मेक्सिको की निडर पत्रकार आनाबेल ऐरनांदेस को पुरस्कार
२७ मई २०१९मेक्सिको में जन्मी आनाबेल ऐरनांदेस ने 1993 में पत्रकारिता शुरु की. तब वे पढ़ाई भी कर रही थीं और साथ में रिफॉर्मा नामक दैनिक अखबार में काम भी. कुछ ही सालों में ऐरनांदेस की गिनती मेक्सिको के प्रमुख खोजी पत्रकारों में होने लगी. उन्होंने ऐसे कई लेख और रिपोर्टें छापीं हैं, जो सरकार के भ्रष्टाचार से लेकर यौन दुर्व्यवहारों और ड्रग्स की तस्करी को उजागर करती हैं.
हैरान करने वाले तमाम तथ्यों को उन्होंने अपनी रिपोर्टों के अलावा अपनी दो किताबों में भी लिखा. इसमें मेक्सिको सरकार के अधिकारियों और देश में सक्रिय ड्रग माफियाओं की आपसी मिलीभगत के मामले भी शामिल थे, जिसके लिए उन्हें बड़ी कीमत चुकानी पड़ी. ऐरनांदेस फिलहाल यूरोप में पुनर्वास का जीवन जी रही हैं. ना केवल उन्हें बल्कि उनके बच्चों को भी कई बार जान से मारने की धमकियां दी जाती थीं. यहीं कारण था कि उन्हें मेक्सिको छोड़ना पड़ा.
साल 2012 में उन्हें गोल्डेन पेन ऑफ फ्रीडम पुरस्कार से भी नवाजा गया था. वर्ल्ड एसोसिएशन ऑफ न्यूजपेपर्स एंड न्यूज पब्लिशर्स द्वारा दिए जाने वाले इस पुरस्कार को ग्रहण करते हुए ऐरनांदेस ने कहा था, "आज मेक्सिको के इतिहास के जिस नाटकीय काल में हम जी रहे हैं, उसमें चुप रहने के कारण महिलाओं, पुरुषों, बच्चों, नागरिक समाज के प्रतिनिधियों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, सरकारी अधिकारियों और पत्रकारों की जान जा सकती है...लेकिन चुप्पी तोड़ना भी जानलेवा साबित हो सकता है."
व्यभिचार का व्यक्तिगत अनुभव
ऐरनांदेस जानती हैं कि मेक्सिको में व्याप्त अपराधों के कारण लोग हर दिन खतरे के साये में जीते हैं. इसका उन्हें निजी अनुभव भी हुआ. उनके पिता की सन 2000 में मेक्सिको सिटी में हत्या कर दी गई. वे नहीं चाहते थे कि ऐरनांदेस पत्रकारिता में आएं. उनकी हत्या ने ऐरनांदेस की पत्रकारिता में एक निर्णायक मोड़ ला दिया.
उनकी पहली खोजी रिपोर्ट सन 2001 में प्रकाशित हुई थी. इसमें उन्होंने मेक्सिको के राष्ट्रपति विंसेंते फॉक्स के कार्यकाल के कई मुद्दों को उठाया. इस काम के लिए उन्हें मेक्सिको में नेशनल जर्नलिस्ट एवार्ड से सम्मानित किया गया. हालांकि इसके कुछ ही समय बाद, वे जिस अखबार "मिलेनियो" में काम कर रही थीं, उन पर ऐसे किसी काम को करने से रोक लगा दी. इस तरह ऐरनांदेस के काम को सेंसर कर अखबार हिंसा का निशाना बनने से बचना चाहता था.
इसके बावजूद, ऐरनांदेस ने उनकी बात नहीं मानी. वे अपना रिसर्च आगे बढ़ाती रहीं और हर दिन अपने आसपास सड़कों पर फैली हिंसा को और करीब से देखती रहीं. सन 2003 में उन्हें यूनीसेफ ने सम्मानित किया. उनकी यह रिपोर्टिंग कैलिफोर्निया के सैन दियागो में मेक्सिकन लड़कियों को गुलाम बना कर रखने और उनका यौन शोषण किए जाने के बारे में थी.
