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शानदार मगर किफायती इलेक्ट्रॉनिक कार

२६ जनवरी २०१८

बाजार में कई ई-कारें मौजूद हैं लेकिन अब आखेन टेक्नीकल कॉलेज के इंजिनियरों ने मिल कर एक किफायती ई कार तैयार की है. तीन घंटे चार्ज करें और 120 किलोमीटर प्रति घंटे तक की रफ्तार से चलाएं.

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तस्वीर: e.Go Mobile AG

पहले पेट्रोल, फिर डीजल, फिर सीएनजी. कारों की दुनिया ने ईंधन को बदलते देखा है, कभी कार की क्षमता को बढ़ाने के लिए, तो कभी पर्यावरण को बचाने के लिए. एक अच्छी कार की यही पहचान है कि वह इन दोनों पैमानों पर खरी उतरे. इस लिहाज से इलेक्ट्रिक कारें ही भविष्य की गाड़ियां हैं. ई-कारों की खासियत यह होती है कि ये पेट्रोल या डीज़ल कारों की तरह धुआं नहीं छोड़ती.

आखेन यूनिवर्सिटी के छात्रों ने जो कार बनाई है उसे कुछ लोग कार बनाने वाली बड़ी कंपनियों के खिलाफ संघर्ष की घोषणा बताते हैं. कार का नाम है इ गो लाइफ. कार बनाने की योजना में शुरू से ही लगे इंजीनियर बास्टियान लुइडके बताते हैं, "हमारी योजना है कि बेसिक कंफिगरेशन के साथ कार की कीमत 16,000 यूरो हो. इस समय इलेक्ट्रिक कारों के लिए 4,000 यूरो की सब्सिडी मिल रही है, यानी बेसिक मॉ़डल की कीमत 12,000 यूरो होगी. अब अगर सबसे सस्ती कार स्मार्ट ई से तुलना की जाए तो है यह कार बेसिक कंफिगरेशन में 22 से 23 हजार यूरो की मिलती है, मतलब कि हमारी कार सचमुच किफायती है."

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तस्वीर: picture-alliance/dpa/e.GO Mobile AG

इ गो लाइफ की अधिकतम रफ्तार 120 किलोमीटर प्रति घंटे है और बैटरी की क्षमता 120 किलोमीटर, जो स्मार्ट ई से सिर्फ 30 किलोमीटर कम है. आखेन की टेक्निकल यूनिवर्सिटी आरडब्ल्यूटीएच को यह कार बनाने में दो साल लगे.

छात्रों, इंजीनियरों और इलेक्ट्रॉनिक मैकेनिकों ने इसके लिए कड़ी मेहनत की. बास्टियान लुइडके इस प्रोजेक्ट के साथ शुरू से ही जुड़े हैं. वे 31 साल के हैं. दूसरे इंजीनियर इतना सब कुछ करने में सारी उम्र लगा देते हैं. वो बताते हैं, "मैं इंडस्ट्रियल इंजीनियरिंग के लिए जिम्मेदार हूं. इसमें उत्पादन की प्रक्रिया की प्लानिंग के अलावा प्लांट प्लानिंग भी शामिल है. इसके अलावा मैं इस समय प्रोटोटाइप के निर्माण के लिए भी जिम्मेदार हूं. उस सबके लिए जो यहां हो रहा है और साथ ही मैं नए प्रोडक्शन हॉल की भी प्लानिंग कर रहा हूं."

Logo von der Rheinisch Westfälischen Technischen Hochschulein Aachen
तस्वीर: DW/Ashok Kumar

इलेक्ट्रिक कार के इस प्रोजेक्ट में स्टूडेंट कोरिना श्टेंगेल भी शामिल है. उन्होंने छोटी कार के लिए दरवाजे बनाए हैं, संरचना से लेकर उसे बंद करने का मैकेनिज्म सबकुछ डेवलप किया है. हालांकि आकार में छोटा है लेकिन उनकी कोशिश थी कि उससे आवाज वैसी ही आए जैसे एसयूवी के दरवाजे को बंद करने से आती है. कोरिना कहती हैं, "यह एक अद्भुत अहसास है. ऐसा मौका कहां मिलता है कि आप कार का पूरा दरवाजा बनाएं और भी एकदम शुरू से. हम सबने एक सफेद कागज के साथ शुरुआत की. उसके बाद सारे पुर्जे इकट्ठा किए और पहला प्रोटटाइप बनाकर मैं बेहद खुश थी कि. दरवाजा काम कर रहा था, काफी हद तक."

आखेन की प्रसिद्ध इंजीनियरिंग यूनिवर्सिटी के कैंपस में 150 युवा विशेषज्ञ इस प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं. उनका लक्ष्य ऑटोमोबिल उद्योग को यह दिखाना है कि इलेक्ट्रिक कार के मामले में बाजार में एक खाई है. बड़े शहरों में छोटी कारों की कमी है. बास्टियान लुइडके को इस आइडिया ने पूरी तरह जकड़ लिया. इसकी कल्पना उनके प्रोफेसर गुंटर शूह ने की थी. प्रोफेसर शूह करते हैं, "शहरों में और छोटी कारों के सेक्टर में हर साल 400,000 कारों की जरूरत है. अगर हम इसका 5 प्रतिशत, और क्षमता बढ़ाने पर 10 प्रतिशत भी बना सकें, यानि 20 से 40 हजार कारें, तो हम बाजार की दौड़ में होंगे.

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तस्वीर: e.Go Mobile AG

तेजी से आगे बढ़ने के लिए बास्टियान लुइडके को अपनी टीम में अच्छे लोगों को शामिल करना होगा. जैसे कि डेव वुड, इन्होंने पहले मैक्लारेन कंपनी में मोटर रेस विभाग में काम किया है. इस प्रोजेक्ट में डेव वुड इलेक्ट्रिक कारों का स्ट्रेस टेस्ट कर रहे हैं. डेव कहते हैं, "मेरी इनके साथ काम करने में दिलचस्पी है क्योंकि इसका भविष्य है. ये कार का इवोल्यूशन है और इ गो कंपनी अलग अलग तरीके से इससे निबट रही है. वे कार के इतिहास का सम्मान कर रहे हैं."

इलेक्ट्रिक कार के लिए बैटरी और मोटर, कार पुर्जे बनाने वाली कंपनी बॉश दे रही है. बास्टियान लुइडके की अपेक्षाएं बहुत कम थी, बस ऐसी मोटर जो जल्द रफ्तार पकड़ सके और ऐसी बैटरी जो तीन घंटे में रिचार्ज हो सके. दोनों पार्टियों को यह काम दो साल में करना था. कार का ढांचा वे खुद बना रहे हैं. बोनट जैसे बाकी सारे प्लास्टिक के एलिमेंट उसमें आसानी से जोड़े जा सकते हैं. कार को रंगने की जरूरत नहीं है. ये बहुत ही सस्ता है.

आखेन की तकनीकी यूनिवर्सिटी उद्योग के लिए नए विचारों की खान है. बास्टियान लुइडके के सामने एक और काम है. अगले दो साल में कार बनाने का प्लांट यूनिवर्सिटी के करीब ही बनाया जाएगा. अगर उन्हें यहां साल में 20,000 गाड़ियां बनाने में कामयाबी मिल जाती है तो उनकी कार सबसे सस्ती कार ही नहीं होगी, जर्मनी में सबसे अधिक बेची गई कार भी होगी. इस कार के लिए 1600 ग्राहकों ने ना सिर्फ ऑर्डर दिया है, बल्कि कीमत भी अदा कर दी है.

रिपोर्टः क्रिश्चियान प्रिसेलियस