राहत शिविर में दंगा पीड़ितों का दर्द
दिल्ली में पिछले महीने हुए दंगों के बाद उत्तर-पूर्वी इलाका अब पटरी पर लौट आया है लेकिन जो लोग कैंपों में रह रहे हैं उन्हें मजबूरी के साथ अपना वक्त काटना पड़ रहा है.
अनिश्चितता का शिविर!
मुस्तफाबाद की ईदगाह में बने कैंप में एक हजार के करीब हिंसा पीड़ित रह रहे हैं. दंगों में उनका घर जल गया, दुकान जल गई और भविष्य पर संकट खड़ा हो गया. बस आंखों में नमी बची है.
भविष्य की चिंता!
ये लोग अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं. घर की मरम्मत कैसे होगी, शिविर में कब तक रहना है या फिर उन्हें आगे कहां जाना है. उन्हें इस बारे में फिलहाल कुछ नहीं पता है.
मानसिक आघात
राहत शिविर में आने वाले डॉक्टरों का कहना है कि ज्यादातर दंगा पीड़ित मानसिक आघात से पीड़ित हैं. ऐसे पीड़ितों में बच्चे भी शामिल हैं. बच्चों की काउंसलिंग के लिए विशेष कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं.
हंसी की क्लास
दंगों के बाद बच्चों की मानसिक स्थिति पर जोर पड़ा है. उन्हें इस हालात से निकालने के विशेष कार्यशाला की व्यवस्था की गई है.
चिकित्सा शिविर में महिलाएं
महिलाओं के लिए स्त्री रोग विशेषज्ञ मौजूद हैं जो उन्हें साफ-सफाई के बारे में बताती हैं.
उम्मीद बाकी है!
दंगों में लोगों की मौत हुई और लोग घायल भी हुए. अब लोग राहत कैंप में रहने को मजबूर हैं. यहां उन्हें सहायता तो मिल रही है लेकिन घर और रिश्तेदार से दूर होने का गम सताता रहता है.
चलती रहे जिंदगी
राहत शिविर में रहने वाले कुछ लोग बोर्ड की परीक्षा दे रहे हैं तो कुछ लोग काम पर भी जाने लगे हैं.