यमन ने बनाया कॉफी का कारोबारी
२३ फ़रवरी २०१८अमेरिका में इन दिनों "पोर्ट ऑफ मोखा" एसप्रेसो कॉफी की चर्चा है. एक कप कॉफी की कीमत है 13 से 16 डॉलर यानि करीब 800 से 1,000 रुपये. जानकार इसे दुनिया की सबसे बढ़िया कॉफी बता रहे हैं. यह गृहयुद्ध और आतंकवाद से झुलस रहे देश यमन से आई है. पहली बार दुनिया को पता चल रहा है कि यमन की कॉफी क्या होती है.
इस कॉफी के अमेरिकी बाजार तक पहुंचने की कहानी बड़ी दिलचस्प है. कॉफी को यहां तक मोख्तार अलखानशाली लाए हैं. अमेरिका में पैदा हुए यमनी मूल मोख्तार कॉलेज की पढ़ाई के दौरान पार्ट टाइम नौकरियां कर रहे थे. तभी मोख्तार को यमन की कॉफी के कुछ किस्से सुनाई पड़े.
2012 में मोख्तार ने कॉफी की खोज में यमन जाने का फैसला किया. तीन दिन पैदल चलने के बाद मोख्तार कॉफी की खेती वाले पहाड़ी इलाके में पहुंचे. कॉफी उगाने वाले इलाकों में मोख्तार ने तीन साल बिताए. देश में कॉफी उगाने, उसे भूनने और अलग अलग फ्लेवर तैयार करने की पुरानी और खास परंपरा है. मोख्तार ने इसे बारीकी से सीखा. वापसी में उन्होंने अपने दोनों सूटकेस कॉफी से भर लिए.
मोख्तार के घर लौटने से से ठीक पहले मार्च 2015 में यमन की राजधानी सना के एयरपोर्ट को हौसी उग्रवादियों ने अपने नियंत्रण में ले लिया. सुन्नी और हौसी समुदाय के बीच गृहयुद्ध छिड़ गया. मोख्तार इस हिंसा में फंस गए. हौसी उग्रवादियों ने उन्हें अगवा कर लिया. जान से मारने की धमकियों के बीच मोख्तार अपने कॉफी के किस्से सुनाते रहे. उग्रवादियों से चंगुल से निकलकर मोख्तार पोर्ट ऑफ मोखा पहुंचे. वहां से एक नाव किराये पर लेकर मोख्तार पड़ोसी देश जिबूती पहुंचे और फिर अमेरिका. अमेरिका पहुंचते ही कस्टम अधिकारियों ने बीजों को लेकर चेतावनी दे दी. अधिकारियों को शक था कि बीज नशीले पौधे खाट के हो सकते हैं. किसी तरह मामले को हल करने के बाद मोख्तार घर पहुंचे. प्रेस में उनके यमन से बच निकलने की कहानियां और कॉफी की खोज छपी. इसी दौरान मोख्तार ने यह कॉफी अपने दोस्तों और खास मेहमानों को पिलाई.
पहला घूंट लेते ही कई लोगों ने कहा कि उन्होंने जीवन में पहली बार इतनी बेहतरीन कॉफी चखी है. इनमें पहली बार कॉफी चखने वाले अमेरिकी लेखक डैव एगर भी थे. 35 साल के मोख्तार अब कॉफी के कारोबार में उतर चुके हैं. पोर्ट ऑफ मोखा के नाम से उनकी टीम कॉफी बेच रही है. यमन के लिए शांति की दुआ करते हुए मोख्तार ने एक टीशर्ट भी डिजायन की, जिसमें लिखा है, "मेक कॉफी, नॉट वॉर." अब मोख्तार नियमित रूप से यमन से कॉफी का निर्यात करना चाहते हैं. मोख्तार और एगर के मुताबिक कॉफी के उत्पादन से यमन के गरीब किसानों की आमदनी होगी और शांति का रास्ता खोजा जा सकेगा. मोख्तार के ऊपर डैव एगर ने "द मोंक ऑफ मोखा" नाम की किताब भी लिखी है.
ओंकार सिंह जनौटी