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रैगिंग रोकने में विफल संस्थानों की मान्यता रद्द होगी

११ फ़रवरी २००९

सुप्रीम कोर्ट ने रैगिंग की घटनाओं पर काबू पाने के लिए राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों को रैगिंग रोकने में विफल शिक्षण संस्थाओं की मान्यता रद्द करने का निर्देश दिया है.

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तस्वीर: picture-alliance / dpa

आज सुप्रीम कोर्ट ने शिक्षा संस्थानों में रैगिंग रोकने के लिए सभी राज्यों और केन्द्रशासित प्रदेशों को निर्देश दिया है कि वे राघवन समिति की सिफारिशों पर कड़ाई के साथ अमल करें. देश भर के शिक्षा संस्थानों में बढ़ रही रैगिंग की समस्या के मद्देनज़र सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई के पूर्व निदेशक आर के राघवन की अध्यक्षता में एक समिति नियुक्त की थी.

समिति की रिपोर्ट को स्वीकार करते हुए जस्टिस अरिजित पसायत की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने कहा कि देश भर के सभी शिक्षा संस्थानों को समिति की सिफारिशें लागू करनी होंगी. उन्हें प्रवेश के समय अपने प्रॉसपेक्टस में रैगिंग पर प्रतिबन्ध सम्बन्धी निर्देश भी छापने होंगे.

रैगिंग की रिपोर्ट मिलते ही शिक्षा संस्थान को कार्रवाई करनी होगी और पुलिस को सूचित करना होगा. यदि विश्वविद्यालय किसी छात्र के दोषी होने के बारे में संतुष्ट है तो वह उसे निलंबित करके पुलिस के पास रिपोर्ट दर्ज करा सकता है. यदि शिक्षा संस्थान राघवन समिति की सिफारिशों पर अमल करने में कोताही करेंगे तो उनकी मान्यता भी रद्द की जा सकती है.

क्या ये सिफारिशें व्यावहारिक हैं और क्या इन पर अमल से रैगिंग की समस्या को दूर किया जा सकता है? दिल्ली विश्वविद्यालय के महर्षि वाल्मीकि शिक्षा महाविद्यालय की प्राचार्या प्रभजोत कुलकर्णी ने इन सिफारिशों का स्वागत करती हैं और कहती हैं कि रैगिंग से निबटना बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि शिक्षा संस्थानों का प्रबंधन और शिक्षक उन पर कितने उत्साह के साथ अमल करते हैं.

यदि उन्होंने आधे-अधूरे मन से अमल किया तो समस्या वहीं की वहीं रह जायेगी. प्रभजोत कुलकर्णी ने यह भी कहा कि रैगिंग की समस्या से निपटने के लिए शिक्षा संस्थानों में एक आन्दोलन चलाये जाने की ज़रूरत है ताकि छात्रों को यह समझाया जा सके कि नए छात्रों का स्वागत हँसी-खुशी के साथ होना छाहिये, न कि उन्हें परेशान करके.

रैगिंग की समस्या लगातार गंभीर होती जा रही है. हर साल देश भर में कई छात्र और छात्राएं इसके कारण आत्महत्या तक करने पर मजबूर हो जाते हैं.

कुलदीप कुमार, नई दिल्ली