जंग में अब अमेरिका नहीं, चीन के ड्रोन
५ अक्टूबर २०१८विद्रोहियों के कब्जे वाले यमन के होदाइदा शहर में अमीराती सेना का एक ड्रोन एक एसयूवी के ऊपर मंडराता है. एसयूवी एक गली में मुड़ कर पीछे आ रही गाड़ियों के इंतजार में रुकती है. अचानक एसयूवी में धमाका होता है और यह लपटों में घिर जाती है. इसके साथ ही गाड़ी में सवार शीर्ष हूथी विद्रोही सालेह अल समाद की मौत हो जाती है.
इसी साल अप्रैल में हुए इस हमले में जो ड्रोन इस्तेमाल हुआ वह अमेरिका में बने उन ड्रोन विमानों में से नहीं था जो यमन, इराक और अफगानिस्तान के आकाश में 11 सितंबर के हमलों के बाद से नजर आते रहे हैं बल्कि यह चीन का था.
मध्य पूर्व के वो देश जिन्हें बड़ी संख्या में आम नागरिकों की जान जाने की आशंका के कारण अमेरिकी ड्रोन नहीं बेचे जा रहे, उन्हें चीन की हथियार बनाने वाली कंपनियां लुभाने में लगी हैं. अभी हथियारबंद ड्रोन के सबसे प्रमुख दुकानदार चीन में हैं.
चीनी सैन्य विश्लेषक सोंग चोंगपिंग कहते हैं, "चीनी सामानों में तकनीक की कमी नहीं है, लेकिन बाजार में उनकी हिस्सेदारी कम है. अमेरिका अपने हथियारों के निर्यात पर प्रतिबंध लगा कर चीन को बड़ा मौका दे रहा है."
इन हथियारों की बिक्री से चीन उस इलाके में अपना असर बढ़ा रहा है जो अमेरिकी सुरक्षा हितों के लिहाज से अहम हैं. हवाई मारक क्षामता के विशेषज्ञ डगल बैरी बताते हैं, "यह प्रतिरक्षा की एक रणनीति है और चीन को इससे फायदा मिलता दिख रहा है. मुझे लगता है कि आम नागरिकों की मौत की चिंता और उसकी जिम्मेदारी से चीनी बहुत कम प्रभावित होते हैं."
साल की शुरुआत में दक्षिणी सऊदी अरब के ऊपर से गुजररते एक सेटेलाइट ने अमेरिका में बने निगरानी वाले ड्रोन को चीन में बने हथियारबंद ड्रोन के साथ देखा. न्यूयॉर्क के बार्ड कॉलेज के सेंटर फॉर स्टडी ऑफ ड्रोन के मुताबिक यह पहला उदाहरण था जब यमन की जंग में दो ड्रोन सिस्टम का एक साथ इस्तेमाल दिखा. विश्लेषकों का कहना है कि यमन हमले में सक्षम ड्रोनों के लिए एक तरह से परीक्षण की जमीन बन गया है. यमन में अमेरिकी ड्रोन पहली बार 2002 में अल कायदा के संदिग्ध लड़ाकों के खिलाफ इस्तेमाल किया गया था.
चीन से सबसे ज्यादा निर्यात होने वाले ड्रोन में काई होंग या रेंबो सीरीज सबसे ऊपर है. चीन की सरकारी कंपनी एयरोपस्पेस साइंस एंड टेक्नोलॉजी कॉर्प यानी सीएएससी ने इसे बनाया है. सीएएससी के सीएच 4 और सीएच 5 मॉडल सैन डिएगो में बने जेनरल एटोमिक्स के प्रीडेटर और रीपर ड्रोन के जैसे ही हैं लेकिन इनकी कीमत काफी कम है.
स्वतंत्र विश्लेषकों का कहना है कि चीनी ड्रोन तकनीक के मामले में अमेरिकी ड्रोन से थोड़े कमजोर हैं लेकिन अगर इनकी कीमत देखी जाए तो उस हिसाब से सब ठीक है. चीनी ड्रोन की कीमत अमेरिकी ड्रोन की तुलना में आधी या उससे भी कम है. सीएएससी के एक एग्जीक्यूटिव ने नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर समाचार एजेंसी रॉयटर्स से कहा कि बोइंग कंपनी के बनाए स्टिंगरे जैसे मॉडल तकनीकी रूप से अब भी काफी आगे हैं. स्टिंगरे को इसी साल लॉन्च किया गया है.
2014 से अब तक चीन ने सऊदी अरब और इराक जैसे देशों को 30 से ज्यादा सीएच4 ड्रोन बेचे हैं. इनकी कीमत करीब 70 करोड़ डॉलर है. सीएएससी के मुताबिक कम से कम 10 देशों के साथ ड्रोन बेचने पर बातचीत चल रही है. पिछले साल चीन ने संयुक्त अरब अमीरात को विंग लूंग 2 बेचा था. मानवरहित यह विमान अमेरिका के एमक्यू 9 के समकक्ष माना जाता है.
राष्ट्रपति शी जिनपिंग के पांच साल के कार्यकाल में चीन ने अपनी सेना के लिए रडार से बचने में सक्षम विमानों और विमानवाहक युद्धपोतों पर खर्च में काफी इजाफा किया है. इसके साथ ही हमलावर पनडुब्बियों जैसे उन्नत उपकरणों को अपने पाकिस्तान जैसे करीबी सहयोगियों को बेचने में भी काफी तेजी दिखाई है. हथियारों की बिक्री के मामले में चीन अब भी अमेरिका, रूस, फ्रांस और जर्मनी से काफी पीछे है लेकिन यह बहुत तेजी से फासले घटा रहा है. स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के मुताबिक 2008-2012 और 2013-17 के बीच चीन के हथियारों का निर्यात करीब 34 फीसदी बढ़ गया.
यमन की जंग में आम नागरिकों के मौत की बढ़ती तादाद ने अमेरिका को ड्रोन की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने के लिए मजबूर किया. अब दूसरे देश अमेरिकी कंपनियों से हथियार अमेरिकी सरकार के माध्यम से ही खरीद सकते हैं. इनमें वे ड्रोन भी शामिल हैं जो लेजर से नियंत्रित होते हैं. एक अमेरिकी संस्था का अनुमान है कि यमन मे ड्रोन के 240 हमलों में कम से कम 1300 लोग मारे गए जिनमें 111 आम नागरिक हैं.
चीनी ड्रोन की बिक्री बढ़ने के साथ ही उन पर अमेरिका की हथियार बनाने वाली कंपनियां इन प्रतिबंधों को ढीला करने के लिए दबाव बढ़ा दिया. इस दबाव का ही नतीजा था कि राष्ट्रपति ट्रंप ने कुछ सांसदों के अनुरोध पर जेनरल एटोमिक्स को जॉर्डन और यूएई को ड्रोन बेचने की अनुमति दे दी. 19 अप्रैल को ट्रंप प्रशासन ने अमेरिकी कंपनियों को यह अधिकार भी दे दिया कि वे खुद से ही ड्रोन बेच सकते हैं. इनमें हथियारबंद ड्रोन भी शामिल हैं.
एनआर/एके (एपी)