राजस्थान में फिल्म की जगह पद्मिनी पर किताब
२ फ़रवरी २०१८फिल्म को लेकर रानी पद्मावती चर्चा में रहीं, लेकिन पूरी बहस में विरोध के स्वरों के सहनशीलता के साथ इतिहास की जानकारी का अभाव भी दिखा. साहित्य महोत्सव में जयपुर की वरिष्ठ लेखिका मृदुला बिहारी की पद्मिनी पर लिखी किताब "पूर्णाहुति" का अंग्रेजी अनुवाद "पद्मिनी स्पिरिट क्वीन ऑफ चित्तौड़" का विमोचन किया गया. अब अंग्रेजी पाठक भी रानी पद्मावती के बारे में जान सकते हैं.
कौन हैं मृदुला बिहारी ?
मृदुला बिहारी लेखिका, उपन्यासकार व नाटककार हैं जिनकी कई कृतियों को पुरस्कार मिले हैं. मूलतः बिहार की रहने वाली मृदुला जयपुर, शिकागो और सैन फ्रैंसिस्को में रहकर लेखन करती हैं. उन्होंने कई लघु कथा-संग्रह, उपन्यास और नाटकों सहित कुल 15 पुस्तकें और रेडियो, टीवी व थिएटर के लिए कई नाटक भी लिखे हैं. भारत में और विदेशों के कई साहित्यिक मंचों पर बड़े पैमाने पर महिलाओं के मुद्दों पर विचार रखने वाली मृदुला 2010 में बीजिंग इंटरनेशनल बुक फेयर में भारत का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं. शिकागो के कलाकारों एवं लेखकों की रचनाओं का इनके नेतृत्व में हिन्दी भाषा में अनुवाद किया जा चुका है.
जयपुर में पद्मिनी की लेखिका से मुलाकात
मृदुला से उनके जयपुर निवास पर जब मुलाकात हुई तो वे अपनी पुस्तक के तीसरे संस्करण की सफलता से बेहद खुश दिखीं. हालांकि किसी अनजान भय की लकीरें बनी उनके चेहरे पर साफ झांक रही थीं. उनका कहना था पद्मिनी तो प्रेम, त्याग और बलिदान की मिसाल है, इस पर विवाद क्यों हो रहा है यह समझ से परे है. मृदुला ने लगभग पांच साल शोध करने के बाद पहली बार पद्मिनी को 1990 में प्रकाशित करवाया और इसे नाम दिया "पूर्णाहुति". आज तक इस के तीन संस्करण हिंदी, राजस्थानी और अंग्रेजी में प्रकाशित हो चुके हैं.
अंग्रेजी संस्करण में पहली बार "पद्मिनी" के नाम का इस्तेमाल किया गया. लिखने से पहले उन्होंने काफी साहित्य पढ़ा और मेवाड़ की राजकुमारियों तक से मिली. उनकी किताब 1585 में लिखी गई गोरा बादल पद्मिनी चौपाई पर आधारित है जो एक अज्ञात ग्रंथ है और पद्मश्री से सम्मानित है. यह ग्रन्थ राजस्थान ओरिएंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट के संचालक मुनि जनविजय को पाटन के जैन भंडारों के अध्ययन के दौरान मिला था. वैसे पद्मिनी पर अब तक ढाई सौ से ज्यादा किताबें लिखी जा चुकी हैं.
कौन हैं आखिर पद्मावती?
मृदुला बिहारी बताती हैं कि रानी पद्मिनी को लेकर कई तरह की किवदंतियां है पर इस बात के प्रमाणित तथ्य है कि उनका अस्तित्व था. मृदुला के अनुसार रानी पद्मिनी सिंघल द्वीप (श्रीलंका) की नहीं वरन राजस्थान के बीकानेर जिले के पूगल कस्बे की थी. वे बताती हैं कि रानी के जीवन, आचार-व्यवहार से नहीं लगता कि वे सिंघल द्वीप की थीं और इस के प्रमाण भी कहीं नहीं मिलते. पूगल के लोग पद्मिनी को बेटी मानते हैं और लोक गायन में मिलने वाले साक्ष्यों से भी यही प्रमाणित होता है.
