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समाज

राना प्लाजा हादसे से बांग्लादेश ने क्या सीखा?

रोडियोन एबिगहाउजेन
१० जुलाई २०१९

बांग्लादेश में राना प्लाजा दुर्घटना में 1000 से ज्यादा लोग मारे गए थे. उसके बाद से देश के कपड़ा उद्योग में बहुत सारे बदलाव आए हैं लेकिन ट्रेड यूनियनों का गठन अब भी नहीं हुआ है.

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Bangladesch Textilfabrik von Hop Lun in Gazipur
तस्वीर: DW/Rodion Ebbighausen

राना प्लाजा की दुर्घटना और इमारत के गिरने की तस्वीरें दुनिया भर में देखी गईं. 24 अप्रैल 2013 को इमारत के ढहने से 3000  से ज्यादा टेक्सटाइल कर्मी स्टील और कंक्रीट के मलबे के नीचे दब गए. 1135 की जान चली गई. जो बच गए उनमें से अधिकतर गंभीर रूप से घायल हो गए थे. इंसान निर्मित इस आपदा ने उस कीमत को साफ कर दिया जो धनी पश्चिमी दुनिया में सस्ते कपड़ों के लिए गरीब देशों के लोग चुका रहे हैं.

उसके बाद कपड़ा मजदूरों की सुरक्षा के लिए बहुत सारे कदम उठाए गए हैं. उनमें आग और इमारत सुरक्षा का समझौता भी शामिल है जो दुनिया के प्रमुख कपड़ा ब्रांडों, खुदरा विक्रेताओं और ट्रेड यूनियनों ने स्वैच्छिक रूप से किया है. अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन आईएलओ के बांग्लादेश डायरेक्टर टूमो पूसियानेन ने डॉयचे वेले को बताया कि प्लांट और कारखानों की सुरक्षा के लिए बहुत कुछ हुआ है. "उद्योग में कर्मचारियों की सुरक्षा बेशक बहुत बेहतर हुई है, खासकर निर्यात वाले कपड़ा उद्योग में."

Bangladesch, Dhaka: Rana-Plaza-Katastrophe
राना प्लाजा के हादसे ने कपड़ा उद्योग को बदल दियातस्वीर: picture-alliance/dpa/A. Abdullah

आदर्श श्रम सुरक्षा

कारखानों में ज्यादातर बदलाव आग से सुरक्षा, भवन सुरक्षा और काम के दौरान सुरक्षा के क्षेत्र में हुआ है. अब पहले से ज्यादा कंट्रोलिंग होती है और नए मानक भी बने हैं. राजधानी ढाका के पश्चिम में करीब दो घंटे की दूरी पर स्थित गाजीपुर में एक दस मंजिला कारखाने में इन परिवर्तनों को देखा जा सकता है. यहां हांगकांग की होप लून कंपनी के कारखाने में करीब 6,000 लोग काम करते हैं जो मुख्यतः एचएम, प्राइमार्क और सीएंडए जैसे  ब्रांड के लिए अंडरगार्मेंट बनाते हैं.

2014 में बना कारखाना देखने पर अच्छा प्रभाव छोड़ता है. कारखाने के निकट बड़े बड़े डीजल जेनरेटर लगे हैं जो कानूनी तौर पर तय किए गए हैं. दुर्घटना की स्थिति में भागने का स्पष्ट रास्ता, आग बुझाने के लिए अग्निशमन यंत्र और आग की चेतावनी देने वाले सायरन हर कहीं लगे हैं. एक छोटे हेल्थ सेंटर पर दो डॉक्टर काम करते हैं, बच्चों के देखभाल की सुविधा है और कारखाने के विशाल कैंटीन में मुफ्त खाना भी मिलता है. सरकारी अधिकारियों के इंस्पेक्शन के दौरान तकनीक और दूसरे यंत्रों में कोई खामी पता नहीं चली.

Bangladesch Textilfabrik von Hop Lun in Gazipur
निर्वाचित प्रतिनिधि: ऊर्मी, शोपों और हलीमातस्वीर: DW/Rodion Ebbighausen

निर्वाचित  कामगार परिषद

इस फैक्टरी की एक और खास बात यह है कि यहां के कर्मचारी संगठित हैं. करीब दो साल से यहां एक प्लांट कामगार परिषद काम कर रही है. उसके पहले कामगारों के हकों का प्रतनिधित्व एक कामगार समिति करती थी, जिसके सदस्यों को कंपनी के अधिकारी मनोनीत करते थे. कारखाने में काम करने वाली ऊर्मी, शोपों और हलीमा ने डॉयचे वेले को बताया कि जब कामगारों ने एक निर्वाचित कामगार परिषद की मांग की तो शुरू में प्रबंधन और कामगारों के बीच काफी तनाव रहा.

