मेला पशुओं का मौज इंसानों की
भारत में इन दिनों पशु मेलों की बहार है. एक तरफ पुष्कर में ऊंटों का मेला है तो दूसरी तरफ हरिहर क्षेत्र यानी सोनपुर का मेला. दोनों मेले अपनी विशालता और विशिष्ट पहचान के लिए विख्यात हैं. देखिए इन मेलों की रौनक.
सोनपुर मेला
बिहार में पटना के पास सोनपुर का मेला एशिया में पशुओँ का सबसे बड़ा मेला है. कहते हैं कि भारत में आमतौर पर दिखने वाला शायद ही कोई पशु पक्षी होगा जो यहां नहीं बिकता हो.
ऊंटों का मेला
पुष्कर मेले में पूरे राजस्थान से ऊंट बिकने के लिए बड़ी संख्या में जमा होते हैं. ऊंटों के बड़े छोटे व्यापारी अपने ऊंट यहां लेकर आते हैं और मनचाही कीमत पर बेचने की कोशिश करते हैं.
विदेशी सैलानी
इन दोनों मेलों में विदेशी सैलानी भी आते हैं, पुष्कर में तो इनकी बड़ी तादाद जमा होती है. ये लोग यहां घूमते फिरते और भारत की संस्कृति के विविध रंगों को देखते हैं.
हर तरह के ऊंट
पुष्कर में ऊंटों की कई किस्में बिकने के लिए आती हैं और ऊंटो को पाल कर बड़ा करने वाले पूरे साल इस मेले का इंतजार करते हैं.
रेत ही रेत
पुष्कर का मेला रेगिस्तान में सजता है. रेत का जहाज कहा जाने वाला ऊंट इस मेले का मुख्य आकर्षण है और यहां इसकी आन बान देखते ही बनती है.
घोड़ों का मेला
आप चाहे सोनपुर जाएं या फिर पुष्कर, घोड़े आपको दोनों जगह बिकते मिलेंगे. हर तरह की नस्ल के घोड़े इन दोनों मेले में बिकने आते हैं.
घोड़े की सवारी
बिहार में अब तांगे तो नहीं चलते और वहां शादियों में दूल्हा घोड़े की बजाय कारों में शादी करने जाते हैं लेकिन फिर भी लोग शौक के लिए घोड़े खरीदते और पालते हैं.
पुष्कर मेला
राजस्थान के पुष्कर में लगने वाला यह सालाना मेला वैसे तो ऊंटों के मेले के नाम से भी विख्यात है लेकिन इस मेले में दूसरे जानवरों की खरीद बिक्री भी खूब होती है.
हाथियों का मेला
सोनपुर के मेले में हाथियों की खूब खरीद बिक्री होती है. तस्वीर में दिख रहा हाथी भी बिकने के लिए आया है. लोग हाथियों की सवारी का भी मजा लेते हैं.
भगवान भला करे
मेला भले ही पशुओं का है लेकिन आस्था भी अपनी जगह है, सब कुछ अच्छे से हो जाये इसके लिए दुआ मांगता एक ऊंटों का व्यापारी.
कुछ मीठा हो जाये
बिना मिठाइयों के कहां बात बनती है, मेला हो या कोई और बाजार पहले तो पेट पूजा का इंतजाम होना जरूरी है. इसके बिना काम नहीं चलता.
मेला की संस्कृति
कहने के लिए तो ये पशुओं के मेले हैं, लेकिन यहां नाच गाने से लेकर तमाम तरह की सांस्कृतिक गतिविधियां दिखाई देती हैं. कई तरह के मुकाबले भी होते हैं.
मेले के रंग
मेले में तरह तरह के नाच गाने, नाटक और खेल होते हैं, इनके रंग इतने विविध है कि आंखें चुंधिया जाती है.