आज कल इस बात पर भारत भर में बहुत बहस छिड़ी हुई है कि पद्मिनी मात्र मालिक मोहम्मद जायसी की कोरी कल्पना मात्र थी. पद्मिनी पर कुल चार ग्रन्थ लिखे गए जिन्हे शेरशाह काल के जायसी के अलावा अकबर काल के कवि हेमरत्न और इतिहासकार फरिश्ता और अबुल फजल ने लिखा. सन 1520 में जायसी ने पहली बार इसे काव्य का रूप दे कर "पद्मावत" की रचना की. कथा को रोचक बनाने के लिए उन्होंने इस में कई मनगढंत बातें डाल दीं. इस के कारण इस काव्य में रुमानियत तो आ गई पर इतिहासकारों ने इसे नकारना शुरू कर दिया.
जायसी से काफी पहले लिखी गयी उर्दू और फारसी की कविताओं में भी पद्मावती का उल्लेख है. अल्लाउद्दीन खिलजी के सिपहसलार अमीर खुसरो ने अपनी किताब 'खजाने अल फतह' में पद्मिनी की चर्चा की है. इस के आलावा आईने अकबरी, किस्सा ए पद्मावत और राज प्रशस्ति में भी पद्मिनी का जिक्र है. छिताई वार्ता में पद्मिनी और गोरा बादल का विस्तार से उल्लेख है जिसे 1493 में जायसी से कहीं पहले लिख दिया गया था.
क्यों थी पद्मिनी इतनी ख़ूबसूरत ?
किताब के एक अंश का जिक्र करते हुए मृदुला बिहारी बताती हैं कि एक बार रानी पद्मिनी से पूछा गया कि रेगिस्तान की निवासी होने के बावजूद वे इतनी सुंदर कैसे हैं? इस पर पद्मिनी ने जवाब दिया कि जब श्रीकृष्ण मथुरा से द्वारिका जा रहे थे, तब उन्होंने पूगल का रास्ता लिया था. उनके पीछे-पीछे मथुरा से गोपियां भी आ रही थी जो पूगल में आकर रास्ता भटक गईं और यहीं रह गईं. पद्मिनी उन्हीं गोपियों की वंशज हैं और इसी लिए इतनी खूबसूरत हैं.
मृदुला बताती हैं कि चित्तौड़ पर मुगलों के आक्रमण का कारण रानी पद्मिनी ही थी. पर इस से भी बड़ा कारण राजनीतिक था. उस जमाने में चित्तौड़ के रास्ते से ही अरब सागर के बंदरगाह से व्यापार होता था और मुगलों को चित्तौड़ में कड़ी टक्कर लेनी पड़ती थी जिसकी वजह से यह हमला हुआ. चित्तौड़ पर कब्जा ना होने के कारण व्यापार में आ रही बाधा को देखते हुए यह हमला जरूर किया गया पर रानी पद्मिनी की अनिंद्य सुंदरता ने अलाउद्दीन खिलजी को और भड़का दिया.
और फिर गमगीन हो गयी मृदुला
अपनी किताब का सब से दर्दनाक हिस्सा मानती है उस का पहला पन्ना जिस में रानी पद्मावती के जौहर के फ्लैश बैक से किताब शुरू होती है. किताब की पहली पंक्ति- "पद्मा की ओढ़नी जाने कब सरक कर गिर पडी और रतन सिंह अपनी कोमल आंखों से देखते रहे झीने तनसुख वस्त्र भरी देहयष्टि. चेहरे की कांति तनिक भी मलिन नहीं हुई है और उस में से अनुराग की किरणें फूट रही हैं.
1958-59 में चित्तौरगढ़ दुर्ग पर बने विजय स्तंभ के पास पुरातत्व विभाग को खुदाई में राख, हडि्डयां और लाख की चूड़ियां मिली थीं.