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समाज

राजनीति में महिला आरक्षण क्यों जरूरी

महेश झा
३० जनवरी २०१९

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने लोकसभा चुनावों में पार्टी के जीतने पर महिला आरक्षण कानून पास कराने का वादा किया है. अगर वे इस मांग के लिए गंभीर हैं तो पहले तो उन्हें अपनी पार्टी में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाना होगा.

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Symbolbild Indien Frauen auf Motorräder
तस्वीर: Imago/Hindustan Times

भारत दुनिया के उन देशों में शामिल है जहां संसद और विधान सभाओं में महिलाओं का प्रतिनिधित्व न के बराबर है. आम तौर पर हर समाज में महिलाओं की संख्या आबादी का आधा होती है. भले ही पिछले सालों में भारत में यह अनुपात गिरता गया हो,  अभी  भी उनकी संख्या 45 प्रतिशत से हर हाल में ज्यादा है. वहीं भारतीय संसद में महिलाओं का हिस्सा सिर्फ 11.4 प्रतिशत है जबकि बेल्जियम, मेक्सिको जैसे देशों में लगभग 50 प्रतिशत है और जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया में करीब 40 प्रतिशत है. इससे यह तो साफ है कि भारत में महिलाओं के उत्थान और उन्हें विकास की मुख्य धारा में शामिल करने के लिए उन्हें प्रोत्साहन देने की सख्त जरूरत है. और आरक्षण उसी प्रोत्साहन का एक तरीका है.

अच्छा तो ये होता कि प्राइमरी स्कूल से लेकर हर स्तर पर लड़कियों को प्रोत्साहित किया जाता. फिर उनके प्रतिनिधित्व की चिंता करने की जरूरत नहीं होती. वे नेतृत्व की हर भूमिका में प्रतिस्पर्धा करने के लिए पर्याप्त संख्या में मौजूद होतीं. लेकिन ऐसा नहीं है. इसीलिए अतिरिक्त कदमों की जरूरत है. और उनमें से एक संसद तथा विधान सभाओं में उन्हें सुरक्षित प्रतिनिधित्व देना है. ऐसा होने पर वे न सिर्फ सार्वजनिक बहस का हिस्सा बनेंगी, उसमें सहभागी होंगी बल्कि महिलाओं और लड़कियों के हिसाब के कानून बनवाने और उन्हें लागू करवाने में भी योगदान देंगी.

आरक्षण की जरूरत का अंदाजा जर्मनी में बड़ी कंपनियों में बोर्ड मेंबर के रूप में महिलाओं के 30 प्रतिशत आरक्षण में दिखता है. सालों की अपीलों का असर नहीं होने के बाद 2016 में 30 प्रतिशत आरक्षण का कानून पास किया गया. हालांकि अभी भी निगरानी बोर्डों में 30 प्रतिशत महिलाएं नहीं हैं लेकिन इस कानून के पास होने के बाद से उनकी संख्या लगातार बढ़ रही है. पिछले साल  के अंत में शेयर बाजार में दर्ज कंपनियों में महिला बोर्ड सदस्यों की संख्या करीब 9 प्रतिशत हो गई.

Frauen in Rajkot, Indien
तस्वीर: picture alliance/AP Photo/A. Solanki

लेकिन भारत में महिलाओं को आरक्षण देने पर आम सहमति बन नहीं रही है. देश की कई पार्टियां इसके खिलाफ हैं. बेटे-बेटियों, भाई-भतीजों और भांजों पर निर्भर करने वाली पार्टियों से इसकी उम्मीद नहीं की जा सकती कि वे महिलाओं को संसद और विधानसभाओं में प्रतनिधित्व का मौका दें. लेकिन लोकतांत्रिक पार्टियां यह काम कर सकती  हैं. राहुल गांधी यदि महिला आरक्षण के लिए गंभीर हैं तो उन्हें पार्टी के अंदर ऐसे हालात बनाने चाहिए कि महिला कार्यकर्ता नेतृत्व की भूमिका में आ सकें. कांग्रेस को संसद में दो तिहाई बहुमत जब भी मिले पार्टी के पदों पर 50 प्रतिशत महिलाओं की नियुक्ति कर या निर्वाचन के जरिए प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित कर उन्हें सरकारी भूमिकाओं के लिए तैयार किया जा सकता है.

Indien Karate Training für Mädchen
तस्वीर: DW/Prabhakar Mani Tewari

भारत में महिला नेताओं की कमी नहीं है. बस इतना है कि वे राजनीति से दूर हैं क्योंकि राजनीतिक माहौल महिलाओं के लिए अनुकूल नहीं माना जाता. पार्टी प्रमुखों की जिम्मेदारी है कि वे पार्टी में महिला कार्यकर्ताओं के लिए अनुकूल वातावरण बनाएं. इसके लिए पार्टियों को और लोकतांत्रिक भी बनाना होगा और आंदोलनों से परे राजनीति की मुख्यधारा में आने के रास्ते खोलने होंगे. शुरुआत राहुल गांधी कर सकते हैं, चुनाव से पहले पार्टी में और महिलाओं को सामने लाकर, उन्हें चुनावों में टिकट देकर. यदि उम्मीदवारों की अभी घोषणा की जाए तो महिला उम्मीदवारों को तैयारी का भी मौका मिलेगा और उनकी पहचान भी बनेगी. ऐसा करके दूसरी पार्टियों पर भी दबाव बढ़ाया जा सकता है.