1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

यूनिवर्सिटी के सिलेबस में ट्रिपल तलाक

३१ जुलाई २०१९

लखनऊ विश्वविद्यालय का समाजशास्त्र विभाग तीन तलाक को अपने पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाने जा रहा है. इसके लिए विस्तृत प्रस्ताव तैयार कर मंजूरी के लिए विश्वविद्यालय की कार्यकारी परिषद को भेजा गया है.

https://p.dw.com/p/3N3Y0
Indien Westbengalen Wahlen in Kalkutta
तस्वीर: Reuters/R. De Chowdhuri

पाठ्यक्रम तैयार करने वाले समाजशास्त्र विभाग के सह-आचार्य प्रो़ पवन कुमार मिश्रा ने बताया, "तीन तालाक विषय को पाठ्यक्रम में शामिल करने का प्रस्ताव विभाग के बोर्ड ऑफ स्टडीज से पास हो गया है. फैकल्टी बोर्ड से पास होने के बाद इस पर एग्जीक्यूटिव काउंसिल की मुहर लगनी है. एक सप्ताह बाद यह पाठ्यक्रम बेवसाइट पर डिस्पले होना शुरू हो जाएगा."

उन्होंने कहा, "समाजशास्त्र में एमए के तीसरे सेमेस्टर में चार प्रश्नपत्र होते हैं. दो विषय की अनिवार्यता होती है और दो विषय वैकल्पिक तौर पर रखे जाते हैं. तीन तालाक उनमें से एक वैकल्पिक विषय है. इसे एक अतरिक्त प्रश्नपत्र के तौर पर जोड़ा गया है. हमारे यहां अभी लगभग 50 बच्चों ने इसका चयन किया है."

पवन ने बताया, "कानून सीधे-सीधे समाज को प्रभावित करता है. समाजशास्त्र विभाग नई घटनाओं को हमेशा से अपने पाठ्यक्रम में जोड़ता रहा है. हम तीन तालाक से जुड़े विविध पक्षों को रखेंगे, ताकि विद्यार्थियों में निष्पक्ष आकलन करने की क्षमता विकसित हो."

उन्होंने कहा, "हम किसी धर्मगुरु को नाराज नहीं कर रहे, बल्कि उन्हें सहूलियत दे रहे हैं. हम ऐसे विद्यार्थी तैयार करने के प्रयास में हैं, जो तटस्थ तरीके से सभी पक्षों का अध्ययन करें. सुनी-सुनाई बातें तो सिर्फ राजनीति का हिस्सा बना करती हैं."

प्रो मिश्रा ने बताया, "शाह बानो मामला इस विषय में अप्रत्यक्ष रूप से जोड़ा जाएगा यह लॉ सोसाइटी का एक टॉपिक है. एलजीबीटी, डोमेस्टिक वॉयलेंस को भी हम डिसकस करेंगे. इसमें सुप्रीम कोर्ट की रूलिंग भी ली जाएगी."

उन्होंने बताया, "एमए के बच्चों ने इसमें अपनी रुचि दिखाई है. मौलानाओं को इसमें दिक्कत नहीं होगी. समाज में परिवर्तन हो रहा है. किसी नए मुद्दे पर बहस से भागने से अच्छा है कि विद्यार्थियों को नई रोशनी दिखाई जाए."

तीन तलाक पर समाज में जब भी चर्चा हुई, कोई न कोई विवाद जरूर सामने आया. एक पक्ष हमेशा ही इसका समर्थन करता रहा तो दूसरा पक्ष इसे लेकर अपना विरोध दर्ज कराता रहा है.

Indien | Darul Qaza Conference 2019
ट्रिपल तलाक के समर्थन में मुस्लिम संगठनतस्वीर: DW/F. Fareed

इस्लामी धर्मगुरु मौलाना खालिद रशीद ने आईएएनएस से कहा, "यह विषय बहुत विवादास्पद है. इस तरह के विषय को कॉलेज और विश्वविद्यालय के सिलेबस में नहीं रखा जाना चाहिए. समाजशास्त्र में सभी धर्मो के कानूनी पहलुओं को पढ़ाया जाना चाहिए. सिर्फ एक धर्म के पहलुओं को पढ़ाया जाएगा तो इससे समाज में विषमता पैदा होगी."

उन्होंने कहा, "एक विवादित मुद्दे को पाठ्यक्रम में शामिल किए जाने का मतलब जानबूझकर विवाद उत्पन्न करना है. आप धर्म से जुड़ी चीजें बच्चों को जरूर बताएं, लेकिन हमें गैरजरूरी मुद्दों से बचना चाहिए."

ऑल इंडिया महिला मुस्लिम लॉ बोर्ड की अध्यक्ष शाइस्ता अंबर ने कहा, "यह बहुत अच्छा कार्य और क्रांतिकारी कदम है. इस तरह के पाठ्यक्रम शुरू होने से आनेवाली पीढ़ियों को अपने कर्तव्य के बारे में सही जानकारी होगी. किसी तरह का संशय होगा तो वह क्लासरूम में ही दूर हो जाएगा. वैवाहिक जीवन खुशहाल रहे, यह जरूरी है."

अंबर ने कहा, "कायदे से यह काम तो मदरसों और दारूल उलूम को करना चाहिए. उन्हें भी यह पाठ्यक्रम शुरू करना चाहिए. शादी करने के बाद अपनी पत्नियों के अधिकार और कर्तव्य के बारे में जानकारी देनी चाहिए. यह जिम्मेदारी लखनऊ विश्वविद्यालय निभाने जा रहा है, जो स्वागत योग्य कदम है."

लखनऊ स्थित ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती उर्दू, अरबी-फारसी विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति अनीस अंसारी ने कहा, "तीन तलाक के बारे में जानकारी दिए जाने से किसी को दिक्कत नहीं होनी चाहिए. डाटा तलाशने की जरूरत है. इसे कोर्स में लाया जाना अच्छी बात है. इससे पीड़ित लोगों के केसों की स्टडी करने की जरूरत पूरी होगी. इसका राजनीतिकरण न करके इसे विषय के रूप में पढ़ाया जाए तो अच्छा होगा."

______________

हमसे जुड़ें: WhatsApp | Facebook | Twitter | YouTube | GooglePlay | 

(ट्रिपल तलाक को नकारने वाले मुस्लिम देश)

आईएएनएस