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म्यांमार में सू ची पर लोगों का भरोसा डिगा

६ नवम्बर २०२०

म्यांमार में आने वाले चुनाव आंग सान सू ची और उनकी पार्टी के लिए बड़ी परीक्षा हैं. सू ची के कई समर्थकों ने बताया कि कैसे उनका पूरी चुनावी प्रक्रिया से मोहभंग हुआ.

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Myanmar Aung San Suu Kyi
शांति का नोबेल जीतने वाली सू ची पर बहुत से लोग वादे पूरे ना करने के आरोप लगाते हैंतस्वीर: picture-alliance/AP Photo/Khin Maung Win

यांगोन में रहने वाले ये वाई फ्यो आंग ने डीडब्ल्यू को बताया, "इस साल मैंने वोट ना देने का फैसला किया है क्योंकि एक वोटर और नागरिक के तौर पर एनएलडी की सरकार से मैं संतुष्ट नहीं हूं." नेशनल लीग फॉर डेमोक्रैसी देश में लोकतंत्र के लिए संघर्षरत रही आंग सान सू ची की पार्टी है और पिछले चुनावों में जीत के बाद इस समय म्यामांर में शासन कर रही है.

25 वर्षीय ये वाई फ्यो आंग एक मानवाधिकार संगठन "एथन इन म्यांमार" के संस्थापक हैं. वह एक रिसर्चर हैं. 8 नवंबर को होने वाले चुनाव को लेकर वह बिल्कुल भी उत्साहित नहीं हैं. वह कहते हैं, "मैं सोच रहा था कि एनएलडी की बजाय किसी और को वोट दूं, लेकिन ऐसा कोई दिखाई नहीं दिया."

ये वाई ने 2015 में स्टेट काउंसिलर आंग सान सू ची की पार्टी नेशनल लीग फॉर डेमोक्रैसी (एनएलडी) को वोट दिया था. वह कहते हैं, "मैं 2015 में सुबह चार बजे ही जग गया था ताकि जल्दी से मतदान केंद्र पर जाकर वोट डाल सकूं. बिल्कुल, मैंने एनएलडी को वोट दिया था."

एनएलडी से निराश

ये वाई 2015 में बीस साल के थे और उस वक्त देश में होने वाले आम चुनाव उन्हें लोकतंत्र और बेहतर भविष्य का रास्ता दिखाई दिए. पांच साल बाद अब वह देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और नागरिक सरकार की सर्वोच्चता के लिए अभियान चला रहे हैं. अब भी म्यांमार की शासन व्यवस्था में सेना का बहुत दखल है.

उनके संगठन एथन का कहना है कि 2016 में जब से एनएलडी ने सत्ता संभाली है, तब से नागरिक अधिकारों के लिए उठने वाली आवाजों को सेना ने कानूनी मुकदमों के जरिए दबाने की कोशिश की है. सेना ने 96 लोगों के खिलाफ 47 मुकदमे दायर किए हैं. इनमें 51 कार्यकर्ता, चार कलाकार और तीन राजनीतिक कार्यकर्ता हैं.

Ye Wai Phyo Aung
ये वाई फ्यो आंग चुनावों को लेकर उत्साहित नहीं हैंतस्वीर: Cape Diamond

ये वाई की तरह बहुत से लोग एनएलडी की सरकार और आंग सान सू ची से निराश हैं. जुलाई में एथन के संस्थापकों समेत छह कार्यकर्ताओं के खिलाफ केस दर्ज कराया गया क्योंकि उन्होंने देश के पश्चिमी रखाइन प्रांत में इंटरनेट पर रोक लगाने के खिलाफ हुए प्रदर्शन में हिस्सा लिया था. ये वाई फ्यो आंग का कहना है कि अधिकारी उनके संगठन के सदस्यों का पीछा कर रहे हैं, ऑनलाइन भी और ऑफलाइन भी. वह कहते हैं, "खुफिया एजेंसियां हमारे पीछे पड़ी हैं, ताकि हमारी गतिविधियों पर नजर रख सकें और हमारे बारे में जानकारी जुटा सकें."

