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मुक्केबाज़ी: स्त्री मुक्ति का प्रतीक

प्रिया असेलबोर्न२७ मार्च २००९

मुक्केबाज़ी. एक दूसरे पर ताबड़तोड़ घूंसे बरसाने का खेल और सामने वाले को चारों खाने चित कर देने का जुनून..... क्या मुक्केबाज़ी सिर्फ यही है. शायद नहीं. महिलाओं के लिए मुक्केबाज़ी उनकी मुक्ति का प्रतीक भी है.

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ये है 'किलर क्वीन' नाम से मशहूर सुज़ी केंटीकियनतस्वीर: AP

महान मुक्केबाज़ मुहम्मद अली और उनकी मशहूर मुक्केबाज़ बेटी लैला अली को भला कौन नहीं जानता. एक ज़माने में लैला अली का मुक्केबाज़ी में कोई सानी नहीं था. उनकी जैसी धुरंधर मुक्केबाज़ को देखकर लोग दांतो तल उंगुलियां दबा लेते थे. लैला अली जैसी पेशेवर खिलाड़ियों की बात छोड़ दें तो मुक्केबाज़ी में किसी महिला के आने की बात एक समय तक सोची भी नहीं जा सकती थी. लेकिन अब हालात बदल रहे हैं. यूरोप में भी कई लड़कियां मुक्केबाज़ी के रिंग में पूरे दम खम के साथ उतर रही हैं.

Die Box-Legende Muhammad Ali auf einer Pressekonferenz in Berlin am Freitag 16. Dezember 2005.
पूर्व हैवीवैट बॉक्सिंग चैंपियन मोहम्मद अलीतस्वीर: AP

उनके लिए मुक्केबाज़ी शौक या खेल नहीं आज़ादी और सम्मान से जीने का एक मक़सद बन गया है. भिंची हुईं मुट्ठियों और तने हुए चेहरों वाली इस दुनिया में जब बात होती है महिला मुक्केबाज़ों की तो सहसा पुरूषवादी कोनों से आवाज़ें आने लगती हैं- नाज़ुक बदन नाज़ुक मिज़ाज महिलाएं भला इसमें क्या करेंगी. इन तानों से बेपरवाह आगे आ रही हैं यूरोप की महिला मुक्केबाज़ अपने दस्तानों और अपने इरादों अपने सपनों के साथ.

1728 में ब्रिटेन के डेली पोस्ट अख़बार में एक ख़बर छपी. ख़बर क्लेरकेनवेल में रहने वाली एक महिला एलिज़ाबेथ विलकिंसन पर थी. विलकिंसन ने एलान किया था कि 60 पाउंड के इनाम पर वह उस महिला को एक ही बाज़ी में हरा देंगी, जिसने उन्हें गाली दी है. लेकिन करीब 300 साल बाद ही, 2001 में महिलाओं का पहला मुक़ाबला हुआ.

Joseph Beuys-Preis für indische Gefängnisreformerin Kiran Bedi
भारत की पहली महिला आईपीएस किरन बेदीतस्वीर: picture-alliance/dpa

लंबे समय तक महिलाओं के लिए बॉक्सिंग करना अच्छा नहीं माना जाता था. छिप छिप कर समाज में निचले तबके की महिलाएं ब्रिटेन या यूरोप के दूसरे देशों में बॉक्सिंग करती थीं, थोड़ा पैसा कमाने के लिए. न इज्ज़त, न शोहरत बल्कि उन महिलाओं का मज़ाक उड़ाया जाता था. पसीना महिलाएं बहाती थी और पुरुष उन्हें छोटे कपड़ों में देखने का मज़ा लेते थे.

