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लंबे समय से शांत कजाखस्तान क्यों उबल पड़ा है

६ जनवरी २०२२

कजाखस्तान अपने इतिहास की सबसे बड़ी अशांति का सामना कर रहा है. सोवियत संघ के बाद के दौर में रूस के बड़े सहयोगियों में शामिल यह देश बीते दशकों में स्थिर रहा है. तो आखिर अब ऐसा क्या हो गया?

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Kasachstan Almaty | Proteste & Ausschreitungen
तस्वीर: REUTERS

रविवार को पश्चिमी कजाखस्तान के झनाओजेन शहर में सैकड़ों लोग एलपीजी की ऊंची कीमतों का विरोध करने सड़कों पर उतरे. एलपीजी को यहां ऑटोगैस के नाम से भी जाना जाता है, जो यहां का प्रमुख ईंधन है. इसके बाद से विरोध की यह लहर पूरे देश में फैल गई और जहां तहां हजारों लोग सड़कों पर उतर कर विरोध में शामिल हो गए.

प्रदर्शनकारी अलमाटी में भी सड़कों पर उतरे जो पहले यहां की राजधानी हुआ करता था और वहां राष्ट्रपति भवन को आग लगा दी गई. इसके साथ ही म्युनिसिपल्टी की इमारतों, पुलिस की गाड़ियों को आग लगाने और हथियारबंद पुलिस अधिकारियों के गश्त, गोलीबारी और धमाकों की भी खबरें आ रही हैं.

एक चौंकाने वाली बात यह हुई कि राष्ट्रपति कासिम जोमार्ट तोकायेव ने बुधवार को उन मुद्दों का हल करने के लिए कदम उठाने की घोषणा की है जिनकी वजह से अशांति फैली है. दूसरी तरफ कार्यकारी सरकार ने इस्तीफा दे दिया है और राष्ट्रपति ने देश के सबसे ज्यादा प्रभावित इलाकों में आपातकाल का एलान कर दिया है.

जमीनी हालात भले ही अभी साफ नहीं लेकिन एक बात जरूर है कि लंबे समय से निरंकुश सरकार के साये में स्थिर रहने वाला कजाखस्तान इतने बड़े राजनीतिक संकट में इससे पहले कभी नहीं फंसा. इसके नतीजे काफी बड़े हो सकते हैं. आखिरकार यह सोवियत संघ का पूर्व सदस्य देश है और रूस के साथ करीबी संबंध बनाए हुए है. 

Kasachstan Almaty | Proteste & Ausschreitungen
तस्वीर: REUTERS

बढ़ती कीमतें और जरूरी चीजों की कमी

हाल में झानाओजेन से जो विरोध प्रदर्शन शुरू हुआ है उसकी नींव 10 साल पहले पड़ी थी. तब तेल कर्मचारी हड़ताल पर चले गए थे. प्रदर्शन करने वालों पर अधिकारियों की कार्रवाई में दर्जनों लोगों की मौत हुई. शांतिपूर्ण मगर थोड़ी निरंकुश सरकार वाले देश की छवि को इससे चोट पहुंची.

2011 में कर्मचारियों की हड़ताल के पीछे उनकी कम मजदूरी कारण थी हालांकि इस बार झानाओजेन के निवासी सड़कों पर ऑटोगैस की कीमतें बढ़ने के कारण सड़कों पर उतरे. ज्यादातर लोग अपनी कार में इसी का इस्तेमाल करते हैं और नए साल में  इसकी कीमत दोगुनी हो गई है. अब इस्तीफा दे चुकी सरकार का कहना है कि उत्पादन में कमी और मांग में भारी बढ़ोत्तरी के कारण गैस की कीमत बढ़ी है.

कजाखस्तान लंबे समय से कई दिक्कतों का सामना कर रहा है, खासतौर से ऊर्जा के क्षेत्र में. उदाहरण के लिए पिछले साल ये देश पर्याप्त बिजली पैदा करने में नाकाम रहा जिसकी वजह से आपात स्थिति में बार बार बिजली काटनी पड़ गई. बिजली की कमी को पूरा करने के लिए वह रूस पर निर्भर है. अब कजाखस्तान अपना पहला परमाणु बिजली घर बनाने की योजना तैयार कर रहा है.

इसके साथ ही देश में खाने पीने की चीजों की कीमतें भी पिछले साल पतझड़ के समय काफी बढ़ गईं. इसके बाद सरकार ने मवेशियों के साथ ही आलू और गाजर के निर्यात पर रोक लगा दी.