चुनाव का बहिष्कार

म्यांमार में कार्यकर्ताओं ने अगस्त में चुनाव बहिष्कार का अभियान चलाया और लोगों से वोटिंग से अलग रहने को कहा. इस अभियान के पीछे वजह है कि 2015 में आंग सान सू ची ने जो वादे किए थे, उन्हें पूरा नहीं किया गया है. देश के चुनाव आयोग का कहना है कि जो लोगों से वोट ना डालने के लिए कह रहे हैं, उनके खिलाफ कानूनी कार्यवाही हो सकती है. आंग सान सू ची ने चुनाव के बहिष्कार को गैर जिम्मेदाराना कदम बताया है.

अब कई मजदूर और छात्र यूनियनें चुनाव बहिष्कार का समर्थन कर रही हैं. ये वाई फ्यो आंग कहते हैं, "मुझे चुनाव आयोग पर भी भरोसा नहीं है और मुझे नहीं लगता है कि वे स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव करा सकते हैं. यह भी एक कारण है कि मैं वोट नहीं डालूंगा."

ने टून का संबंध एक अल्पसंख्यक समुदाय है और वे एक म्यूजिशियन हैं. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया कि वह भी रविवार को होने वाले चुनाव में वोट नहीं डालेंगे. वह सत्ताधारी पार्टी के सदस्यों के इन आरोपों को खारिज करते हैं कि चुनाव बहिष्कार की अपील करने वाले लोगों को ऐसा करने के लिए विदेशों से पैसा और समर्थन मिल रहा है.

Nay Toon
ने टून भी इस बार वोट नहीं डालेंगेतस्वीर: Yan Naing Aung

लचर नियम

चुनाव आयोग ने अशांत रखाइन प्रांत के 17 टाउनशिपों में से नौ में चुनावों को रद्द कर दिया. इन चुनावों की विश्वसनीयता सवालों में है. पर्यवेक्षकों का कहना है कि कोविड-19 की वजह से लागू पाबंदियों के कारण यांगोन जैसे शहरों में भी चुनाव को लेकर लोगों में खास उत्साह नहीं है.

पीपुल्स एलायंस फॉर क्रेडिबल इलेक्शंस नाम की संस्था का कहना है कि म्यांमार के सिर्फ 30 प्रतिशत लोगों की चुनाव में दिलचस्पी है. 2016 में किए गए एक सर्वे के मुकाबले यह आंकड़ा काफी कम है जब 56 प्रतिशत लोगों ने चुनावों को लेकर दिलचस्पी दिखाई थी. ये वाई जैसे युवा लोग का चुनावी प्रक्रिया से मोहभंग हो गया है और वे चुनाव बहिष्कार अभियान में शामिल हो रहे हैं.

दूसरी तरफ, कोरोना संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए चुनाव आयोग ने ज्यादा मतदान केंद्र बनाए हैं. 60 साल से ज्यादा उम्र के लोगों ने तो गुरुवार से ही वोट डालना शुरू कर दिया है. ह्यूमन राइट्स वॉच (एचआरडब्ल्यू) जैसे मानवाधिकार संगठन चुनाव के नियमों पर सवाल उठाते हैं. एचआरडब्ल्यू के एशिया निदेशक ब्रैड एडम्स कहते हैं, "जब तक एक चौथाई सीटें सेना के लिए आरक्षित रहेंगी, तब तक चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष नहीं हो सकते, जब तक सरकार के आलोचकों को सेंसरशिप का सामना करना होगा, जब तक रोहिंग्या लोगों को चुनाव में हिस्सा नहीं लेने दिया जाएगा, तब तक चुनावों को कैसे विश्वसनीय माना जाएगा."

रिपोर्ट: केप डायमंड, मे थिंग्यान

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