1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें
समाजभारत

शांतिदूत की भूमिका में हैं मणिपुरी मुसलमान

प्रभाकर मणि तिवारी
९ अगस्त २०२३

तीन महीने से जातीय हिंसा की आग में जलते पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर में मैतेई और कुकी के बीच मुसलमान एक पुल बन कर शांतिदूत की भूमिका निभा रहे हैं. हालांकि मैतेई और कुकी उनको अपने पाले में खींचने का प्रयास करते रहे हैं.

https://p.dw.com/p/4UvLt
दोनों समुदायों के बीच पुल का काम कर रहे हैं मुसलमान
मुस्लिम समुदाय कुकी और मैतेई दोनों वर्गों की मदद के लिए सामने आ रहा हैतस्वीर: Prabhakar Mani Tiwari/DW

मैतेई समुदाय मुसलमानों पर कुकी तबके की मदद का आरोप लगाते रहे हैं. हालांकि मणिपुरी पांगल के नाम से परिचित यह तबका इन सबसे तटस्थ रहते हुए हर व्यक्ति की मदद में जुटा है चाहे वह किसी भी समुदाय का हो.

मुसलमानों को अपनी ओर खींचने की कोशिश

मौजूदा संघर्ष में शांतिदूत की भूमिका निभाने वाले इस तबके को भी समय-समय पर हिंसा और उपेक्षा का शिकार होना पड़ा है. जिस चूड़ाचांदपुर जिले से मौजूदा हिंसा की शुरुआत हुई उससे सटे बिष्णुपुर का क्वाक्टा गांव मुसलमानों का है. वहां के लोगों का कहना है कि जातीय हिंसा शुरू होने के बाद शुरुआती दौर में ये लोग चक्की के दो पाटों यानी मैतेई और कुकी तबके की रस्साकशी में फंस गए थे. दोनों तबके के लोग चाहते थे कि ये उनके पाले में चले जाएं. दोतरफा दबाव के बावजूद इस तबके ने तटस्थ रवैया अपनाते हुए दोनों समुदाय के लोगों की हरसंभव सहायता की. कई लोगों ने जान बचाने के लिए इनके घरों में भी शरण ली. बाद में सेना की सहायता से उनको राहत शिविरों में भेजा गया था.

मणिपुर की हिंसा के कारण 14 हजार स्कूली बच्चे विस्थापित

मणिपुर में हिंसा शुरू होने के साथ पूरा समाज दो तबकों में बंट गया, मैतेई और कुकी. मैतेई तबके के लोगों पर कुकी इलाकों में जाने पर पाबंदी है और कुकी लोगों के मैतेई इलाकों में आने पर. यह एकतरफा टिकट है. यानी इस पाबंदी का उल्लंघन करने वालों के जीवित लौटने की कोई गारंटी नहीं है. ऐसे में यह पांगल ही दोनों तबकों के बीच पुल का काम कर रहे हैं. अगर यह समुदाय नहीं होता तो हिंसा की कवरेज के लिए राज्य में आने वाले पत्रकारों का भी मैतेई से कुकी इलाकों तक पहुंचना असंभव हो जाता. यही मुसलमान लोग अपनी टैक्सियों के जरिए इन पत्रकारों को राज्य की विभिन्न इलाकों में ले जा रहे हैं.

मुस्लिम संगठनों की कोऑर्डिनेटिंग कमेटी की प्रेस कांफ्रेंस
मुसलमानों ने कई संगठनों को मिला कर एक कमेटी का भी गठन किया है जिसके जरिये राहत पहुंचाई जा रही है.तस्वीर: Prabhakar Mani Tiwari/DW

इतना ही नहीं, इन लोगों के संगठनों ने राहत सामग्री बांटी है और शांति की बहाली के लिए मस्जिदों में प्रार्थनाएं भी कर रहे हैं. राजधानी इंफाल की जामा मस्जिद के इमाम और जमात ए इस्लामी हिंद के अध्यक्ष मौलाना सईद अहमद बताते हैं, "हम लंबे अरसे से सह-अस्तित्व के आधार पर राज्य में रहते आए हैं. इस हिंसा ने समाज को दो हिस्सों में बांट दिया है. लेकिन हम अपनी ओर से दोनों तबके के लोगों से सांप्रदायिक सद्भाव बहाल करने की अपील करते रहे हैं."