1984 में महिला मुक्केबाज़ी को वैध किया गया लेकिन अब जर्मनी में 20 महिलाएं बॉक्सिंग से अपनी ज़िंदगी चलाती है. क्लिंट ईस्टवुड की हिलेरी स्वांक के साथ ''वन मिलियन डॉलर बेबी'' नामकी मशहूर हॉलीवुड फिल्म के बाद महिलाओं के लिए भी ये खेल धीरे धीरे स्वीकार्य और सम्मानजक बन रहा है. हफ्ते में दो दिन जर्मनी के शहर डुसलडॉफ में बॉक्सिंग की ट्रेनिंग लेने आने वाली एस्रा कहती हैं, ''जो लोग कहते हैं कि मुक्केबाज़ी महिलाओं के लायक नहीं है, वह ऐसे वोग है जो समान अधिकारों को भी नहीं मानते हैं. कितने सारे पुरुष डांस के ज़रिए अपनी ज़िंदगी चलाते हैं और कोई नहीं कहता है कि पुरुषों को ऐसा नहीं करना चाहिए.''

BdT 11.07.08 Boxer Tony Thompson und Wladimir Klitschko
मुक्केबाज़ी में पुरूषों का वर्चस्व नही रहा.तस्वीर: AP

जिस ट्रेनिंग सेंटर में एस्रा बॉक्सिंग के गुर सीख रही हैं वहां कई और महिलाएं भी घूंसे बरसाना सीख रही हैं. कोच फ्रैंसिस्को परेज़ कहते हैं, 'यहां बॉक्सिंग के लिए आने वाली महिलाओं पर मुझे काफी गर्व होता है. ये मेहनती और महत्वाकांक्षी महिलाएं हैं''

मुक्केबाज़ी कर रही महिलाओं का कहना है कि उनके इस खेल में शामिल होने से आत्मविश्वास बढ़ा है. वो जवाब देने लायक बनी गईं हैं. कुछ महिलाएं कहती हैं कि बॉक्सिंग सीखने से वह आत्मनिर्भर भी बनी हैं. आर्मेनियाई मूल की जर्मन वर्ल्ड चैंपियन सुजिआना केंटिकिआन ने बॉक्सिंग के साथ साथ अपने जीवन का एक मुश्किल वक्त पार किया है. वह पांच साल की थीं, जब उन्हें अपना देश छोड़ना पड़ा था. उनके पिता को सेना में बुलाया जा रहा था और ऐसे में परिवार किसी तरह मॉल्डाविया और रूस होता हुआ जर्मनी के शहर हैम्बर्ग में बस गया. लेकिन कोई दस्तावेज़ न होने के कारण सुजिआना और उकने परिवार को सालों तक शरणार्थी शिविर में रहना पड़ा. सुजिआना कहती हैं, '' कितनी बार लोग आए, हमें एयरपोर्ट लेकर जाते थे और हमें देश छोड़ने की धमकी देते थे. लेकिन हमें मदद भी मिली, हम जर्मनी में रहकर ये साबित कर पाए कि हम अच्छे नागरिक है.''

सुजियाना के भाई बॉक्सिंग सीखा करते थे और 12 साल की उम्र में वो सुजिआना को भी अपने साथ बॉक्सिंग सीखने ले जाने लगे. अब सुजिआना 21 साल की हैं और 24 बार रिंग में उतर चुकी हैं. इसी महीने 20 मार्च को अमेरिकी चैपिंयन एलेना रेइड को हराकर वह विश्व चैपिंयन बनी हैं. कठिन वक्त में शांत रहना, दूसरों को सबक सिखाना ये सब उन्हें बॉक्सिंग ने ही सिखाया है. सुजिआना ज़्यादातर पुरुषों के साथ ही बॉक्सिंग करती हैं. इस बारे में सुजिआना कहती हैं, '' पुरुषों और महिलाओं में फर्क नहीं लगता है और मैं बिलकुल पुरुषों की तरह ही बॉक्सिंग करती हूं.''

सुजिआना कहती है कि एक महिला को किसी बने बनाए खांचे में झाल कर देखने के दिन अब लद गए है. वो एक हसीन मॉडल भी हो सकती है और एक ख़तरनाक मुक्केबाज़ भी. महिलाएं मॉडलिंग में भी मेहनत करती हैं और मेहनत मुक्केबाज़ी में भी है.