिस्सा मासिक धर्म के दौरान स्कूल नहीं जा पाता. कई तो स्कूल से इसलिए भी स्कूल नहीं जातीं क्योंकि उनके पास मासिक धर्म के दौरान इस्तेमाल किए जाने वाले नैपकिन खरीदने के लिए पैसे नहीं होते.
यौन शिक्षा की कमी
भारत में यौन शिक्षा की कोई व्यवस्था नहीं है. हालांकि कर्नाटक सरकार ने इस साल स्कूलों में यौन शिक्षा से संबंधित पाठ्यक्रम लागू कर दिया है लेकिन इसे शिक्षक और स्कूल के अधिकारी कितनी सफलता से लागू कर पाएंगे ये देखना बाकी है. शालिनी को अंग्रेजी पढ़ने वाली संथिनी भास्कर का कहना कि यौन शिक्षा से लड़कियों को फायदा होगा. इससे वो उन्हें इस बात की सीख मिलेगी कि अपरिचितों से कैसे व्यवहार करें. इसके साथ ही छेड़छाड़ की घटनाओं से भी बचने में उन्हें आसानी होगी.
वो कहती हैं, "बच्चे आजकल टीवी देखते हैं और काफी कुछ जानते हैं. अगर हम कभी क्लास में प्रेम या स्नेह की बात करें तो बच्चे इसे गलत समझने लगते हैं. हम इन मसलों के बारे में खुलकर बात करना पसंद नहीं करते. मेरा निजी तौर पर मानना है यह है कि हमें सेक्स एजुकेशन की जरूरत नहीं है. अगर उन्हें कुछ चीज सिखाना जरूरी है तो वह है कि यौन व्यवहार के बारे में बताया जाए. दूसरे लोग उन्हें आकर इस बारे में जानकारी दें."
रिपोर्टः पिया चंदावरकर/वीडी
संपादनः आभा मोंढे