प्रंबधन ने कामगारों के घर धमकी भरी चिट्ठियां लिखीं और उन्हें नौकरी से निकालने की धमकी दी. ऊर्मी बताती हैं, "हमें डर था कि कहीं नौकरी न चली जाए." लेकिन कामगारों के समर्थन से कामगारों के स्वतंत्र प्रतिनिधित्व की मांग पूरी हुई. वे सब अब ट्रेड यूनियन के सदस्य हैं. बांग्लादेश में कारखानों में ट्रेड यूनियन का होना आम नहीं है और ये कारखाना अकेला है जहां एक ट्रेड यूनियन सक्रिय है. पश्चिमी देशों की तर्ज पर ये किसी ट्रेड यूनियन की शाखा नहीं है.

Bangladesch Textilfabrik von Hop Lun in Gazipur
उत्पादकता की खातिरतस्वीर: DW/Rodion Ebbighausen

शुरुआती अविश्वास

कारखाने के एचआर प्रमुख मोहम्मद आतिफ चौधरी ने डॉयचे वेले को बताया कि कारखाना प्रबंधन को डर था कि बाहर से ट्रेड यूनियन के लोग हस्तक्षेप करेंगे और कामगारों को भड़काएंगे. लेकिन जब इसके बावजूद कामगारों के समर्थन से स्टाफ काउंसिल का गठन हो गया तो शुरू में उन्हें लगा कि वे बहुत ताकतवर हैं. चौधरी कहते हैं, "उन्हें लगा कि वे प्रबंधन और एचआर से ऊपर हैं." लेकिन उसके बाद दोनों पक्षों ने सहयोग के लिए हिम्मत जुटाई और कड़ी सौदेबाजी के बाद दो साल के एक कार्यक्रम पर सहमत हुए. इसमें महत्वपूर्ण मांगों को शामिल किया गया है, जैसे कि कामगारों के बच्चों के लिए बड़ा किंडरगार्टन. चौधरी कहते हैं कि उनकी कोशिश संतुलन कायम करने की है.

शुरुआती संदेहों के बाद प्रबंधन की समझ में आ गया कि कामगार परिषद का होना फायदेमंद भी हो सकता है. चौधरी बताते हैं, " अब हमें कर्मचारियों से सूचना मिल रही है, प्रबंधन बेहतर फैसले ले सकता है." एचआर प्रमुख का कहना है कि अक्सर कामगार परिषद समस्याओं को बढ़ा चढ़ाकर पेश करती है, लेकिन वह समस्याओं की ओर ध्यान भी दिलाती है, जिनका वैसे पता नहीं चलता. "इससे उत्पादन कुशलता भी बढ़ती है." कामगारों के प्रतिनिधियों को अपने काम पर गर्व है तो कामगार परिषद का विरोध करने वाले मैनेजर इस बीच कारखाना छोड़कर जा चुके हैं.

Bangladesch Textilfabrik von Hop Lun in Gazipur
होप लून का आधुनिक कारखानातस्वीर: DW/Rodion Ebbighausen

शुरुआती दौर में मजदूर आंदोलन

तनख्वाह में वृद्धि को लेकर दोनों पक्षों में तकरार जारी है लेकिन फिर कामगार परिषद के सदस्य कारखाने में माहौल को रचनात्मक बताते हैं. कारखानों में कामगारों के प्रतिनिधित्व के फायदे से आईएलओ के अधिकारी टूमो पुसियानेन को कायल कराने की जरूरत नहीं. वे कहते हैं, "कामगारों की एक आवाज होनी चाहिए. उनके बिना कोई स्थाई रूप से सुरक्षित और न्यायोचित काम का माहौल नहीं हो सकता. " राना प्लाजा की दुर्घटना के बाद बांग्लादेश ने श्रम सुरक्षा के मामले में भले ही बहुत प्रगति की है, लेकिन सामाजिक अधिकारों के मामले में वे अभी भी बहुत पीछे हैं. वेतन कम हैं और काम की जगह यौन उत्पीड़न समस्या बनी हुई है.

पुसियानेन कहते हैं कि उद्यमों में कामगारों और मालिकों के बीच भरोसे की समस्या है. बांग्लादेश में सामाजिक मुद्दों पर आपसी संवाद की कोई परंपरा नहीं है. हालांकि 2013 के बाद से बांग्लादेश में 500 से अधिक ट्रेड यूनियन बनी हैं लेकिन उनमें से बहुत कम ही सक्रिय हैं. और ये बात गाजीपुर के इस कारखाने के ट्रेड यूनियन के लिए भी लागू होती है. वे दूसरों से अलग थलग सिर्फ अपने यहां काम करते हैं और दूसरी ट्रेड यूनियनों या कामगार परिषदों से उनका कोई सम्पर्क नहीं है.

पारदर्शिता सूचना: यह रिपोर्ट जर्मन संयुक्त राष्ट्र सोसायटी के रिसर्च दौरे के बाद लिखी गई है.

 

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बार बार ढहती बांग्लादेश की इमारतें