मेक्सिको का ड्रग युद्ध
पांच सालों के शोध के बाद 2010 में ऐरनांदेस ने अपनी किताब प्रकाशित की. स्पेनिश भाषा की किताब अंग्रेजी में नार्कोलैंड: द मेक्सिकन ड्रग लॉर्ड्स ऐंड देयर गॉडफादर्स के नाम से आई. इसने ना केवल ड्रग गिरोह चलाने वालों के बारे में कई अनजान बातें सामने लाईं बल्कि यह भी दिखाया कि "नार्को तंत्र" कितनी गहराई से मेक्सिको के रोजमर्रा जीवन में पैठ बना चुका है. इस किताब ने दिखाया कि राजनेता, सेना और ड्रग तस्करों के साथ काम करने वाले कारोबारी कैसे मिले हुए हैं.
भ्रष्टाचार का ऐसा विस्तृत लेखाजोखा किताब को बेस्टसेलर बना गया. साथ ही लेखिका को अनगिनत धमकियों का निशाना भी. कभी उनके घर के दरवाजे पर जानवरों के शव डाले गए तो कभी जान से मारने की धमकी मिली. 2013 की ऐसी घटनाओं के बाद उन्होंने 24 घंटे बॉडीगार्ड रखना शुरु कर दिया. लेकिन ऐरनांदेस को सबसे बड़ा अफसोस यह हुआ कि उन्हें ये धमकियां ड्रग माफिया की ओर से नहीं बल्कि सरकार और देश के सबसे ताकतवर पुलिस प्रमुख की तरफ से आ रही थीं.
जब अचानक 43 छात्र हुए लापता
ड्रग्स की दुनिया में अपने दखल का इस्तेमाल उन्होंने इगुआला शहर से अचानक गायब हो गए 43 छात्रों का पता लगाने में भी किया. इस पूरी प्रक्रिया को उन्होंने 2016 में आई अपनी अगली किताब का विषय बनाया, जो अंग्रेजी में अ मसैकर इन मेक्सिको: द ट्रू स्टोरी बिहाइंड द मिसिंग फोर्टी-थ्री स्टूडेंट्स में छपी.
ऐरनांदेस ने लापता होने वाली रात के बारे में कई लोगों के बयान लिए और फिर उसकी प्रशासन की ओर से जारी सरकारी रिपोर्ट से तुलना की. उनकी किताब एक तरह से सामूहिक हत्या के एक मामले की आपराधिक जांच का ब्यौरा है. इस घटना में ड्रग गैंग की मदद से भ्रष्ट अधिकारियों और सेना ने अपनी राह का कांटा बन रहे छात्रों को रास्ते से हटा दिया था.
इस किताब के बाद तो लेखिका ऐरनांदेस को और भी खतरा पैदा हो गया. उन्हें मेक्सिको छोड़ना पड़ा और वे अमेरिका चली गईं. उन्होंने 2014 से 2016 के बीच बर्कले की कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में खोजी पत्रकारिता कार्यक्रम का कोर्स किया और इस दौरान भी उन्हें धमकियां मिलती रहीं. अक्टूबर 2018 में उन्होंने बताया, "मेरे रिसर्च के दौरान ही मेरे एक सूत्र की बीच सड़क पर हत्या कर दी गई. लेकिन मेरा मानना है कि यह मेरा काम है और अंधेरे पर रोशनी डालने को मैं अपनी सुरक्षा से हमेशा ही ज्यादा अहम मानती हूं." इसके बाद उन्होंने अमेरिका भी छोड़ दिया और अज्ञातवास में रहने चली गईं.
जिस निडरता के साथ ऐरनांदेस ने पत्रकारिता की है, भ्रष्टाचार को उजागर किया है, मेक्सिको में शक्ति के दुरुपयोग का पर्दाफाश किया है और अपने जीवन के डर पर विजय पाई है, उसका सम्मान करते हुए डॉयचे वेले ने उन्हें फ्रीडम ऑफ स्पीच पुरस्कार 2019 से सम्मानित किया है.
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इन पत्रकारों को मिली अपना काम करने की सजा