Kassym-Schomart Tokajew | Präsident von Kasachstan
राष्ट्रपति ने लगाया आपातकालतस्वीर: imago images/Metodi Popow

तीन दशक से काबिज शासन का अंत

मौजूदा संकट ऐसे दौर में आया है जब देश की राजनीति चौराहे पर खड़ी है. तीन दशकों से कजाखस्तान पर नुरूसुल्तान नजरबायेव का शासन रहा है. साम्यवादी दौर में वो कजाख सोवियत सोशलिस्ट रिपब्लिक के प्रधानमंत्री और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ कजाखस्तान के चेयरमैन थे. उन्होंने सोवियत संघ के बाद के दौर में कजाखस्तान पर देश के पहले राष्ट्रपति के रूप में शासन किया.

उनके निरंकुश तौर तरीकों ने देश पर अपनी छाप छोड़ी है. हालांकि वो पश्चिमी देशों से तेल और गैस के क्षेत्र में निवेश जुटाने में सफल रहे. इसके जरिए उन्होंने अपने देश के लोगों के लिए कुछ धन पैदा किया. नजरबायेव देश के राजधानी दक्षिण के अलमाटी से हटा कर किर्गिस्तान के नजटीक अस्ताना में ले आए. इसका नाम उनके सम्मान में नूर सुल्तान रख दिया गया.

81 साल के नजरबायेव ने मार्च 2019 में जब अपने इस्तीफे की घोषणा की तो वो सोवियत दौर के बाद के समय में सबसे लंबे समय तक सत्ता पर काबिज रहने वाले शासक थे. नजरबायेव ने इस्तीफे के पीछे स्वास्थ्य कारणों का हवाला दिया हालांकि विश्लेषक संदेह जताते हैं कि उनकी मंशा अपनी विरासत को बचाने की थी.

68 साल के कारिम जोमार्ट तोकायेव ने उनकी जगह ले ली हालांकि हाल तक नजरबायेव ने देश के शासन तंत्र में अपनी पकड़ बनाए रखी. वास्तव में नजरबायेव देश के ताकतवर सुरक्षा परिषद के प्रमुख बने रहे और साथ ही सत्ताधारी नूर ओतान पार्टी के भी. नवंबर 2021 में उन्होंने पार्टी का नेतृत्व तोकायेव को सौंपा.  बुधवार को वो सुरक्षा परिषद के भी प्रमुख बन गए.

Russland Moskau 2011 | Alexander Lukaschenko & Dmitri Medwedew & Nursultan Nasarbajew
अलेक्जांडर लुकाशेंको, दमित्री मेदवेदेव और नुरूसुल्तान नजरबायेव तस्वीर: Dmitry Astakhov/AFP/Getty Images

अशांति से चिंतित रूस

धीरे धीरे सत्ता छोड़ने की नजरबायेव की योजना खटाई में पड़ गई है. कई सोवियत देश भी वहां चल रही घटनाओं पर बारीकी से नजर रखे हुए हैं. जाहिर कि इनमें रूस भी शामिल है.

कजाखस्तान इलाके में बेलारूस के बाद दूसरा सबसे बड़ा सहयोगी देश है. 2020 में बेलारूस के विरोध प्रदर्शनों में घिरने के बाद वह दूसरा सहयोगी देश है जो ठीक वैसी ही अशांति से गुजर रहा है. रूस दोनों देशों के साथ करीबी राजनीतिक और आर्थिक संबंध बनाए हुए है.

2020 में रूस, बेलारूस और कजाखस्तान ने यूरेशियन कस्टम यूनियन बनाया. रूसी राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन की देखरेख में बनी यह एक महत्वाकांक्षी परियोजा थी. 2015 में इसे संपूर्ण आर्थिक संघ के रूप में विस्तार दे दिया गया जिसमें किर्गिस्तान और अर्मेनिया भी शामिल हो गए. रूसी राष्ट्रपति और नजरबायेव के बीच करीबी संबंध है. आखिरी बार दोनों दिसंबर में पूर्व सोवियत देशों के सेंट पेटर्सबर्ग में हुए सम्मेलन में मिले थे.

अब तक मास्को ने खुद को कजाखस्तान के संकट से दूर ही रखा है हालांकि रूस के विदेश मंत्री ने बातचीत की पेशकश रखी है. बेलारूस के मामले में भी रूस का यही रुख था. हालांकि बाद वहां प्रदर्शनों को ध्वस्त करने के लिए पुलिस अधिकारी भेजे गए. अभी यह साफ नहीं है कि रूस कजाखस्तान में भी यही बर्ताव करेगा या नहीं.

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