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मेरी कोम ने देश से माफी मांगी

८ अगस्त २०१२

लंदन ओलंपिक में बॉक्सिंग के सेमीफाइनल में जगह बनाने अकेली भारत मुक्केबाजी मेरी कोम आखिरकार हार गईं. मेरी ने कहा, "माफ कर दीजिए, मैं स्वर्ण या रजत पदक न जीत सकी, लेकिन मैंने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया."

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तस्वीर: Reuters

पांच बार वर्ल्ड चैंपियन रह चुकी भारतीय मुक्केबाज मेरी कोम को ब्रिटेन की 29 साल की निकोला एडम्स ने 6-11 से हराया. हार के साथ ही 29 साल की मेरी को कांस्य पदक से संतोष करना पड़ा. यह उन्हें नागवार गुजरा. भावुक मेरी ने कहा, "मेरा पूरा देश मुझसे स्वर्ण पदक की उम्मीद कर रहा था. मुझे माफ कर दीजिए मैं इसके साथ वापस नहीं आ पाई."

आगे मेरी ने कहा, "मैं स्वर्ण या रजत पदक न जीत सकी, लेकिन मैंने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया. यह यह कठिन यात्रा रही. मैं अपने परिवार और मित्रों के सहारे यहां तक पहुंची. आज की हार के बावजूद मैं इस खेल को जारी रखना चाहती हूं. मैं अपने प्रदर्शन से संतुष्ट हूं."

भारत की चैंपियन बॉक्सर ने युवा ब्रिटिश मुक्केबाज की भी तारीफ की. मेरी ने कहा, "वह पहले और दूसरे राउंड में बेहतर थीं."

लंदन ओलंपिक में मेरी कोम की राह शुरू से आसान नहीं थी. ओलंपिक खेलों में पहली बार महिला मुक्केबाजी को शामिल किया गया. लेकिन इसमें वह श्रेणी नहीं थी जिसमें मेरी कोम लड़ती हैं. लंदन ओलंपिक से पहले मेरी 48 किलोग्राम वर्ग में बॉक्सिंग करती आई हैं. इसी में उन्होंने कई वर्ल्ड चैंपियनशिप जीती हैं.

Indien Sport Boxerin Mary Kom
तस्वीर: dapd

लेकिन लंदन ओलंपिक में 48 किलोग्राम की श्रेणी नहीं थी. यहां मेरी को 51 किलोग्राम श्रेणी में उतरना पड़ा. फ्लाईवेट श्रेणी में नई होने के बावजूद मेरी का सेमीफाइनल तक पहुंचना भी बड़ी कामयाबी है. सेमीफाइनल में ब्रिटेन की निकोला एडम्स को मनोवैज्ञानिक बढ़त भी थी. पांच फुट पांच इंच लंबी निकोला के सामने मेरी का पांच फुट दो इंच कद कम पड़ा. लंबा कद होने की वजह से निकोला के मुक्के का दायरा भी बड़ा था. इसका सीधा मतलब है कि निकोला ज्यादा दूर से मेरी को पंच मारने में सक्षम थीं. वहीं मेरी को मुक्का मारने के लिए ज्यादा करीब जाना पड़ रहा था, जिसकी वजह से उन्हें निकोला के हमलों का शिकार होना पड़ा.

निकोला को घरेलू माहौल का भी फायदा मिला. दर्शक दीर्घा में खुद ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन निकोला की हौंसला अफजाई के लिए बैठे थे.

बहरहाल इस हार के बावजूद यह नहीं कहा जा सकता कि मेरी का दौर खत्म हो गया है. मणिपुर की मेरी 2002 से अंतरराष्ट्रीय महिला मुक्केबाजी का सबसे बड़ा नाम हैं. जुड़वा बच्चों को जन्म देने और दो साल की छुट्टी के बाद भी कयास लगाए जा रहे थे कि मेरी के मुक्के में अब वो दम नहीं रहा. लेकिन 2008 में मेरी बॉक्सिंग रिंग में वापस उतरीं और लगातार चार वर्ल्ड चैंपियनशिप जीत लीं.

लंदन ओलंपिक में भी भले ही मेरी को कांसे से संतोष करना पड़ा लेकिन उन्होंने इतिहास तो रच ही दिया. पहली बार भारत की किसी महिला मुक्केबाज ने ओलंपिक में पदक जीता है.

ओएसजे/एमजी (एएफपी, पीटीआई)

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