यूरोप में कम बच्चों की पैदाइश
३१ अगस्त २००८पूरा यूरोप छोटे छोटे परिवारों वाला महादेश है. ज़्यादातर घरों में सिर्फ़ पति पत्नी और उनके बच्चे रहते हैं, भारत जैसे देशों की तरह संयुक्त परिवार नहीं. पति पत्नी दोनों काम करते हैं और ऐसे में बच्चे की ज़िम्मेदारी उठाना ज़रा मुश्किल हो जाता है. नौकरी में आगे बढ़ने की ललक और करियर बनाने के चक्कर में महिलाएं अकसर शादी भी देर से करती हैं और फिर ज़्यादा उम्र में बच्चे की ज़िम्मेदारी से बचने की कोशिश होती है. यानी जाने अनजाने यहां की औरतें ममता के परम सुख से दूर हो जाती हैं.
यूरोप में सबसे ज़्यादा बच्चे फ्रांस में पैदा होते हैं लेकिन फ्रांसीसी लेखिका कोरिन मायर की किताब जारी हुई है. किताब का नाम है 'बच्चा पैदा न करने के चालीस कारण'.
"बच्चे पैदा करने के साथ महिला को जीवन के आदर्श नियमों का पालन करना पड़ता है और ख़ुद को बच्चे की ज़रूरतों के अनुसार ढालना पड़ता है. यह आत्मसमर्पण रीत रिवाज़ है. जिम्मेदारी लेनी पड़ती है, खुद को समाज में मिलाना पड़ता है. यानी आदर्श बनना पड़ता है ताकि बच्चे भी अच्छे नागरिक बने. और यब बड़ा बोझ है." - कोरिन मायर
इस किताब के साथ ही कोरिन मायर ने कई वर्जनाएं तोड़ दीं. बच्चों को सिर चढ़ाने के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई और कहा कि इसके साथ औरतों की आज़ादी ख़त्म हो जाती है, वो ज़िन्दगी भर बंधन में बंध जाती हैं. मायर का समझना है कि समाज के दबाव में नहीं, बल्कि महिलाओं को बच्चा पैदा करने के लिए ख़ुद अपना फ़ैसला लेना चाहिए.
वैसे आर्थिक समस्या भी यूरोप की महिलाओं को मां बनने से रोकती है. वे नौकरी छोड़ कर बच्चों की परवरिश नहीं कर सकतीं क्योंकि इससे परिवार का गुज़ारा नहीं होगा. सिर्फ़ पति के साथ रहती हैं. न दादी न नानी. ज़्यादातर यूरोपीय महिलाओं की क़िस्मत में अपने कलेजे के टुकड़े को गोद में खिलाना, उसे हंसते खिलखिलाते बड़ा होते देखना नहीं है.
बर्लिन फ्री यूनिवर्सिटी की महिला आयुक्त मेश्टिल्ड कोरोयबर के मुताबिक, "यह समझना ज़रूरी है कि परिवार की देखभाल एक महिला की जिम्मेदारी नहीं है बल्कि समाज की ज़िम्मेदारी है. पूरे समाज की जिम्मेदारी होनी चाहिए कि महिला परिवार की ज़िम्मेदारी और अपने करियर- दोनों को संभाल सके."
जर्मन क़ानून के मुताबिक़ महिलाएं बच्चा पैदा होने के छह हफ़्ते पहले से दो महीने बाद तक छुट्टी ले सकती हैं. इसके बाद वह अगले तीन साल तक छुट्टी पर रह सकती हैं. इस दौरान बीमा कंपनियां और सरकार उन्हें हर महीने का ख़र्चा देती है. लेकिन दोबारा नौकरी ज्वाइन करने पर कोई ज़रूरी नहीं कि उन्हें पहले वाला काम ही मिले. इसके अलावा यहां बच्चों की देखभाल करने वाली आया और नर्सरी भी इतने महंगे हैं कि पूरी तनख़्वाह उसी में निकल जाती है.जर्मनी की आबादी क़रीब 82000000 है और यहां साल 2007 में 6,85,000 बच्चे पैदा हुए. जर्मनी में प्रति महिला बच्चे की दर 1.38 है, जबकि भारत में क़रीब 2.76 है