मुशर्रफ़ मामला: गेंद सरकार के पाले में
१ अगस्त २००९जनरल परवेज़ मुशर्रफ़ ने सेनाध्यक्ष के रूप में आपात अधिकार लेने के अपने अधिकारों का उपयोग करते हुए सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश इफ़्तिखार मुहम्मद चौधरी सहित 60 वरिष्ठ जजों को बर्खास्त कर दिया था और निरंकुश सत्ता पाने के लिए संविधान की कुछ धाराओं को निलंबित कर दिया था.
मुशर्रफ़ के फ़ैसले का व्यापक विरोध हुआ था. 1999 में चुने गये प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ को रक्तहीन सत्ता पलट के ज़रिए हटाकर सत्ता में आये मुशर्रफ़ ने राष्ट्रपति पद पर बने रहने के लिए जजों को हटाया और विरोध को दबाने के लिए मुख्य न्यायाधीश चौधरी को हिरासत में रखा.
लेकिन इस फ़ैसले के बाद पूर्व सैनिक जनरल की जनता में लोकप्रियता घटने लगी लगी और अंत में उन्होंने महाभियोग से बचने के लिए 2008 में राष्ट्रपति का पद छोड़ दिया. पिछले दो महीनों से मुशर्रफ़ लंदन में रह रहे हैं.
जजों को हटाये जाने के ख़िलाफ़ वकीलों के विरोध के कारण मुशर्रफ़ को संसदीय चुनाव करवाना पड़ा और लगातार दबाव के कारण वर्तमान राष्ट्रपति आसिफ़ अली ज़रदारी को इफ़्तिखार मुहम्मद चौधरी को फिर से उनके पद पर बहाल करना पड़ा.
मुख्य न्यायाधीश चौधरी ने आज सुनाए गए अपने फ़ैसले में न सिर्फ़ आपातस्थिति की घोषणा को असंवैधानिक बताया बल्कि उनके द्वारा किए गये सभी फ़ैसलों को अवैध करार दिया है.
पाकिस्तान के संविधान के अनुसार मुशर्रफ़ के ख़िलाफ़ देशद्रोह के आरोप संसद द्वारा ही लगाए जा सकते हैं. पिछली संसद ने मुशर्रफ़ की कार्रवाईयों का अनुमोदन कर दिया था.
रिपोर्ट: एजेंसियां/महेश झा
संपादन: आभा मोंढे