जातीय हिंसा की सबसे बड़ी शिकार हैं मणिपुरी महिलाएं

पांगल समुदाय ने पीड़ितों की मदद के लिए तमाम छोटे-बड़े संगठनों को मिला कर ऑल मणिपुर मुस्लिम आर्गनाइजेशंस कोआर्डिनेटिंग कमिटी का गठन किया है. इसके अलावा मैतेई और कुकी तबकों के साथ तालमेल बनाने के लिए मणिपुर मुस्लिम काउंसिल का भी गठन किया गया है.

आखिर कौन हैं मणिपुरी मुस्लिम

मणिपुरी पांगल की राज्य की आबादी में करीब साढ़े आठ फीसदी हिस्सेदारी है. वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक राज्य में आबादी के लिहाज से यह चौथा बड़ा समुदाय है. यह तबका राजा खागेंम्बा के कार्यकाल (1597 से 1652) के दौरान 17वीं सदी के शुरुआती दौर में मणिपुरी समाज का हिस्सा बना था. तब सिलहट (अब बांग्लादेश में) में जनरल मोहम्मद शानी के नेतृत्व में एक हजार मुस्लिम सैनिकों को बंदी बना कर यहां ले आया गया था. राजा ने इन लोगों को घाटी में बसने की अनुमति दी थी. उन्होंने इस तबके के लोगों को मैतेई तबके की युवतियों से विवाह की भी अनुमति दी थी. उनके वंशज ही अब मैतेई पांगल कहलाते हैं.

राजभवन की बैठक में सभी धर्मों के लोग शामिल हुए
हाल ही में मणिपुर के राजभवन में सर्वधर्म बैठक भी बुलाई गई थीतस्वीर: Prabhakar Mani Tiwari/DW

यह लोग मैतेई भाषा ही बोलते हैं.यह तबका मुख्य रूप से राजधानी इंफाल और उसके आस-पास के इलाकों में ही बसा है. राज्य में मुस्लिमों और मैतेई तबके का इतिहास भी रक्तरंजित रहा है. वर्ष 1993 में हिंदू मैतेई समुदाय के लोगों ने मैतेई पांगल लोगों का सामूहिक कत्लेआम किया था. तब बहुत से लोग मारे गए थे और उनके घर और दुकानें तोड़ दी गई थी.

तीन मई 1993 से शुरू हुआ वह कत्लेआम पांच मई तक चला था. उस दौरान मुसलमान यात्रियो से भरी एक बस में भी आग लगा दी गई थी. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, उस दौरान पांगल समुदाय के 130 लोगों की मौत हुई थी और करोड़ों की संपत्ति नष्ट हो गई थी. उसके बाद भी मैतेई और इस तबके के बीच हिंसक झड़पें होती रही हैं.

मदद के लिए आगे आए लोग

कोऑर्डिनेटिंग कमिटी के अध्यक्ष एस.एम.जलाल बताते हैं, "हम घाटी में रहते हैं. लेकिन मैतेई और कुकी दोनों तबकों के साथ हमारे बेहतर संबंध हैं. हिंसा शुरू होने के बाद हमें दोनों पक्ष से दबाव झेलना पड़ रहा है." मुस्लिम बहुल क्वाक्टा गांव के नासिर खान बताते हैं कि हिंसा शुरू होने के बाद चूड़ाचांदपुर से भाग कर आने वाले सैकड़ों मैतेई लोगों ने हमारे घरों में शरण ली थी. वह कहते हैं, "हम बिना किसी भेदभाव के दोनों तबकों की मदद करते रहे हैं. हमारे समुदाय के लोग मैतेई और कुकी इलाकों में खाने-पीने की चीजों की दुकान चलाते हैं. लेकिन कुछ दक्षिणपंथी संगठन जानबूझकर यह अफवाह फैला रहे हैं कि हम कुकी लोगों की मदद कर रहे हैं."

मणिपुर में बंदूक के सहारे आत्मरक्षा

हिंसा शुरू होने के बाद इंफाल से कुकी बहुल चूड़ाचांदपुर और म्यांमार सीमा पर बसे कस्बे मोरे तक टैक्सी चलाने वाले मोहम्मद आरिफ कहते हैं, "फिलहाल हम लोग ही मैतेई से कुकी इलाकों तक जा रहे हैं. मौजूदा हिंसा में हमें किसी पक्ष से कोई खतरा नहीं है. हां, हर इलाके में बने मैतेई और कुकी लोगों की जांच चौकियों पर हमारा आधार कार्ड चेक किया जाता है. उसके बाद ही हमें आगे जाने की इजाजत दी जाती है."